करवाचौथ पर हर सुहागन को करने चाहिए ये सोलह श्रृंगार, बढ़ेगा पति से प्यार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Oct, 2017 12:25 PM

karwa chauth special solah shringar

‘कर ले री सोलह श्रृंगार, बलम तोरा छैल-छबीला, नाजुक कलइयां में गजरे सजा ले, काजल से नैना संवार, कि कर ले री सखी सोलह श्रृंगार....’।

‘कर ले री सोलह श्रृंगार, बलम तोरा छैल-छबीला, नाजुक कलइयां में गजरे सजा ले, काजल से नैना संवार, कि कर ले री सखी सोलह श्रृंगार....’। 


कहने को तो यह सिर्फ किसी फिल्म के गीत के बोल ही हैं लेकिन भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सोलह श्रृंगार करने का बहुत महत्व है। दुल्हन के जब तक सोलह श्रृंगार न किए जाएं तब तक उसमें कुछ कमी सी रहती है। करवा चौथ के व्रत को करके एक ओर जहां पति-पत्नी के प्रेम में और नजदिकियां आती हैं वहीं दूसरी ओर परम्पराओं को भी निभाया जाता है। 


क्या है सोलह श्रृंगार?
करवा चौथ के व्रत पर महिलाएं अपने पति की प्यार भरी नजर पाने के लिए सिर से लेकर पांव तक पूर्ण श्रृंगार करती हैं। बिंदी, सिंदूर, मांग टीका, नथ, काजल, हार, कर्ण-फूल, मेहंदी, चूडिय़ां, बाजूबंध, मुंदरियां, हेयर असैसरीज, कमरबंद, पायल, इत्र और दुल्हन का जोड़ा इन सोलह श्रृंगार में आता है। इन 16 चीजों से सजने पर ही औरत का श्रृंगार पूर्ण होता है जिससे उसकी सुंदरता को चार-चांद लगते हैं। सोलह श्रृंगार करके महिलाएं पति की लम्बी आयु के व्रत रखकर गौरी मां की पूजा करती हैं। 


क्या है इनका महत्व? 
सोलह श्रृंगार का महत्व सिर्फ सजने-सवंरने से ही नहीं है बल्कि इनसे महिलाओं के स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। विवाहित औरत के सोलह श्रृंगार करने से पति-पत्नी के प्यार में भी निरंतर बढ़ौतरी होती है। समय के बदलाव के साथ रोजाना चाहे सोलह श्रृंगार करने का समय न मिल पाए लेकिन करवा चौथ के पावन दिन पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखकर गौरी मां की पूजा करके उनका आर्शीवाद प्राप्त करने का सौभाग्य आसानी से मिल जाता है।


मांग में सिंदूर भरना 
मांग भरना स्त्री के विवाहित होने का सूचक है। एक चुटकी भर सिंदूर से दो लोग जन्मों-जन्मों के साथी बन जाते हैं। शास्त्रों में विवाहिता की मांग भरने के संस्कार को सुमंगली क्रिया कहते हैं। शरीर विज्ञान के अनुसार सिंदूर में पारे जैसी धातु अधिक होने की वजह से चेहरे पर झुर्रियां नहीं पड़तीं और महिलाओं में मौजूद विद्युतीय उत्तेजना नियंत्रित होती है। समय के बदलाव के चलते लंबी मांग भरने का ट्रैंड है। 


बिंदी लगाना
माथे पर सुशोभित बिंदी महिला को जहां आकर्षक बनाती है वहीं पति की प्रिय भी बनाती है। भौहों के बीच में आज्ञाचक्र होता है। बिंदी लगाए जाने वाले स्थान पर ईश्वरीय ऊर्जा के रूप में हमारे संचित संस्कार केंद्रिंत होते हैं जो दिमाग को ऊर्जा प्रदान करते हैं। बाजार में स्टोन वर्क, लिक्विड और कलरफुल कई तरह की बिंदियां मिलती हैं। 


काजल
स्त्री की आंखों को विभिन्न कवियों ने मछली और मृगनयनी की संज्ञा भी दी है। नयना बहुत चंचल और शरारती होते हैं। काजल स्त्री को अशुभ नजरों से बचाता है और नयनों की सुंदरता को चार-चांद लगा देता है। आजकल काजल के साथ आई-लाइनर लगाने का भी रिवाज है जो हरे, नीले, ब्राऊन और काले रंग में मिलते हैं। 


कंगन-चूड़ी
चूडिय़ां मन की चंचलता को दर्शाती हैं तो कंगन मातृत्व की ललक उत्पन्न करता है। इसलिए कंगन दुल्हनों का श्रृंगार और चूडिय़ां लड़कियों का श्रृंगार माना जाता है। मार्कीट में कांच, लाख, प्लास्टिक और मैटल में बहुत से आकर्षक डिजाइंस उपलब्ध हैं।
 

गजरा
बालों में गजरा लगाना बहुत शुभ माना जाता है। स्त्री के बालों में लगा गजरा उसकी स्फूर्ति और ताजगी का प्रतीक माना जाता है। फैशन के दौर में महिलाएं बालों को खोल कर रखती हैं जबकि शास्त्रों के अनुसार उसे अशुभ माना जाता है। ताजे फूलों के गजरों के अलावा आर्टीफिशियल फूलों के गजरे भी बाजार में मिलते हैं जिन्हें कई बार प्रयोग किया जा सकता है। बालों के लिए आजकल आकर्षक असैसरीज मार्कीट में उपलब्ध हैं।
 

