Edited By Jyoti,Updated: 12 Jun, 2021 12:40 PM
भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को एक बार विदेश यात्रा के दौरान उपहार में हाथी दांत की एक कलम-दवात मिली। लिखते समय वह उसी कलम-दवात का अधिक प्रयोग करते थे।
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भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को एक बार विदेश यात्रा के दौरान उपहार में हाथी दांत की एक कलम-दवात मिली। लिखते समय वह उसी कलम-दवात का अधिक प्रयोग करते थे। जिस कमरे में उन्होंने कलम-दवात रखी थी उसकी सफाई का काम उनका प्रिय सेवक तुलसी करता था। एक दिन मेज साफ करते समय दवात नीचे गिर कर टूट गई। दवात तो टूटा ही उसकी स्याही से कीमती कालीन भी खराब हो गया।
राजेन्द्र बाबू जब अपने कार्यालय में आए तो दवात को टूटा हुआ देखकर समझ गए कि तुलसी से ही वह दवात टूटी होगी। उन्होंने सचिव से कहा, ऐसे आदमी को तुरन्त बदल दो। सचिव ने आदेश के अनुसार तत्काल तुलसी को वहां से हटा दिया तथा राष्ट्रपति भवन में दूसरा काम दे दिया।
उस दिन राजेन्द्र बाबू काम तो करते रहे, और आने-जाने वाले अतिथियों से भी मिलते रहे, किंतु उनके मन में खलबली मची रही कि आखिर एक मामूली-सी गलती के लिए उन्होंने तुलसी को इतना बड़ा दंड क्यों दिया। शाम को राजेन्द्र बाबू को जब फुर्सत मिली तो उन्होंने अपने सचिव से कहा कि तुलसी को बुलाओ।
तुलसी को बुलाया गया। वह सकपकाया-सा आकर खड़ा हो गया। उसके आते ही महानता के प्रतीक राजेन्द्र बाबू कुर्सी से खड़े हो गए और बोले तुलसी मुझे माफ कर दो। बेचारे तुलसी की समझ में नहीं आया कि वह क्या जवाब दे? उसके मुंह से कुछ न निकल सका।
वह राजेन्द्र बाबू के पैरों पर गिर पड़ा और बोला, ‘‘बाबू। आप यह क्या कह रहे हैं? आप तो दयालु हैं, हमारे अन्नदाता हैं।’’
डा. राजेन्द्र बाबू बोले कि पहले तुम अपनी पहली वाली ड्यूटी पर आओ तब मुझे संतोष होगा। यह सुनते ही तुलसी की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी।