Motivational Story: संस्कृति की परीक्षा या विकृति का उदय, जानें क्या है सच

Edited By Updated: 19 Aug, 2025 06:02 AM

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Motivational Story: प्रकृति हमें अनेक प्रकार से शिक्षा प्रदान करती है। कभी पशु-पक्षियों के द्वारा, कभी औषधि वनस्पतियों के माध्यम से। बात प्रकृति को समझने और उससे सीख लेने की है।

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Motivational Story: प्रकृति हमें अनेक प्रकार से शिक्षा प्रदान करती है। कभी पशु-पक्षियों के द्वारा, कभी औषधि वनस्पतियों के माध्यम से। बात प्रकृति को समझने और उससे सीख लेने की है। हम देखते हैं कि हमारे आस-पड़ोस के परिवेश में, वनों में कुछ ऐसी बेलें होती हैं जो पहले तो किसी बड़े वृक्ष का सहारा पाकर उस पर धीरे-धीरे चढ़ जाती हैं फिर उस पेड़ पर पूरी तरह से फैल कर उसे जकड़ लेती हैं। धीरे-धीरे पेड़ का अपना रंग-रूप बदलने लगता है और कुछ समय बाद वह बेल ही दिखाई देने लगती है। एक समय ऐसा आता है जब उस वृक्ष का तना और मोटी शाखाएं उसके अपने रह जाते हैं बाकी टहनियों और पत्तों पर वह बेल पूरी तरह से अपनी मजबूत पकड़ बना लेती है। पेड़ का अस्तित्व धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है और उस पर पनप जाती है एक छोटी-सी बेल।

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ऐसा ही एक उदाहरण है जलकुंभी का। जलकुंभी एक ऐसा पौधा होता है जो पहले किसी तालाब, पोखर के किनारे दिखाई देता है। फिर धीरे-धीरे कुछ हफ्तों में तालाब के सब कोनों में एक-दो पौधे तैरते दिखाई देने लगते हैं। बड़े ही सुंदर दिखते हैं। फिर अचानक कुछ महीनों या सालों में पानी दिखाई देना बंद हो जाता है। सारे तालाब के ऊपर सिर्फ हरा-हरा ही दिखाई देता है। पानी की आक्सीजन खत्म होने लगती है।अंदर का जीवन, मछलियां मरने लगती हैं, धीरे-धीरे पानी सडऩे लगता है। सड़ांध किलोमीटर दूर से महसूस होनी शुरू हो जाती है और बाकी प्राणियों का जीवन मुश्किल हो जाता है। जिस-जिस तालाब में ये जलकुंभी पहुंचती है सब खत्म कर देती है। 

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जलकुंभी को समाप्त करने के लिए पहले उसको बाहर निकाल कर सुखाया जाता है और सूखने के बाद आग लगा कर उसका बीज तक नाश कर दिया जाता है ताकि दोबारा न पनप सके। ऐसा ही कुछ समाज में भी घटता रहता है। कभी परिवार में, कभी समाज में, कभी राष्ट्र में, कभी पूरे विश्व में ऐसा देखने में आता है कि कोई एक गुट या समुदाय कभी अपने विचार के बल पर, कभी तलवार के बल पर किसी दूसरे गुट या समुदाय के बीच में घुस कर धीरे-धीरे अपना संख्या बल बढ़ा करके अपनी जड़ें जमा लेता है।

फिर एक समय ऐसा आता है कि पेड़ की तरह देश का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है और बेल तथा जलकुंभी की तरह वह सम्प्रदाय अपना असली रंग दिखाने लगता है। तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वर्तमान में राष्ट्रीय परिदृश्य में कुछ सामाजिक एवं अराजक तत्व जलकुंभी की तरह धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाते जा रहे हैं और उसका दुष्प्रभाव समाज एवं राष्ट्र में भी देखने को मिलने लगा है अगर समय रहते इसको रोका नहीं गया तो एक दिन सारा तालाब प्रदूषित हो जाएगा। सत्य सनातन सांस्कृतिक परम्पराओं को बनाए रखने तथा उसके प्रति आस्था और श्रद्धा मजबूत करने का यह संक्रमण काल है, ताकि भारतीय ज्ञान परम्परा और सनातन चिंतन दृष्टि को बनाए रखा जा सके।

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