Edited By Prachi Sharma,Updated: 12 Nov, 2025 10:25 AM

Inspirational Story: एक संत अपने आश्रम से जुड़े मसले को लेकर बहुत परेशान थे। वह महूसस कर रहे थे कि उनकी उम्र बढ़ती जा रही है। अपना शेष जीवन वह हिमालय में बिताना चाहते थे। चिंता इस बात को लेकर थी कि उनके बाद उनकी जगह कौन लेगा।
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Inspirational Story: एक संत अपने आश्रम से जुड़े मसले को लेकर बहुत परेशान थे। वह महूसस कर रहे थे कि उनकी उम्र बढ़ती जा रही है। अपना शेष जीवन वह हिमालय में बिताना चाहते थे। चिंता इस बात को लेकर थी कि उनके बाद उनकी जगह कौन लेगा। वह तय नहीं कर पा रहे थे कि कौन-सा शिष्य ऐसा है जो आश्रम को ठीक से संचालित करेगा। आश्रम में दो योग्य शिष्य थे और दोनों ही संत को प्रिय थे। आखिर उन्हें एक उपाय सूझा।
उन्होंने दोनों को बुलाया और कहा, “मैं तीर्थ यात्रा पर जा रहा हूं। मेरे पास दो मुट्ठी धान हैं। दोनों को एक-एक मुट्ठी दे रहा हूं। तुम इन्हें अच्छी तरह संभाल कर रखना और जब मैं आऊं तो मुझे सुरक्षित लौटा देना। जो शिष्या मुझे अपने हिस्से के धान सुरक्षित वापस कर देगा, मैं उसे ही आश्रम का प्रमुख नियुक्त करुंगा।” यह आज्ञा देकर संत चले गए।
एक शिष्य संत को भगवान की तरह मानता था। उसने उनके दिए हुए एक मुट्ठी धान की पोटली बनाई और उसे पवित्र व सुरक्षित स्थान पर रख दिया। वह हर रोज उस पोटली की पूजा करने लगा। दूसरा शिष्य जो संत को ज्ञान का देवता मानता था, उसने एक मुट्ठी धान को गुरुकुल के पीछे खेत में बो दिया। कुछ महीनों बाद जब संत वापस आए तो एक शिष्य ने उन्हें धान की पोटली लौटा दी और बताया कि वह रोज इसकी पूजा करता था।
संत ने देखा धान सड़ चुके हैं और अब वे किसी काम के नहीं रहे। दूसरा शिष्य संत को आश्रम के पीछे ले गया और धान की लहलहाती फसल दिखाकर कहा, “मुझे क्षमा करें, जो धान आप दे गए थे, उन्हें मैं अभी नहीं दे सकता।”
धान की लहलहाती फसल देखकर संत प्रसन्न हो गए। उन्होंने कहा कि जो शिष्य अपने विवेक से पुरुषार्थ का प्रदर्शन करता है, वही आश्रम का प्रमुख बनने का अधिकारी है।