International Yoga Day:  योग से बुझाओ क्रोध की आग

Edited By Updated: 21 Jun, 2025 01:01 AM

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International Yoga Day 2025: ‘क्रोध’, यह शब्द सुनते ही जैसे आंखों के समक्ष अग्नि का स्वरूप उत्पन्न हो जाता है। ऋषि-मुनियों एवं हमारे पूर्वजों के अनुभवों से सिद्ध हुआ है कि क्रोध एक ऐसी भीषण अग्नि है जो हमारे मन को जलाकर जीवन के सार को ही नष्ट कर...

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International Yoga Day 2025: ‘क्रोध’, यह शब्द सुनते ही जैसे आंखों के समक्ष अग्नि का स्वरूप उत्पन्न हो जाता है। ऋषि-मुनियों एवं हमारे पूर्वजों के अनुभवों से सिद्ध हुआ है कि क्रोध एक ऐसी भीषण अग्नि है जो हमारे मन को जलाकर जीवन के सार को ही नष्ट कर देती है।

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संसार में जितनी भी प्रकार की अग्नि हैं, वे मानव की अंतरात्मा या मन को नहीं जलातीं किंतु क्रोध एक ऐसी अग्नि है जो स्वयं एवं संसार को भी, जलाकर खाक कर देती हैं। अत: जब कोई मनुष्य क्रोध करता है तो लोग कहने लगते हैं ‘देखो यह कैसे आग बबूला हो गया।’

हम सभी भली-भांति जानते हैं कि मुर्दे को जब अग्नि पर लिटाया जाता है तो उसे अग्नि का दाह अनुभव नहीं होता परंतु कितने आश्चर्य की बात है कि जीवित मनुष्य अपनी घोर अज्ञानता में स्वयं को बार-बार क्रोध की चिता पर बैठ कर जलाता है, क्रोध में स्वयं एवं दूसरों को दुखी करता है और फिर बड़े अभिमान से सभी को कहता है कि ‘मैंने फलां फलां मनुष्य का दिमाग ठिकाने लगा दिया, मैंने उसका अभिमान चकनाचूर कर दिया, मैंने उसके होश उड़ा दिए’... इत्यादि।

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ऐसी बड़ी-बड़ी डींगें मारने वालों की बातों से इतना तो अवश्य सिद्ध होता है कि जो व्यक्ति क्रोध के वशीभूत होकर अपना खुद का दिमाग बे ठिकाने कर अपने जीवन का मजा ही गंवाकर बैठा होता है, भला वह किसी के होश क्या उड़ाएगा, क्योंकि इसके लिए तो पहले उसे स्वयं होश में आना पड़ेगा।

ऐसे लोगों के दर्शन प्रतिदिन हमें कहीं न कहीं होते ही रहते हैं। क्रोधावेश में कई बार ये लोग अपने कपड़े फाड़ने और बाल नोचने लगते हैं। इनके ऐसे अत्यंत हिंसक व्यवहार के कारण वे स्वयं भी दुखी होते हैं और दूसरों को भी दुखी करते रहते हैं इसलिए सर्वशक्तिमान परमात्मा कहते हैं कि इस क्रोध रूपी अग्नि को योग रूपी शीतल जल से शांत करो, इसी में हमारी एवं दूसरों की भलाई है। संसार में अधिकांश लोगों का कहना होता है कि लोग हमारी बात सीधी और सरल रीती से मानते ही नहीं, इसलिए न चाहते हुए भी हमें क्रोध का सहारा लेना पड़ता है।

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उनका भाव है कि दुनिया में अपना काम निकलवाने के लिए क्रोध का ही सिक्का चलता है, परंतु परमात्मा कहते हैं कि यदि तुम दूसरों पर क्रोध रूपी गोली चलाओगे, कड़वे वचन रूपी पत्थर बरसाओगे, तो निश्चित रूप से मरते समय तुम्हें भी ऐसी पीड़ा होगी जैसे किसी का सीना गोलियों से छलनी हो रहा हो, किसी के सिर पर बम फोड़ दिया गया हो अथवा किसी के माथे पर जोर से पत्थर जा लगा हो। अत: यदि सचमुच जीवन को सुखी बनाना चाहते हैं तो क्रोध की आग को बुझाकर प्रेम की गंगा बहानी चाहिए।  कि जो व्यक्ति दूसरों को कुछ दान करता है, उसे दानी कहा जाता है और जो व्यक्ति समझदार नहीं होता, उसे नादान कहा जाता है परंतु परमात्मा कहते हैं कि जो व्यक्ति क्रोध का दान नहीं करता, वही सच्चे अर्थ में नादान है, इसलिए ऐसे व्यक्ति का कल्याण कभी संभव नहीं हो पाता। तो! यदि आप अपना कल्याण चाहते हो एवं अपने जीवन में सुख-शांति की कामना रखते हो तो क्रोध का दान दें और इस क्रोध रूपी ग्रहण से अपने आप को मुक्त करें। तभी तो कहते हैं ‘दे दान (क्रोध का दान) तो छूटे ग्रहण।’  

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