Edited By Prachi Sharma,Updated: 16 Nov, 2025 07:31 AM

सनातन विचार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश, काल, स्थिति के अनुसार एकात्मक मानव दर्शन का नया नाम देकर लोगों के समक्ष रखा। यह विचार नया नहीं है किंतु 60 वर्ष बाद भी वर्तमान में यह एकात्मक मानव दर्शन पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक है
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जयपुर (ब्यूरो) : सनातन विचार को पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने देश, काल, स्थिति के अनुसार एकात्मक मानव दर्शन का नया नाम देकर लोगों के समक्ष रखा। यह विचार नया नहीं है किंतु 60 वर्ष बाद भी वर्तमान में यह एकात्मक मानव दर्शन पूरे विश्व के लिए प्रासंगिक है। ये विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने आज जयपुर में एकात्म मानवदर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान की ओर से आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए।
डॉ.मोहन भागवत ने कहा, एकात्मक मानव दर्शन को एक शब्द में समझना है तो वह शब्द है धर्म। इस धर्म का अर्थ रिलिजन, मत, पंथ, संप्रदाय नहीं है। इस धर्म का तात्पर्य गंतव्य से है, सब की धारणा करने वाला धर्म है। वर्तमान समय में दुनिया को इसी एकात्म मानव दर्शन के धर्म से चलना होगा।
डॉ. मोहन भागवत ने कहा, भारतीय जब भी बाहर गए किसी को लूटा नहीं, किसी को पीटा नहीं, सबको सुखी किया। भारत में भी पिछले कई दशकों में रहन-सहन, खानपान, वेशभूषा सब बदला होगा, किंतु सनातन विचार नहीं बदला। वह सनातन विचार ही एकात्म मानव दर्शन है और उसका आधार यह है कि सुख बाहर नहीं हमारे भीतर ही होता है। हम अंदर का सुख देखते हैं तब समझ में आता है कि पूरा विश्व एकात्म है। इस एकात्म मानवदर्शन में अतिवाद नहीं है। शरीर, मन, बुद्धि की सत्ता की बात करते हुए उन्होंने कहा, सत्ता की भी मर्यादा है। सबका हित साधते हुए अपना विकास करना यह वर्तमान समय की आवश्यकता है। पूरे विश्व में अनेक बार आर्थिक उठापटक होती है, लेकिन भारत पर इसका असर सबसे कम होता है क्योंकि भारत के अर्थतंत्र का आधार यहां की परिवार व्यवस्था है।