आखिर क्यों धारण करते हैं भगवान शिव हाथों में डमरू और गले में नाग ?

Edited By Prachi Sharma,Updated: 19 May, 2025 03:47 PM

भगवान शिव जिन्हें सारा संसार महादेव, भोलेनाथ, शंकर, और रुद्र जैसे नामों से भी जानता है, त्रिदेवों में एक है। कहते हैं जिनका कोई नहीं होता उनके भगवान शिव होते हैं।

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Mahadev secrets: भगवान शिव जिन्हें सारा संसार महादेव, भोलेनाथ, शंकर, और रुद्र जैसे नामों से भी जानता है, त्रिदेवों में एक है। कहते हैं जिनका कोई नहीं होता उनके भगवान शिव होते हैं। महादेव को विध्वंसक माना जाता है लेकिन साथ ही साथ करुणा, तपस्या, त्याग और प्रेम के प्रतीक भी माने जाते हैं। भगवान शिव की वेशभूषा में उनके साथ जुड़ी हर एक वस्तु में गुण और आध्यात्मिक अर्थ बताया गया है। अक्सर देखा गया है भगवान शिव हमेशा जटाओं में गंगा, माथे पर चंद्रमा, गले में नाग, हाथ में डमरू और त्रिशूल लिए होते हैं लेकिन क्या आपने सोचा है कि इन सबके पीछे क्या कारण हो सकते हैं ? क्या है इन सब चीजों के पीछे का रहस्य। आज जानेंगे पौराणिक कथाओं में वर्णित इन रहस्यों के बारे में ।

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सबसे पहले बात करते हैं कि भगवान शिव ने क्यों धारण की थी गंगा
पौराणिक कथाओं के अनुसार अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्त करने के लिए महाराज भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए घौर तर किया था जिससे प्रसन्न होकर देवी गंगा धरती पर अवरित होने के लिए तैयार हो गई लेकिन गंगा का प्रवाह अति उग्र और तीव्र होने के कारण वे धरती के लिए संहार का कारण हो सकती थी, जिससे बचाव के लिए भगीरथ ने भगवान शिव की आराधना की। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने भगीरथ की इच्छा पर गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया था।

बात करें भगवान शिव के त्रिशूल की तो धर्मग्रंथों में भगवान शिव के त्रिशूल का नाम पिनाक बताया गया है। कथाओं में कहा गया है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मनाद से जब शिव प्रकट हुए तो साथ ही रज, तम, सत यह तीनों गुण भी प्रकट हुए। यह तीनों गुण शिवजी के तीन शूल यानी त्रिशूल बने। मान्यता है कि  त्रिशूल तीनों काल भूत, वर्तमान, और भविष्य व तीन लोक स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल को भी दर्शाता है। कहा गया है कि इन तीनों गुण के बिना सृष्टि का संचालन नहीं हो सकता था, इसलिए शिव जी ने इनको अपने हाथों में धारण किया।

इसके अलावा बात करें भगवान शिव के डमरू को धारण करने के पीछे के रहस्य के बारे में , तो धार्मिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि भगवान शिव के डमरू को धारण सृष्टि के संतुलन के लिए किया था, कहा जाता है कि जब ज्ञान और सुर की देवी मां सरस्वती प्रकट हुई तो उन्होंने वीणा के स्वरों से सृष्टि में ध्वनि का संचार किया लेकिन ऐसा कहा जाता है कि जो ध्वनि पैदा हुई वे सुर व संगीत रहित थी। फिर भगवान शिव ने 14 बार डमरू बजाया और नृत्य किया। कहते है इसी से संगीत के धुन और ताल का जन्म हुआ।

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अक्सर देखा जाता है कि भगवान शिव अपने गले में नाग को धारण करते है जिसका नाम वासुकी है। पुराणों के अनुसार कहा जाता है नाग वासुकी नागों के राजा थे और भगवान शिव के भक्त। नाग वासुकी सदैव भगवान शिव की भक्ती में लीन रहते थे। कहतें है इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वासुकी को अपने गले में धारण करने का वरदान दिया।

बात करें भगवान शिव के चंद्रमा को शीश पर धारण करने के पीछे के कारण की तो एक पौराणिक कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्र देव के साथ करवाया था लेकिन चंद्र देव रोहिणी से अधिक प्रेम करते थे। जब इस बात का राजा दक्ष को पता चला तो उन्होंने चंद्र देव तो क्षय रोग से ग्रसित होने का श्राप दे दिया। इस श्राप से बचने के लिए चंद्रमा ने भगवान शिव की तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने चंद्रमा के प्राण बचाए और उन्हें अपने शीश  पर धारण किया।    
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