Ramayana story: जब हनुमान जी ने किया मेघनाद पर शिला प्रहार..

Edited By Updated: 28 Aug, 2023 11:24 AM

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युद्ध में लंका की आधी सेना मारी गई, यह समाचार सुनकर रावण बहुत दुखी हुआ। उसने अपने मंत्रियों से कहा, ‘‘वानरों ने लंका की आधी सेना का संहार कर दिया। अब तुम

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Ramayana story: युद्ध में लंका की आधी सेना मारी गई, यह समाचार सुनकर रावण बहुत दुखी हुआ। उसने अपने मंत्रियों से कहा, ‘‘वानरों ने लंका की आधी सेना का संहार कर दिया। अब तुम लोग शीघ्र बताओ कि क्या करना चाहिए ?’’

इस पर रावण के नाना तथा श्रेष्ठ मंत्री माल्यवान ने कहा, ‘‘जब से तुम सीता को हर लाए हो, तब से लंका पर नित्य नई-नई विपत्तियों के बादल मंडरा रहे हैं। मेरी सलाह मानो और शत्रुता छोड़कर जानकी जी को वापस करके श्रीराम भजन करो।’’

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रावण को माल्यवान के वचन बाण की तरह लगे और उसने कहा,‘‘अरे अभागे ! यहां से अतिशीघ्र अपना मुंह काला करके निकल जा, नहीं तो तुझे अभी मार डालूंगा।’’

माल्यवान समझ गए कि इसकी मृत्यु आ गई है, अत: इसे समझाना व्यर्थ है और वह वहां से उठकर चले गए।

मेघनाद ने क्रोधपूर्वक कहा, ‘‘पिता जी ! कल युद्धभूमि में आप मेरा अद्भुत पराक्रम देखेंगे। मैं सम्पूर्ण वानर सेना का संहार कर तथा राम को लक्ष्मण सहित बांध कर आपके चरणों में डाल दूंगा।’’

पुत्र मेघनाद के ऐसे वचन सुनकर रावण को भरोसा हो गया। इन्हीं सब बातों पर विचार करते-करते सुबह हो गई। प्रात: वानरों ने क्रोध करके दुर्गम किले को घेर लिया। राक्षस भी अनेक प्रकार के अस्त्र और शस्त्र लेकर दौड़े। भयंकर युद्ध शुरू हो गया। विकट वानर योद्धा भिड़ते घायल हो जाते, उनके शरीर जर्जर हो जाते, फिर भी वे हिम्मत नहीं हारते थे। वे बड़े-बड़े पहाड़ों को किले पर फैंकते थे, जिसके परिणामस्वरूप राक्षस जहां-तहां दब कर मारे जाते।

जब मेघनाद ने सुना कि वानरों ने आकर फिर किले को घेर लिया है तो वह वीर किले से बाहर निकला और डंका बजाकर मदमस्त काल की तरह वानरों की सेना की ओर बढ़ चला। मेघनाद द्वारा छोड़े गए बाण पंखवाले सर्पों की तरह ‘उड़’ कर वानर योद्धाओं को खाने लगे। उस समय कोई भी उसके सामने दिखाई नहीं पड़ता था।

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बलवान मेघनाद शेर के समान युद्ध भूमि में गरजने लगा, ‘‘समस्त लोकों में प्रसिद्ध कौशलाधीश राम, लक्ष्मण, सुग्रीव, अंगद, हनुमान कहां हैं ?

भ्राता-द्रोही विभीषण कहां हैं ? आज मैं सबको अपने काल समान बाणों द्वारा अभी यमलोक पहुंचा दूंगा।’’

मेघनाद की ललकार तथा अपनी सारी सेना को बेहाल देख कर पवन पुत्र हनुमान हाथ में एक विशाल पहाड़ लेकर मेघनाद की ओर दौड़े। पहाड़ को देख कर मेघनाद तुरंत आकाश में अदृश्य हो गया। एक ही प्रहार में उसके रथ, घोड़े और सारथी चकनाचूर हो गए। हनुमान जी के निकट मेघनाद नहीं आता था क्योंकि वह उनके बल का मर्म जानता था।

मेघनाद इसके बाद श्री राम और लक्ष्मण के पास जाकर अपवित्र वस्तुओं की वर्षा करने लगा। इस पर लक्ष्मण जी क्रोधित हो मेघनाद से भिड़ गए। लक्ष्मण जी के बाणों से मेघनाद का शरीर छिन्न-भिन्न हो गया। अपने प्राणों को संकट में जान कर उसने लक्ष्मण जी पर वीरघातिनी शक्ति चला दी। वह तेजपूर्ण शक्ति लक्ष्मण जी की छाती में लगी जिससे वह मूर्छित होकर गिर गए।
 
मेघनाद भय छोड़कर लक्ष्मण जी के पास गया और सोचा कि उन्हें उठाकर रावण के पास ले चलूं परन्तु लाख प्रयत्न करने के बावजूद वह उन्हें उठा नहीं सका और लज्जित हो कर चला गया। तब हनुमान जी उन्हें उठाकर श्री राम के शिविर में ले आए, जिससे चारों ओर शोक छा गया।

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