Shravani Parv: शास्त्रों से जानें श्रावणी पर्व से जुड़ी खास जानकारी

Edited By Updated: 10 Aug, 2022 02:13 PM

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ज्ञान प्राप्ति का स्वर्णिम अवसर है ‘श्रावणी पर्व’, जो कल यानी 11 अगस्त को मनाया जाएगा। श्रावणी पर्व का भारतीय समाज में विशेष महत्व है। ज्योतिष के हिसाब से इस दिन श्रवण नक्षत्र होता है जिससे पूर्णिमा का

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Shravani Parv 2022: ज्ञान प्राप्ति का स्वर्णिम अवसर है ‘श्रावणी पर्व’, जो कल यानी 11 अगस्त को मनाया जाएगा। श्रावणी पर्व का भारतीय समाज में विशेष महत्व है। ज्योतिष के हिसाब से इस दिन श्रवण नक्षत्र होता है जिससे पूर्णिमा का संयोग होने से यह श्रावणी कही जाती है। सावन की पूर्णिमा को ज्ञान की साधना का पर्व माना गया है। आध्यात्मिक ऊर्जा को जागृत करने का यह पावन पर्व है। मनुस्मृति में इस दिन को उपाकर्म करने का दिन कहा गया है। श्रावणी पूर्णिमा एक मास के आध्यात्मिक ज्ञान रूपी यज्ञ की पूर्णाहुति है। इस श्रावणी उपाकर्म के अंतर्गत वेदों के श्रवण-मनन का विशेष महत्व है। इस पर्व में वैदिक ज्ञान व संस्कृति के संवर्धन एवं उन्नयन का रहस्य विद्यमान है।

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प्राचीन काल में लोग श्रावण मास में वर्षा के कारण अवकाश रखते थे तथा घरों पर रहकर वैदिक शास्त्रों का श्रवण किया करते करते थे। अपने आध्यात्मिक ज्ञान को बढ़ाते थे। प्राचीन काल में आज की तरह सभी ग्रंथ मुद्रित रूप में सबको सुलभ नहीं थे अत: निकटवर्ती आश्रमों में जाकर रहते थे, वहां विद्वानों से वेद के उपदेशों का श्रवण करते थे। ऋषि, मुनियों, योगियों के सान्निध्य में रहकर उनके मुखारविंद से आध्यात्मिक शास्त्रों के गूढ़ तत्वों का श्रवण करना इस श्रावणी पर्व का मुख्य ध्येय होता था। यह पर्व वेदों के स्वाध्याय का पावन पर्व है जिसे ऋषि तर्पण का नाम भी दिया जाता है। तर्पण का अर्थ है ज्ञान और सत्य विद्या के मर्मज्ञ ऋषियों को संतुष्ट करना जिनसे हमें वैदिक रहस्य को जानने व समझने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।

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इसी दिन गुरुकुलों में ऋषि-मुनि वेद पारायण आरंभ करते थे तथा बड़े-बड़े यज्ञों का आयोजन किया जाता था। प्राचीन काल में गुरुकुलों में इसी दिन से शिक्षण सत्र का आरंभ होता था। इस दिन छात्र गुरुकुल में प्रवेश लेते थे जिनका यज्ञोपवीत नहीं हुआ, उन्हें यज्ञोपवीत दिया जाता था।

यह स्वर्णिम वैदिक शास्त्रों की भाषा संस्कृत के संवर्धन का भी पर्व है। संस्कृत ज्ञान-विज्ञान की भाषा है। संस्कृत दिवस के लिए भी श्रावणी पूर्णिमा का दिन ही चुना गया क्योंकि इसका संबंध भारत और उसके शाश्वत धर्म से है। पुरातन काल से चले आ रहे इस श्रावणी पर्व का सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है।  

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