ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंगः इसके निर्माण का रहस्य नहीं जानते होंगे आप

Edited By Lata,Updated: 28 Jul, 2019 05:21 PM

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सावन का पवित्र महीना शुरू है और इस दौरान अगर 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में बात न हो तो कुछ अधूरा सा ही लगता है।

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सावन का पवित्र महीना शुरू है और इस दौरान अगर 12 ज्योतिर्लिंगों के बारे में बात न हो तो कुछ अधूरा सा ही लगता है। पिछले दिनों हम आपको हर एक ज्योतिर्लिंग के बारे में विस्तार से बता रहे हैं तो आज हम आपको चौथे ज्योतिर्लिंग यानि ओंकारेश्वर के बारे में बताएंगे। 
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ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्यप्रदेश में पवित्र नर्मदा नदी के तट पर स्थित है। इस स्थान पर नर्मदा के दो धाराओं में विभक्त हो जाने से बीच में एक टापू-सा बन गया है। इस टापू को मान्धाता-पर्वत या शिवपुरी कहते हैं। नदी की एक धारा इस पर्वत के उत्तर और दूसरी दक्षिण होकर बहती है। दक्षिण वाली धारा ही मुख्य धारा मानी जाती है और इसी मान्धाता-पर्वत पर श्री ओंकारेश्वर-ज्योतिर्लिंग का मंदिर स्थित है। पूर्वकाल में महाराज मान्धाता ने इसी पर्वत पर अपनी तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसी से इस पर्वत को मान्धाता-पर्वत कहा जाने लगा। इस ज्योतिर्लिंग के दो स्वरूप होने की कथा पुराणों में दी गई है तो आइए जानते हैं इससे जुड़ी कथा के बारे में।
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एक बार विन्ध्यपर्वत ने पूजा-अर्चना के साथ भगवान शिव की छः मास तक कठिन उपासना की। उनकी इस उपासना से प्रसन्न होकर शंकर जी वहां प्रकट हुए। उन्होंने विन्ध्य को उसके मनोवांछित वर प्रदान किए। विन्ध्याचल की इस वर-प्राप्ति के अवसर पर वहां बहुत से ऋषिगण और मुनि भी पधारे। उनकी प्रार्थना पर शिवजी ने अपने ओंकारेश्वर नामक लिंग के दो भाग किए। एक का नाम ओंकारेश्वर और दूसरे का अमलेश्वर पड़ा। दोनों लिंगों का स्थान और मंदिर पृथक होते भी दोनों की सत्ता और स्वरूप एक ही माना गया है।
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शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। श्री ओंकारेश्वर और श्री ममलेश्वर के दर्शन का पुण्य बताते हुए नर्मदा-स्नान के पावन फल का भी वर्णन किया गया है। प्रत्येक मनुष्य को इस क्षेत्र की यात्रा अवश्य ही करनी चाहिए। लौकिक-पारलौकिक दोनों प्रकार के उत्तम फलों की प्राप्ति भगवान ओंकारेश्वर की कृपा से सहज ही हो जाती है। अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष के सभी साधन उसके लिए सहज ही सुलभ हो जाते हैं। अंततः उसे लोकेश्वर महादेव भगवान शिव के परमधाम की प्राप्ति भी हो जाती है।

कहते हैं कि भगवान शिव तो भक्तों पर अकारण ही कृपा करने वाले हैं। जो इंसान भगवान के दर्शन करने के लिए आता है, उसका सोया हुआ भाग्य खुल जाता है। 

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