बाजुबंद
कुछ इतिहासकारों के अनुसार बाजुबंद मुगलकारों की देन है। पौराणिक कथाओं में भी इन की खूब चर्चा मिलती है। सोने, चांदी और मोतियों से बने बाजुबंद बड़ी उम्र में मांसपेशियों में खिंचाव और हड्डियों में दर्द को नियंत्रित करता है। विवाह के समय वर पक्ष की ओर से यह दुल्हन को पहनाया जाता है। कई महिलाएं मेहंदी से भी बाजूबंद का डिजाइन बनवाती हैं। 


कमरबंद
इसे तड़ागी भी कहा जाता है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए यह सबसे उत्तम है। इसे पहनने से शरीर में स्फूर्ति और उत्साह बना रहता है। यह भी बड़ी उम्र में मांसपेशियों में खिंचाव और हड्डियों में दर्द को नियंत्रित करता है।


पायल 
घर की बहू या दुल्हन को गृहलक्ष्मी की संज्ञा दी जाती है। चांदी से बनी पायल के घुंघुरू की छम-छम पूरे परिवार की शांति को बनाए रखने में गृहलक्ष्मी को सहयोग करती है। माना जाता है कि पायल को सोने में बनवा कर पहनना उचित नहीं है क्योंकि स्वर्ण मां लक्ष्मी जी का प्रतीक है। सोने को शरीर के ऊपरी हिस्से में तो धारण किया जा सकता है लेकिन पांवों में डालना उचित नहीं है। 


बिछुआ
दोनों पांवों के बीच की 3 उंगलियों में बिछुए पहने जाते हैं। सोने का टीका और चांदी के बिछुए पहनने से सूर्य और चंद्रमा दोनों की कृपा बनी रहती है। यह शरीर के एक्यूप्रैशर का काम भी करते हैं। शरीर की तलवे से लेकर नाभि तक की सारी नाडिय़ों और मांसपेशियों को कस कर व्यवस्थित रखते हैं। 


मेहंदी
किसी भी पारिवारिक उत्सव पर लगाई जाने वाली मेहंदी महिलाओं के हार्माेन्स को भी प्रभावित करती है और रक्त संचार को भी नियंत्रित करती है। यह दिमाग को तेज और शांत रखती है। मान्यता अनुसार मेहंदी का रंग जितना अधिक हाथों पर चढ़ता है लड़की को उसके पति और ससुराल से उतना अधिक स्नेह मिलता है। मेहंदी तो मूल रूप से हरी होती है जो चढऩे के बाद लाल रंग छोड़ती है लेकिन आजकल काली मेहंदी या कैमिकल्स वाली मेहंदी हाथों को नुक्सान भी पहुंचा सकती है। 


कान के बुंदे
कान की नसें स्त्री की नाभि से लेकर पैर के तलवे तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बुजुर्गों के अनुसार यदि औरत के नाक और कान में छिद्र न हो तो उसे प्रसव के दौरान अधिक कष्ट सहना पड़ता है। सोने के बुंदे (ईयररिंग) पहनना शुभ माना जाता है लेकिन फैशन के समय में हर ड्रैस के साथ मैचिंग ईयररिंग्स पहनने का चलन है। 


मंगलसूत्र
भारतीय परम्परा के अनुसार स्त्री को अपना गला कभी खाली नहीं रखना चाहिए। मंगलसूत्र में प्राय: काले रंग के मोतियों के लड़ी में लॉकेट या मोर की उपस्थिति जरूरी मानी जाती है। कंधे और सिर का भाग नाडिय़ों से घिरा होता है। गले में पहना जाने वाला हार उन समस्त नाडिय़ों को व्यवस्थित करता है। 


नथ
सुहागन स्त्री के लिए नथ या लौंग पहनना अत्यधिक शुभ माना जाता है। यह रक्त संचार को ग्रीवा भाग में स्थित करवाता है। परम्पराओं के अनुसार इसका आकार बड़ा या छोटा होता है। कालेज गोइंग गर्ल्स भी फिल्मों से प्रभावित होकर कलरफुल स्टोन के नोज-पिन पहनती हैं।  


क्या कहते हैं दुकानदार?
स्त्री अपनी सुंदरता को संवारने के लिए विभिन्न सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग करती है। दुकानदारों का मानना है कि दिन- प्रतिदिन बढ़ रही लूटमार के कारण महिलाएं सोने-चांदी के जेवरों को पहनने में संकोच करती हैं। ऐसे में बाजार में उपलब्ध आर्टीफिशियल ज्यूलरी उनकी डिमांड को पूरी करती है। उनका मानना है कि करवा चौथ पर महिलाएं सोलह श्रृंगार के लिए स्टोन, कुंदन, लाख, प्लास्टिक और मैटल से बने कंगनों और चूडिय़ों को खरीद रही हैं। बड़ी उम्र की महिलाएं तो कांच की चूडिय़ां ही प्रैफर करती हैं जबकि 10-35 वर्ष तक की महिलाएं लेटैस्ट फैशन के हिसाब से श्रृंगार सामग्री खरीदती हैं। सुंदरता को लेकर महिलाओं की पहली पसंद विदेशी सौंदर्य सामग्री है। महिलाएं सजने-संवरने के लिए कोरियन और चाइनीज हेयर असैसरीज की मांग करती हैं। कुछ महिलाएं तो ड्रैस के साथ मैचिंग ज्यूलरी को खरीदने की बजाय किराए पर लेना भी प्रैफर कर रही हैं।

- शीतल जोशी

joshisheetal25@gmail.com

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