Kaveri River: दक्षिण में गंगा की तरह पूजनीय है कावेरी नदी

Edited By Updated: 03 Dec, 2021 09:37 AM

kaveri river

कर्नाटक और तमिलनाडु के लोगों के लिए कावेरी नदी जीवन रेखा से कम नहीं है। यह दक्षिण भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है जो ‘दक्षिण की गंगा’ के रूप में भी जानी जाती है।

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South indian ki ganga: कर्नाटक और तमिलनाडु के लोगों के लिए कावेरी नदी जीवन रेखा से कम नहीं है। यह दक्षिण भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है जो ‘दक्षिण की गंगा’ के रूप में भी जानी जाती है।

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कहां से निकलती है कावेरी
दक्षिण भारत में 2 पर्वतीय क्षेत्र हैं जिन्हें पूर्वी तथा पश्चिमी घाट कहते हैं। ये दोनों नीलगिरी पर्वतमालाओं से मिलती हैं। पश्चिमी घाट में बहुत हरियाली रहती है। इसी घाट के पश्चिम में सहस पर्वत है जिसमें अजंता व बेरुल की गुफाएं हैं। इस स्थान से उत्तर की ओर कर्नाटक में एक प्रदेश कूर्ग पड़ता है। इस प्रदेश में ही साहस पर्वत है जिसके एक कोने में छोटा परंतु सुंदर तालाब है। इसका घेरा 40 मीटर है जिसके पश्चिमी किनारे पर एक छोटा देवी मंदिर है। यही कावेरी नदी का उद्गम स्थल है।

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मिलती जाती हैं अनेक छोटी नदियां
कावेरी नदी कूर्ग से निकल कर कुछ ही दूरी पर ‘ताल नदी’ को अपने में मिला लेती है। ‘कूर्ग’ में 7 किलोमीटर की छोटी-सी यात्रा के दौरान हारिगी, मुत्तार व मुडी नदियां कावेरी में आ मिलती हैं। अब कावेरी मैसूर की ओर बहती है। इस दौरान इसमें कनका, हेमवती आदि नदियां आकर मिलती हैं। भागमंडलम नामक स्थान पर कनका और गाजोटी नदियां कावेरी में आ मिलती हैं। मैसूर राज्य में लक्ष्मण तीर्थ नामक एक और नदी दक्षिण से बहकर कावेरी में समा जाती है। यह 190 किलोमीटर लम्बी नदी भी सहस पर्वत से ही जन्म लेती है। मैसूर की सीमा में ही शिमसा व अर्कावती नदियां, शिवसमुद्रम से कुछ ही दूरी पर कावेरी में आ मिलती हैं।
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मैसूर राज्य को छोड़ने के बाद कावेरी-सेलम व कोयम्बटूर की सीमा पार कर 2 पर्वतों के बीच होकर बहती हुई तमिलनाडु राज्य में प्रवेश करती है। इस स्थान पर भवानी, मोइल व अमरावती नदियां इसमें आ मिलती हैं। केवल भवानी ही साल भर बहती है। जब यह नदी कन्नड़ प्रदेश को छोड़कर तमिलनाडु में प्रवेश करती है, तब दूसरा बड़ा जलप्रताप आता है। इसे ‘होके नागल’ कहते हैं। यहां 55 मीटर की ऊंचाई से प्रचंड वेग से कावेरी नदी का पानी गिरता है।

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कन्नड़ में ‘होकी’ का अर्थ धुआं होता है, अत: जब पानी के फव्वारे जमीन पर से उठते हैं तो धुएं के समान दिखाई देते हैं।
इसके निकट एक प्राकृतिक गहरा व विशाल जलाशय बना हुआ है। इसे ‘याज्ञकुंडल’ अर्थात ‘यज्ञ की देवी’ कहते हैं। इससे 4 किलोमीटर आगे कावेरी नदी अब समतल मैदान पर बहने लगती है।
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‘सेलम’ व ‘कोइमतूर’ से गुजरते समय कावेरी 2 पर्वतों के बीच से गुजरती है। ये पर्वत 300-400 मीटर ऊंचे हैं। इन्हीं के बीच एक जिला नरसिंहपुर है। इसके तिरुमकुदालु गांव के निकट ‘काबिनी नदी’, ‘गुंडालू’ नदी को साथ मिलाकर कावेरी में आ मिलती है। तिरुचिरापल्ली से लगभग 25-30 किलोमीटर दूरी पर कावेरी 2 भागों में बंट जाती है। यहां से उत्तर की ओर मुड़ कर बहने वाली हिस्से का नाम कोलरुन नदी है। यह अच्छावरम् के निकट बंगाल की खाड़ी में जा गिरती है।

दक्षिण की ओर मुड़ कर बहने वाले हिस्सा का नाम ‘कावेरी’ नदी है। श्रीरंगम के निकट कावेरी व उसकी शाखा कोल्लिडम एक-दूसरे के समानांतर बहती हैं।

कावेरी के पास से अनेक नदियां मैसूर के पठार पर से होकर बहती हैं। जैसे पिनाकिन जो दो भागों-पेनार व पोन्मइयार में बंटी है। इसमें रेतीली जमीन पर सोना पाया जाता है। पैन्नार व कावेरी को मिलाने के लिए कडप्पा व कुर्नेलु के बीच एक नहर निकाली गई।

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नदी पर बने हैं प्रमुख बांध
कावेरी के पानी से सिंचाई के अलावा बिजली उत्पादन भी किया जाता है। इस नदी पर ही प्रसिद्ध ‘कृष्ण राज सागर’ नामक बांध तथा जलाशय का निर्माण हुआ है।

सीता पर्वत व पालमल्लै के बीच मेट्टूर नामक गांव के निकट ‘मैट्टूर बांध’ बना है। यह ‘कृष्णराज सागर बांध’ से भी बड़ा है। अन्य बांधों में काबिनी, हारंगी और हेमवती आदि शामिल हैं। 

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