Nagvasuki Temple: गंगा किनारे बसा नागों का मंदिर, जहां दर्शन के बिना अधूरी है संगम नगरी की तीर्थयात्रा

Edited By Updated: 29 Jul, 2025 10:41 AM

nagvasuki temple

Nagvasuki Temple: प्रयागराज, जिसे धर्म और आस्था की नगरी कहा जाता है, वहां त्रिवेणी संगम के किनारे उत्तर दिशा में दारागंज क्षेत्र के उत्तरी छोर पर एक अत्यंत प्राचीन मंदिर स्थित है- नागवासुकी मंदिर। इस मंदिर में नागों के अधिपति वासुकी नाग की पूजा की...

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Nagvasuki Temple: प्रयागराज, जिसे धर्म और आस्था की नगरी कहा जाता है, वहां त्रिवेणी संगम के किनारे उत्तर दिशा में दारागंज क्षेत्र के उत्तरी छोर पर एक अत्यंत प्राचीन मंदिर स्थित है- नागवासुकी मंदिर। इस मंदिर में नागों के अधिपति वासुकी नाग की पूजा की जाती है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, जो भी तीर्थयात्री प्रयागराज की यात्रा पर आता है, उसकी तीर्थयात्रा तब तक पूर्ण नहीं मानी जाती जब तक वह नागवासुकी भगवान के दर्शन न कर ले। यह मंदिर आस्था, परंपरा और धार्मिक विश्वास का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना जाता है।

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मंदिर से जुड़ी है ये कथा 
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया था, तब नागराज वासुकी को मंथन की रस्सी के रूप में सुमेरु पर्वत के चारों ओर लपेटा गया था। इस कठिन कार्य के बाद वासुकी बुरी तरह घायल हो गए थे। कहते हैं कि भगवान विष्णु के निर्देश पर उन्होंने विश्राम के लिए प्रयागराज की इस पावन भूमि को चुना। यहीं पर उनका वास हुआ और तभी से यह स्थान नागवासुकी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

मान्यता है कि जो भक्त सावन के महीने में यहां आकर वासुकी नाग का दर्शन और पूजन करते हैं, उनकी जीवन की सभी रुकावटें दूर हो जाती हैं। साथ ही, कालसर्प दोष से भी मुक्ति प्राप्त होती है। खासकर नाग पंचमी के अवसर पर देशभर से हजारों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं और आस्था के साथ दर्शन करते हैं।

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The importance of this temple increases in the month of Savan सावन में बढ़ जाती है इस मंदिर की महत्वता 

सावन के पावन महीने में नागवासुकी मंदिर का विशेष महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि वासुकी नाग, भगवान शिव के गले में विराजमान नागों के अधिपति हैं। समुद्र मंथन के पश्चात, भगवान विष्णु ने उन्हें विश्राम के लिए प्रयागराज में इस स्थान पर स्थान प्रदान किया था। कहते हैं कि एक समय ब्रह्मा जी ने इसी स्थल पर भगवान शिव की स्थापना के उद्देश्य से एक विशेष यज्ञ का आयोजन किया था। उस यज्ञ में वासुकी नाग भी सम्मिलित हुए थे। जब वे यज्ञ के बाद लौटने लगे, तो भगवान विष्णु ने सुझाव दिया कि इस पवित्र स्थान पर उन्हें स्थायी रूप से स्थापित कर दिया जाए। तभी से यह स्थान नागवासुकी जी की उपासना का प्रमुख केंद्र बन गया है।

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