राधा जी के प्राकटय उत्सव पर करें रहस्य दर्शन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 28 Aug, 2017 12:04 PM

shri radhashtami celebration

श्री राधा का अर्थ श्री कृष्ण तथा श्री कृष्ण का अर्थ श्री राधा है तथा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों में से किसी एक के बिना किसी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। रा और धा के शब्दों से ही राधा की उत्पत्ति हुई रा का सरल अर्थ है कृष्ण

श्री राधा का अर्थ श्री कृष्ण तथा श्री कृष्ण का अर्थ श्री राधा है तथा दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों में से किसी एक के बिना किसी की कल्पना भी नहीं की जा सकती। रा और धा के शब्दों से ही राधा की उत्पत्ति हुई रा का सरल अर्थ है कृष्ण तथा धा का शाब्दिक अर्थ है धारण करना अर्थात श्री कृष्ण की धारणा ही वास्तव में राधा है। राधा के बिना श्री कृष्ण अपूर्ण हैं तथा श्री कृष्ण के बिना राधा। एक दूसरे के बिना दोनों ही अधूरे हैं। दोनों ही मिलकर संसार के रहस्य के तत्वज्ञान को प्रकट करके सभी को मनवांछित फल प्रदान करते हैं। शास्त्रों में श्री राधा जी की अत्यधिक महिमा है क्योंकि वह श्रीकृष्ण की आत्मा हैं तथा अपनी आत्मा में रमण करने के कारण ही श्रीकृष्ण आत्माराम हैं। श्रीराधा कृष्ण का नित्य मिलन ही श्री राधा का रहस्य है तथा वही श्री राधा रानी का हर क्षण मिलन एवं दर्शन है। नटवर नागर कहलाने वाले श्रीकृष्ण समस्त संसार का संचालन राधा रानी की प्रेरणा से करते हैं क्योंकि श्री राधारानी श्री कृष्ण की प्रेरणा हैं। जीवन को भयमुक्त रखने तथा मोक्ष के द्वार तक पहुंचाने में राधाकृष्ण का कृपा प्रसाद ही फलदायी होता है। 


श्री राधा कृष्ण के रहस्य का दर्शन:-
श्रीमदभागवत के कथा प्रसंग के अनुसार जब श्रीकृष्ण वृंदावन से अक्रूर के साथ मथुरा को प्रस्थान करने लगे तो भगवान श्रीकृष्ण ने राधा जी से कहा - तुम तो सदा ही मेरे साथ हो परंतु एक आवश्यक कार्य के लिए मैं मथुरा जा रहा हूं, आप अपनी आंख से एक आंसू भी नहीं निकालेंगी, यदि आंसू की एक बूंद भी पृथ्वी पर गिरी तो धरती पर महाप्रलय आ जाएगी। इस प्रकार श्री राधा के आंसूओं की एक बूंद भी शक्ति का परिचय दे रही हैं जो श्री राधा कृष्ण के रहस्य का दर्शन है, राधा महाशक्ति हैं जो शक्तिमान श्रीकृष्ण जी के साथ सदा रहती हैं।    


राधा जी का प्राकटय:-
राधा शक्ति हैं तो भगवान श्री कृष्ण शक्तिमान हैं। वेद तथा पुराणों में कृष्ण वल्लभा के नाम से श्री राधा जी की महिमा का गुणगान किया जाता है। राधा जी का जन्म वृषभानुपुरी के उदार एवं महान राजा वृषभानु की पुत्री के रूप में माना जाता है। उनकी माता श्रीकीर्तीदा रूप और यौवन से सम्पन्न थी। वह महालक्ष्मी के समान परमसुन्दरी, सर्वविद्याओं और गुणों से युक्त महापतिव्रता स्त्री थी। उनके यहां भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को दोपहर के समय श्री वृंदावनेश्वरी श्री राधिका जी का प्राकटय हुआ। कुछ शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि श्री राधा जी वृषभानु की यज्ञभूमि से प्रकट हुई थी। कुछ पुराणों में श्रीकृष्ण को आनंद प्रदान करने वाली कृष्णप्रिया का प्राकटय श्री वृषभानुपुरी एवं बरसाना अथवा उनके ननिहाल रावलग्राम में प्रात: काल के समय को मानते हैं परंतु अधिकांश शास्त्रों में दोपहर के समय ही राधा जी का प्राकट्य माना जाता है।   


वीना जोशी
veenajoshi23@gmail.com

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