अनंत व अपार है भगवान शिव की महिमा, जानें इनकी पूजन से मिलता है कैसा लाभ

Edited By Jyoti,Updated: 21 Sep, 2020 10:25 AM

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भगवान शिव की महिमा अनंत और अपार है। उनकी महिमा का गायन कोई नहीं कर सकता। भगवान सदाशिव भोलेनाथ की महिमा का विस्तृत वर्णन शिव पुराण में मिलता है किन्तु महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में कोई भी ऐसा पौराणिक ग्रंथ नहीं है जिसमें भगवान शिव की...

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भगवान शिव की महिमा अनंत और अपार है। उनकी महिमा का गायन कोई नहीं कर सकता। भगवान सदाशिव भोलेनाथ की महिमा का विस्तृत वर्णन शिव पुराण में मिलता है किन्तु महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित 18 पुराणों में कोई भी ऐसा पौराणिक ग्रंथ नहीं है जिसमें भगवान शिव की महिमा से संबंधित कोई प्रसंग उपस्थित न हुआ हो।
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भगवान शिव जी को मृत्युंजय भी कहते हैं। इनकी कृपा से मृत्यु के समीप पहुंचा व्यक्ति भी स्वस्थ होकर जीवित हो उठता है। स्कंद महापुराण के ब्रह्मोत्तर खंड में ‘अमोघ शिवकवच’ का उल्लेख हुआ है। अमोघ शिव कवच के पाठ का चमत्कार प्रत्यक्ष देखा गया है। मैं अपनी आयु के 18वें वर्ष की अवस्था से अमोघ श्री शिव कवच का पाठ करता हूं जिसका मुझे जीवन में बहुत लाभ मिला है। मैंने जिन-जिन लोगों का अमोघ शिव कवच के पाठ करने एवं आनुष्ठानिक विधि की प्रेरणा दी है उन सभी के अनुभव यही कह रहे हैं कि इसके पाठ प्रभाव से उन्हें जीवन में अभीष्ट की प्राप्ति हुई है।

शिव जी के नाम की महिमा अपार है। भगवान शंकर जी के अनेक नाम हैं। उन्हें अपने नामों में सर्वाधिक प्रिय नाम महादेव है। शिवजी का भक्त यदि शिव मंदिर में जाकर उनके विग्रह के समक्ष उच्च स्वर से महादेव, महादेव का उच्चारण करता है जो जैसे बछड़े की ध्वनि सुनकर उसकी मां गाय के बछड़े के पीछे दौड़ने लगती है जैसे इंद्रियों के विषय रस पाने के लिए मन विचलित हो उठता है, उसी प्रकार भगवान शिवजी अपने भक्त के पीछे अपना वरदहस्त उठाकर दौड़ जाते हैं।

शिव मंदिर में प्रवेश करके विराजित शिवलिंग के समीप महादेव इस नाम के तीन बार उच्चारण (उच्च स्वर से शिवमूर्ति या शिवलिंग के समीप उच्चारण) करने से आशुतोष भगवान इतने प्रसन्न हो जाते हैं कि पहले नामोच्चारण मात्र से वह अपने भक्त या साधक को मोक्ष का अधिकारी बना देते हैं। दो बार किए गए नाम उच्चारण से वह स्वयं अपने भक्त, उपासक, आराधक या पूजक के सदैव ऋणी हो जाते हैं।
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महादेव महादेव महादेवेति यो वदेत।
एकेन मुक्तिमाप्नोति द्वाभ्यां शम्भू ऋणी भवेत।।

भगवान शंकर के पाॢथव शिवलिंग की पूजा का शास्त्रीय विधान जगत प्रसिद्ध है। उनके शिवलिंग संसार में सर्वत्र पाए जाते हैं। स्फटिकमणिमय शिवलिंग सभी प्रकार की मनोकामना पूर्ण करने में सहायक हैं। इसके अतिरिक्त पारदमय (पारे का) शिवलिंग सभी ऐश्वर्य को देने में समर्थ है। नर्मदा नदी से प्राप्त पाषाणमय शिवलिंग जिसे नार्मद शिवलिंग कहते हैं यह भी सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति में सहायक है। 

नर्मदा से प्राप्त शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा नहीं करनी होती। नर्मदा पुराण के अनुसार नर्मदा से प्राप्त नर्मदा ङ्क्षलग चैतन्य शिवलिंग (गाय के गोबर से निर्मित शिवलिंग) का पूजन भिन्न-भिन्न प्रकार की अभीष्ट सिद्धि में सहायक है। 
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भगवान शिव के शिवलिंग का पूजन और अभिषेक जल, पंचगव्य से पंचोपचार या षोडषोपचार विधि से रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों से नमक, चमक विधि से विद्वानों के सहयोग से किया जाता है। शिव भक्त स्वयं भी लौकिक मंत्रों से पूजन/ अभिषेक कर सकते हैं। भगवान शिव के पंचाक्षर मंत्र से भी पूजन अभिषेक किया जा सकता है। पंचाक्षर स्रोत, रुद्राष्टक आदि शंकराचार्य रचित शिवमानस पूजा स्रोत पूजनोपरांत पढ़ना चाहिए।


—स्वामी अखिलेश्वरानंद जी महाराज 

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