Edited By Sarita Thapa,Updated: 07 Nov, 2025 02:27 PM

एक बार महाराजा रणजीत सिंह घोड़े पर सवार होकर सैनिकों के साथ जा रहे थे। अचानक एक पत्थर उनके सिर पर आकर लगा, उनका लश्कर रुक गया और पत्थर मारने वाले की तलाश शुरू हो गई।
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Maharaja Ranjit Singh story: एक बार महाराजा रणजीत सिंह घोड़े पर सवार होकर सैनिकों के साथ जा रहे थे। अचानक एक पत्थर उनके सिर पर आकर लगा, उनका लश्कर रुक गया और पत्थर मारने वाले की तलाश शुरू हो गई। थोड़ी देर में सैनिक एक बुढ़िया को पकड़ लाए जो भय से थरथर कांप रही थी। सैनिकों ने कहा, ‘‘महाराज इस बुढ़िया ने आपको पत्थर मारा है।’’
महाराजा ने बुढ़िया को पास बुलाकर कारण पूछा तो वह बोली, ‘‘महाराज मेरे बच्चे दो दिन से भूखे हैं, अनाज का एक दाना भी घर में नहीं है, जब कोई उपाय न सूझा तो भोजन की तलाश में घर से निकल पड़ी।
सामने के पेड़ पर फल देखकर मैं पत्थर मारकर इन्हें तोड़ने की कोशिश कर रही थी ताकि बच्चों के पेट की ज्वाला शांत कर सकूं। दुर्भाग्य ने यहां भी मेरा साथ नहीं छोड़ा और पत्थर आपको लग गया। मैं माफी चाहती हूं।’’

महाराजा ने सेनापति को आदेश दिया, ‘‘इसे कुछ अशर्फियां देकर छोड़ दो।’’ सेनापति ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘महाराज यह कैसा ईनाम, यह तो सजा की हकदार है।’’
रणजीत सिंह ने हंसकर उत्तर दिया, ‘‘जब पत्थर मारने पर निर्जीव पेड़ भी मीठा फल देता है तो मनुष्य होकर मैं बुढ़िया को निराश क्यों करूं।’’ बुढ़िया महाराजा के सामने नतमस्तक हो गई। महाराजा रणजीत सिंह की न्यायप्रियता इतिहास में अमर है।
