Edited By Jyoti,Updated: 30 Sep, 2022 11:37 AM
बगदाद के हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज के पास एक बढिय़ा हीरे की अंगूठी थी। बड़े-बड़े जौहरी भी उसका मूल्य नहीं आंक सके। बगदाद में एक समय भयंकर अकाल पड़ा। लोग भूख से छटपटा कर मरने लगे। बादशाह ने अपना खजाना खोल दिया
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बगदाद के हजरत उमर बिन अब्दुल अजीज के पास एक बढ़िया हीरे की अंगूठी थी। बड़े-बड़े जौहरी भी उसका मूल्य नहीं आंक सके। बगदाद में एक समय भयंकर अकाल पड़ा। लोग भूख से छटपटा कर मरने लगे। बादशाह ने अपना खजाना खोल दिया, पर वह कुछ ही दिनों में खाली हो गया। अंत में हजरत उमर ने अपनी बहुमूल्य अंगूठी निकालकर एक दरबारी को देते हुए कहा-जाओ, इसे बेच दो और इससे जो धन प्राप्त हो उससे अन्न मंगाकर भूखी प्रजा को बांट दो।
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दरबारियों ने कहा-हजरत! आप यह क्या करने जा रहे हैं, अकाल तो कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाएगा किन्तु इस प्रकार की बेशकीमती अंगूठी कहां मिलेगी? हजरत की आंखों से आंसू टपकने लगे, उन्होंने कहा-क्या यह अंगूठी किसी इंसान के प्राणों से भी अधिक प्यारी है?
अंगूठी भले ही चली जाए, पर इंसानों के प्राण बच जाएं मैं यही चाहता हूं। हमें दूसरों के काम आते रहना चाहिए। कहते हैं, उस अंगूठी को बेच कर जो धन मिला, उससे पूरे राज्य की जनता को एक सप्ताह तक भर पेट अन्न मिला। लाखों अंगूठियों से भी जो कीॢत नहीं मिल सकती थी वह मूल्यवान कीॢत हजरत को मिली। वे सच्चे मायनों में इंसान थे।