Kullu Dussehra Mela: 7 से 10 दिनों तक चलता है कुल्लू दशहरा मेला, कुछ ऐसा होता है आकर्षण

Edited By Updated: 28 Sep, 2025 02:01 PM

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Kullu Dussehra Story & Rituals:  कुल्लू दशहरा केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि भगवान रघुनाथ (राम) और महिषासुर वध जैसी पौराणिक घटनाओं का प्रतीक है। कहा जाता है कि मनु वंश के समय हिमालय के क्षेत्रों में बुराई और अधर्म फैला था। स्थानीय देवी-देवताओं ने...

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Kullu Dussehra Story & Rituals: कुल्लू दशहरा केवल एक त्योहार नहीं है, बल्कि भगवान रघुनाथ (राम) और महिषासुर वध जैसी पौराणिक घटनाओं का प्रतीक है। कहा जाता है कि मनु वंश के समय हिमालय के क्षेत्रों में बुराई और अधर्म फैला था। स्थानीय देवी-देवताओं ने मिलकर अधर्म पर धर्म की विजय का संदेश दिया। कुल्लू दशहरा इस दिव्यता और विजय की स्मृति में मनाया जाता है। कुल्लू दशहरा केवल एक लोक पर्व नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और भक्ति का मिश्रण है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्कार्य, साधना और सामूहिक भक्ति से हर बुराई पर विजय पाई जा सकती है। कुल्लू दशहरा का शास्त्रीय और सामाजिक महत्व इसे भारत के अद्वितीय धार्मिक त्योहारों में से एक बनाता है।

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कुल्लू दशहरा में देवी और देवताओं की भागीदारी
कुल्लू दशहरा में देवताओं की मूर्तियों और प्रतिमाओं का भव्य रथयात्रा के माध्यम से निकाला जाता है। मुख्य देवता रघुनाथ के साथ स्थानीय देवी-देवता जैसे महत्मा रघुनाथ जी और अन्य क्षेत्रीय देवता भी शामिल होते हैं। यह पर्व दर्शाता है कि स्थानीय देवी-देवताओं का आशीर्वाद और सामूहिक शक्ति बुराई पर विजय दिलाती है।

कुल्लू दशहरा में मेला और आयोजन
कुल्लू दशहरा 7 से 10 दिनों तक चलता है, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान, रथयात्रा, लोकनृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं।

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कुल्लू दशहरा में मेला स्थल: मुख्य स्थान रघुनाथ मंदिर के आसपास सजाया जाता है। भक्त और पर्यटक दोनों इस मेले में शामिल होते हैं और भक्ति, संस्कृति और उत्सव का अनुभव करते हैं।

कुल्लू दशहरा में वास्तु और धार्मिक दृष्टिकोण
कुल्लू दशहरा में मंदिर और रथ का सही दिशा में स्थापना अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है। उत्तर-पूर्व दिशा में मूर्तियों का स्थापित होना शुभ माना जाता है। पूजा स्थल पर दीप, धूप और पुष्प का सही प्रयोग नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाता है।

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कुल्लू दशहरा में सांस्कृतिक और सामाजिक संदेश
कुल्लू दशहरा केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक है। यह पर्व लोगों को धर्म और संस्कृति के आदर्शों से जोड़ता है। लोकगीत, नृत्य और परंपरा के माध्यम से युवाओं में श्रद्धा और नैतिकता का विकास होता है।

कुल्लू दशहरा में आध्यात्मिक और भक्ति विधियां
रथयात्रा के दौरान भजन, कीर्तन और मंत्र जप अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। कुल्लू दशहरा में दीप प्रज्वलन और हवन से वातावरण शुद्ध होता है और देवी-देवताओं की कृपा मिलती है।

भक्तों का संदेश: अधर्म पर धर्म की विजय और ज्ञान व भक्ति का आदर्श जीवन।

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