Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Feb, 2022 11:19 AM
एक राजमहल के द्वार पर एक वृद्ध साधु आया। द्वारपाल के हाथ उसने संदेश भिजवाया, ‘‘भीतर जाकर राजा से कहो
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Religious Katha: एक राजमहल के द्वार पर एक वृद्ध साधु आया। द्वारपाल के हाथ उसने संदेश भिजवाया, ‘‘भीतर जाकर राजा से कहो कि तुम्हारा भाई मिलने आया है।’’द्वारपाल ने समझा कि शायद कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई होगा। सूचना मिलने पर राजा ने साधु को भीतर बुला कर अपने पास बैठा लिया। साधु ने राजा का अभिवादन करने के बाद उनसे पूछा, ‘‘कहिए बड़े भाई ! आपके क्या हालचाल हैं?’’
राजा ने मुस्कराकर कहा, ‘‘मैं तो आनंद में हूं। आप बताइए कि आपके क्या हाल हैं?’’
साधु बोला, ‘‘मैं इस समय जरा संकट में हूं, जिस महल में रहता हूं वह पुराना और जर्जर हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे बत्तीस नौकर थे, वे भी एक-एक कर चले गए। पांचों रानियां भी वृद्ध हो गई हैं।’’
यह सुन कर राजा ने साधु को सौ रुपए देने का आदेश दिया। उसने सौ रुपए कम बताए, तो राजा ने कहा, ‘‘इस बार राज्य में सूखा पड़ा है।’’
तब साधु बोला, ‘‘मेरे साथ सात समुद्र पार चलिए। वहां सोने की खदाने हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जाएगा। मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।’’
उसकी यह बात सुनने के बाद राजा ने साधु को 1 हजार रुपए देने का आदेश दिया।
साधु के जाने के बाद राजा के मंत्रियों ने उनसे ऐसा करने का कारण पूछा तो राजा बोले, ‘‘साधु बहुत बुद्धिमान था। भाग्य के दो पहलू होते हैं राजा व रंक। इस नाते उसने मुझे ‘भाई’ कहा। ‘जर्जर महल’ से आशय उसके वृद्ध शरीर से था, ‘बत्तीस नौकर’ दांत और ‘पांच रानियां’ पंचेंद्रीय हैं।’’
‘‘इसके बाद ‘समुद्र’ के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा खजाना सूख गया इसलिए मैं उसे सौ रुपए दे रहा हूं।’’
‘‘उसकी बुद्धिमानी देखकर ही मैंने उसे हजार रुपए दिए और कल से मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूंगा।’’
कई बार अति सामान्य लगने वाले लोग भीतर से बहुत गहरे होते हैं, इसलिए व्यक्ति की परख उसके बाह्य रहन-सहन से नहीं बल्कि आचरण से करनी चाहिए।