न केवल हिंदू शास्त्र बल्कि विज्ञान ने भी माना, हवन से मिलते हैं ढेरों लाभ

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 19 Aug, 2019 09:38 AM

scientific benefits of havan

भारतीय संस्कृति में अग्रिहोत्र कर्म प्रतिदिन करने की बौद्धिक काल से परम्परा रही है। यज्ञ, हवन के बिना कोई भी कार्य पूर्ण न मानने के पीछे इसमें निहित लाभ ही रहे हैं।

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भारतीय संस्कृति में अग्रिहोत्र कर्म प्रतिदिन करने की बौद्धिक काल से परम्परा रही है। यज्ञ, हवन के बिना कोई भी कार्य पूर्ण न मानने के पीछे इसमें निहित लाभ ही रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार फ्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की, जिसमें उन्हें पता चला कि हवन मुख्यत: आम की लकड़ी से किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो खतरनाक जीवाणुओं को मारकर वातावरण को शुद्ध करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसके बनने का तरीका पता चला। गुड़ को जलाने पर भी यह गैस उत्पन्न होती है। टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गई अपनी रिसर्च में ये पाया कि यदि आधा घंटा हवन में बैठा जाए अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टायफाइड जैसे खतरनाक रोग फैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

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हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर रिसर्च की। उन्होंने ग्रंथों में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलने पर पाया कि यह विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी शोध किया और देखा कि सिर्फ एक किलो आम की लकड़ी जलने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलाई गई, एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद जीवाणुओं का स्तर 14 प्रतिशत कम हो गया।

यही नहीं, उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजूद जीवाणुओं का परीक्षण किया और पाया कि कक्ष के दरवाजे खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के 24 घंटे बाद भी जीवाणुओं का स्तर सामान्य से 96 प्रतिशत कम था।  बार-बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ कि इस बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था। रिपोर्ट में लिखा गया कि हवन द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों, फसलों को नुक्सान पहुंचाने वाले जीवाणुओं का नाश होता है जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।

क्या हो हवन की समिधा (जलने वाली लकड़ी): समिधा के रूप में आम की लकड़ी सर्वमान्य है परन्तु अन्य समिधाएं भी विभिन्न कार्यों के लिए प्रयुक्त होती हैं। सूर्य की सीमा मदार की, चंद्रमा की पलाश की, मंगल की खैर की, बुध की चिड़चिड़ा की,  बृहस्पति की पीपल की, शुक्र की गलूर की, शनि की शमी की, राहू की दूर्वा की और केतु की कुशा की समिधा कही गई है। मदार की समिधा रोग का नाश करती है, पलाश की सब कार्य सिद्ध करने वाली, पीपल की प्रजा (सन्तति) का काम कराने वाली, गूलर की स्वर्ग देने वाली, शमी की पाप नाश करने वाली, दूर्वा की दीर्घायु देने वाली और कुशा की समिधा सभी मनोरथ को सिद्ध करने वाली होती है।
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हव्य (आहुति देने योग्य द्रवों) के प्रकार: प्रत्येक ऋतु में आकाश में भिन्न-भिन्न प्रकार के वातावरण रहते हैं। सर्दी, गर्मी, नमी, वायु का भारीपन, हल्कापन, धूल, धुआं, बर्फ आदि का भरा होना। विभिन्न प्रकार के कीटाणुओं की उत्पत्ति, वृद्धि एवं समाप्ति का क्रम चलता रहता है इसलिए कई बार वायुमंडल स्वास्थ्यकर होता है। कई बार अस्वास्थ्यकर हो जाता है। इस प्रकार की विकृतियों को दूर करने और अनुकूल वातावरण उत्पन्न करने के लिए हवन में ऐसी औषधियां प्रयुक्त की जाती हैं जो इस उद्देश्य को भली प्रकार पूरा कर सकती हैं।

होम द्रव्य: होम द्रव्य अथवा हवन सामग्री वह जल सकने वाला पदार्थ है जिसे यज्ञ (हवन/होम) की अग्रि में मंत्रों के साथ डाला जाता है।

सुगंधित: केसर, अगर, तगर, चंदन, इलायची, जायफल, जावित्री, छड़ीला, कपूर, कचरी, बालछड़, पानड़ी आदि।

पुष्टिकारक: घृत, गुग्गल, सूखे फल, जौ, तिल, चावल, शहद, नारियल आदि।

मिष्ट: शक्कर, छुहारा, दाख आदि।

रोग नाशक: गिलोय, जायफल, सोमवल्ली, ब्राह्मी, तुलसी, अगर तगर तिल, इंद्र जौ, आंवला, मालकांगनी, हरताल, तेजपत्र, प्रियंगु केसर, सफेद चंदन, जटामांसी आदि। उपरोक्त चारों प्रकार की वस्तुएं हवन में प्रयोग होनी चाहिएं।

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अन्न के हवन में मेघ-मालाएं अधिक अन्न उपजाने वाली वर्षा करती हैं। सुगंधित द्रव्यों से विचार शुद्ध होते हैं। मिष्ट पदार्थ स्वास्थ्य को पुष्ट एवं शरीर को आरोग्य प्रदान करते हैं इसलिए चारों प्रकार के पदार्थों को समान महत्व देना चाहिए। यदि अन्य वस्तुएं उपलब्ध न हों तो जो मिले उसी से या केवल तिल, जौ, चावल से भी काम चल सकता है।

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