Edited By Niyati Bhandari,Updated: 26 Jul, 2025 02:00 PM

Smile please: मानव सृष्टि में धर्म और आध्यात्मिक शक्ति महत्वपूर्ण स्थान रखती है, इसीलिए इन शक्तियों का मनुष्य के जीवन में भोजन, आराम, लौकिक व्यवहार, कमाई आदि की तरह ही विशेष महत्व है। आम तौर पर हम धर्म व अध्यात्म को एक जैसा ही समझते हैं और इसीलिए आज...
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Smile please: मानव सृष्टि में धर्म और आध्यात्मिक शक्ति महत्वपूर्ण स्थान रखती है, इसीलिए इन शक्तियों का मनुष्य के जीवन में भोजन, आराम, लौकिक व्यवहार, कमाई आदि की तरह ही विशेष महत्व है। आम तौर पर हम धर्म व अध्यात्म को एक जैसा ही समझते हैं और इसीलिए आज समाज में इन दो भिन्न सत्ताओं को लेकर काफी भ्रान्तियां फैली हुई हैं, परन्तु यदि वास्तव में देखा जाए तो धर्म और अध्यात्म में बहुत अन्तर है। आध्यात्मिकता मानव आत्मा के मूल गुण, स्वभाव और संस्कार का नाम है, इसलिए सार्वभौमिक सत्य होने के कारण उत्तर-दक्षिण, पूर्व-पश्चिम और सभी धर्मों के मनुष्यों को वह सहज स्वीकार्य होती है।
सरल भाषा में कहें तो ‘स्वयं को परमात्म शक्ति में अर्पण करना तथा उसी की प्रेरणानुसार अपने जीवन में विकसित होना ही सच्ची आध्यात्मिकता है’ और इसीलिए एक आध्यात्मिक व्यक्ति का जीवन सदा आन्तरिक चेतना द्वारा संचालित होता है, चाहे वह कैसी भी अवस्था व किसी भी कर्म में लीन क्यों न हो। उसे निरंतर सर्व-शक्तिमान से आन्तरिक आदेश मिलता ही रहता है।
आम तौर पर आध्यात्मिकता को लेकर लोग भगवान, धर्म, रीति-रिवाज आदि के बारे में ही सोचते हैं। मसलन, कोई व्यक्ति जो प्रतिदिन मंदिर जाकर देवी-देवताओं की मूर्ति के आगे पूजा अर्चना करता है, वह खुद को बहुत आध्यात्मिक समझता है, भले ही उसका मन पूजा करने में कम और यहां-वहां की बातों में ज्यादा व्यस्त क्यों न हो।

इसी कारण आधुनिक पीढ़ी समझती है कि व्यावहारिकता और आध्यात्मिकता का दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं, इसीलिए वे इसे अव्यावहारिक मानते हैं, परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं, क्योंकि मूल रूप से देखा जाए तो आध्यात्मिकता में साम्प्रदायिकता, धर्म तथा रूढ़ियों का कोई स्थान नहीं होता। वहां तो जो सत्य है, वही स्वाभाविक रूप से ग्रहण किया जाना चाहिए।
आम तौर पर लोगों की मान्यता होती है कि घर-बार छोड़े बिना आत्मज्ञान प्राप्त करना संभव नहीं, परन्तु आध्यात्मिक तत्वज्ञान के अनुसार मन की शांति या आत्मबोध की प्राप्ति के लिए घर-बार छोड़कर कहीं दूर जंगल में जाने की आवश्यकता नहीं।

अपने ही घर-संसार में रहते हुए अपनी समस्त मानसिक कमजोरियों का त्याग कर स्वयं को आन्तरिक स्तर पर स्थिर करके भीतर से जो आदेश मिले, उसका पालन करके हम अपनी आत्मा को मुक्त कर सकते हैं।
अध्यात्म हमें यह भी सिखाता है कि हम सत्य को अवश्य ही प्रकट करें, किन्तु सत्य जैसी सुन्दर अनमोल वस्तु को सभ्यता जैसे सुन्दर गिफ्ट पेपर में लपेटकर दूसरों के समक्ष रखें, अन्यथा असभ्यतापूर्वक प्रकट की गई सत्यता मूल्यविहीन होती है और अपमानित भी। अत: हमें सच्चे आध्यात्मवाद की तलाश करनी और उसे ही अपनाना चाहिए।
