Edited By Niyati Bhandari,Updated: 05 May, 2018 06:58 PM

पाप से वास्तव में डरने वाले मनुष्य संसार में विरले ही होते हैं। प्राय: लोग पाप करने से नहीं डरते, किन्तु पापी समझे जानें से डरते हैं। जहां कोई देखने वाला न हो वहां अपने कर्तव्य से विमुख हो जाना, कोई पाप कर लेना, साधारण बात है।
यस्तिष्ठति चरति यश्च वञ्जति यो निठ्ठायं चरित य: प्रतंकम्। द्वौ सन्निषद्य यंमंत्रयेते राजा तद् वेद वरुणस्तृतीय:।।
पाप से वास्तव में डरने वाले मनुष्य संसार में विरले ही होते हैं। प्राय: लोग पाप करने से नहीं डरते, किन्तु पापी समझे जानें से डरते हैं। जहां कोई देखने वाला न हो वहां अपने कर्तव्य से विमुख हो जाना, कोई पाप कर लेना, साधारण बात है। पाप और अपराध कर्म से बचने की कोई कोशिश नहीं करता, कोशिश तो इस बात की होती है कि हम वैसा करते हुए कहीं पकड़े न जाएं।
यही कारण है कि मनुष्य अपने बहुत से कार्य छिपकर अकेले में करने को प्रवृत्त होता है, परंतु यदि उसे इस संसार के सच्चे, एकमात्र राजा वरुणदेव की जानकारी हो तो वह ऐसे घोर अज्ञान में न रहे। यदि उसे मालूम हो कि जगत के ईश्वर वरुण भगवान सर्वव्यापक और सर्वद्रष्टा हैं तो वह पाप के आचरण करने से डरने लगे, वह एकांत में भी कभी पाप में प्रवृत्त न हो सके।
यदि हम समझते हैं हम कोई काम गुप्त रूप में कर सकते हैं तो सचमुच हम बड़े धोखे में हैं। उसे सर्वद्रष्टा, सर्वव्यापक वरुणदेव से तो कुछ भी छिपाकर करना असंभव है। जब हम दो आदमी कोई गुप्त मंत्रणा करने के लिए किसी अंधेरी-से-अंधेरी कोठरी में जाकर बैठते हैं और सलाहे करने लगते हैं तो यदि हम समझ रहे होते हैं कि हम दोनों के सिवाय संसार में और कोई इन बातों को नहीं जानता, तथापि इन सब बातों को वह वरुण देव वहीं तीसरा होकर बैठा हुआ सुन रहा होता है।
यदि हम वहां से उठकर किसी किले में जा बैठें या किसी सर्वथा निर्जन वन में पहुंच जाएं तो वहां पर भी वह वरुणदेव तीसरा साक्षी होकर पहले से बैठा हुआ होता है। उससे छिपाकर हम कुछ नहीं कर सकते।
यदि हम दूसरे किसी आदमी को भी कुछ नहीं बतातें केवल अपने ही मन में कुछ सोचते हैं तो वह वरुण देव उसे भी जानता है, सब सुनता है। हमारे चलने या ठहरने को, हमारी छोटी-से-छोटी चेष्टा को वह जानता है। जब हम दूसरों को धोखा देते हैं, ठग लेते हैं और समझते हैं कि इसका किसी को पता नहीं लगा, तब हम स्वयं कितने भारी धोखे में होते हैं, क्योंकि इस वरुण देव को तो सब-कुछ पता होता है और हमें उसका फल भोगना ही पड़ता है।