NARASIMHA TEMPLES: भगवान नरसिंह के इन रहस्यमय मंदिरों के बारे में नहीं जानतें होंगे आप लोग

Edited By Updated: 01 Jul, 2025 07:00 AM

Lord Narasimha temples: भगवान विष्णु को जगत का पालनहार कहा जाता है। भगवान विष्णु जगत के कल्याण के लिए और अपने भक्तों की रक्षा के लिए समय-समय पर इस संसार में अवतरित हुए है। भगवान विष्णु के एक ऐसे ही अवतार ने अपने भक्त की रक्षा के लिए एक असुर का संहार...

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Lord Narasimha temples: भगवान विष्णु को जगत का पालनहार कहा जाता है। भगवान विष्णु जगत के कल्याण के लिए और अपने भक्तों की रक्षा के लिए समय-समय पर इस संसार में अवतरित हुए है। भगवान विष्णु के एक ऐसे ही अवतार ने अपने भक्त की रक्षा के लिए एक असुर का संहार कर दिया था। वो है भगवान विष्णु के चौथे अवतार भगवान नरसिंह। भगवान विष्णु ने ये अवतार अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करने तथा असुर हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए धारण किया था। भगवान का ये रुप बहुत ही उग्र हो क्रोधित रुप माना जाता है, जिसमें भगवान का आधा रुप सिंह का है और वहीं आधा रुप मानव का है। भगवान नरसिंह के ऐसे बहुत से प्रसिद्ध मंदिर है। जहां पर भक्त उनके दर्शन के लिए दूर-दूर से आते है। इन मंदिरों से बहुत सी ऐसी मान्यताएं जुड़ी है, जो इन मंदिरों का महत्व और भी ज्यादा बढ़ा देता है। तो  आइए जानते हैं भगवान नरसिंह के कुछ ऐसे ही बेहद प्रसिद्ध और खास मंदिरों के बारे में-

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तेलंगाना के मल्लूर में स्थित भगवान नरसिंह जी का मंदिर  
ये एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान की मूर्ति का तव्चा इंसानों जैसी है। यह मंदिर है तेलंगाना के मल्लूर में प्राचीन नरसिम्हा मंदिर है। जहां ऐसी मान्यता है कि भगवान नरसिंह की प्रतिमा जीवित है। कहा जाता है कि भगवान की प्रतिमा देखने से ऐसा लगता है कि जैसे मूर्ति की त्वचा बिल्कुल इंसानों के जैसे हो। भगवान नरसिंह की ये प्रतिमा लगभग 10 फीट ऊंची है और मूर्ति का पेट मानव त्वचा के सामान मुलायम है। लोगों में ऐसी आस्था है कि जैसे इस मंदिर की प्रतिमा में दिव्य ऊर्जा का वास है और अगर कोई मूर्ति को दबाता है तो वहां एक गड्ढा बन जाता है और कई बार तो उसमें से खून निकलने लगता है। इसलिए वहां के पुजारी लगातार भगवान नरसिंह की मूर्ति पर चंदन का लेप लगाते है ताकि खून बहना बंद हो जाएं।

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उत्तराखंड जोशीमठ में स्थित भगवान नरसिंह जी का मंदिर 
ये मंदिर उत्तराखंड जोशीमठ में स्थित है जिसे नृसिंह बदरी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि इस मंदिर के दर्शन मात्र से ही जातक के सभी संकट दूर हो जाते हैं। ये मंदिर बद्रीनाथ धाम के रास्ते में स्थित है और ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन के बिना बद्रीनाथ धाम की यात्रा अधूरी है। इसे बद्रीविशाल का शीतकालीन घर भी माना जाता है।  सर्दियों में जब बदरीनाथ धाम के पट बंद हो जाते है तब पुजारी बद्रीविशाल जी की मूर्ति को इस मंदिर में ले आते हैं। इसलिए इस मंदिर को बद्रीविशाल का शीतकालीन घर भी कहा जाता है। इस मंदिर से एक और मान्यता जुड़ी है कि इस मंदिर में भगवान नरसिंह की प्रतिमा का बायां हाथ धीरे-धीरे कमज़ोर होता जा रहा है और कहा जाता है कि कलयुग के अंत में ये हाथ टूट जाएगा।

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विशाखापट्टनम सिंहाचल पर्वत पर स्थित है भगवान नरसिंह जी का मंदिर    
अगले मंदिर की बात करें तो ये मंदिर है विशाखापट्टनम से करीब 16 किलोमीटर की दूरी पर सिंहाचल पर्वत पर स्थित है जिसे सिंहाचल मंदिर और श्री वराह लक्ष्मी नरसिंह मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित है । एक मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद ने करवाया था और ये भी कहा जाता है कि यहां पर स्वयं भगवान नरसिंह निवास करते हैं। वहीं इस मंदिर में मां लक्ष्मी भी भगवान नरसिंह के साथ निवास करती है। इस मंदिर की पुन स्थापना से जुड़ी एक कथा मिलती है। इस कथा के अनुसार मंदिर मानवीय लापरवाही का शिकार हो गया था। एक बार लुनार वंश के राजा अपनी पत्नी उर्वशी के साथ अपने विमान में बैठकर कहीं जा रहे थे। अचानक से किसी अदृश्य शक्ति के प्रभाव में आकर उनका विमान सिंहाचल पर्वत पर जा पहुंच। जहां पर देववाणी से प्रेरित होकर उन्होंने धरती के अंदर से भगवान नरसिंह की यह प्रतिमा बाहर निकाली और देववाणी के अनुसार  उस प्रतिमा को चंदन के लेप से ढक कर पुन: स्थापित कराया। कहा जाता है कि उसी देववाणी के द्वारा यह आदेश किया गया कि साल में एक ही बार ये चंदन के लेप भगवान नरसिंह की प्रतिमा से हटाया जाएगा। कहा ये भी जाता है कि भगवान नरसिंह की मूर्ति पर मोटे चंदन की परत इसलिए लगाई जाता है ताकि भगवान का उग्र रुप शांत रहें। ये परत केवल साल में एक बार अक्षय तृतीया के दिन ही हटाई जाती है।

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