Edited By Jyoti,Updated: 03 Dec, 2022 12:58 PM
रात भर दोनों पक्षों के नेता और सब सेनाध्यक्ष युद्ध की तैयारियों में लगे रहे। सुबह होने पर दुर्योधन की आज्ञा से उसके पक्ष के राजा अपनी-अपनी सेना सहित संग्राम भूमि में जाने के लिए तैयार हो गए।
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रात भर दोनों पक्षों के नेता और सब सेनाध्यक्ष युद्ध की तैयारियों में लगे रहे। सुबह होने पर दुर्योधन की आज्ञा से उसके पक्ष के राजा अपनी-अपनी सेना सहित संग्राम भूमि में जाने के लिए तैयार हो गए।स्नान करके सफेद वस्त्र धारण करने और हवन-पूजन आदि के बाद अस्त्र-शस्त्रों और कवच आदि से सज-धज कर स्वस्तिक वाचन करते हुए वे पांडवों पर चढ़ाई करने के लिए अपनी-अपनी सेना लेकर कुरुक्षेत्र की ओर द्रोणाचार्य के नेतृत्व में चल पड़े। सबसे पहले द्रोणाचार्य के मित्र राजा विंद और अनुविंद एवं कैकेय देश के राजा बाहीक ने आगे की ओर प्रस्थान किया।
इनके पीछे अश्वत्थामा, भीष्म पितामह, जयद्रथ, शकुनि आदि दक्षिण, पश्चिम, पूर्व और उत्तर के प्रदेशों के नरेश आदि अपनी-अपनी सेनाओं के साथ अलग-अलग दल बना कर चल पड़े। इनके पीछे बड़ी-बड़ी सेनाओं से घिरे कृतवर्मा, त्रिगर्त नरेश और भाइयों तथा कौरव अतिरथियों से घिरे दुर्योधन, दुशासन और कर्ण आदि चल रहे थे।
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‘‘भूरिश्रवा, शल्य और कौशल राज इन सब ने भी कूच किया। अपनी-अपनी सेनाओं से घिरे धृतराष्ट्र के सभी पुत्र कवच धारण करके व्यवस्थापूर्वक कुरुक्षेत्र के पिछले आधे भाग में खड़े हो गए। दुर्योधन ने अपनी छावनी को इस तरह सजाया था कि बहुत होशियार नागरिकों को भी हस्तिनापुर और छावनी में कोई अंतर दिखाई नहीं पड़ रहा था।
उसी प्रकार राजा युधिष्ठिर ने भी धृष्टद्युम्न, महाराज द्रुपद तथा राजा विराट आदि से अपने वीरों से सज्जित अपनी सेनाओं सहित रणभूमि को प्रस्थान करने की प्रार्थना की तथा धृष्टद्युम्र के नेतृत्व में अभिमन्यु और अन्य वीरों को रणभूमि में जाने को कहा। राजाओं के हाथियों, घोड़ों, पैदल सैनिकों, घुड़सवारों और रथियों-महारथियों को अच्छे-अच्छे भोजन देने का प्रबंध पहले से ही कर दिया था। (क्रमश:)