श्री बिहार पंचमी: वृंदावन में 19 दिसंबर को मनाया जाएगा श्री बांके बिहारी जी का प्राक्टय उत्सव

Edited By Updated: 16 Dec, 2020 12:51 PM

sri bihar panchami 2020

उत्सव-धर्मिता वृंदावन की सबसे विशेषता रही है ; यही कारण है कि यहां वर्ष में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब वृंदावन उत्सव ना मनाता हो। वृंदावन के किसी ना किसी मंदिर में , मठ में या आश्रम में प्रतिदिन उत्सव

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उत्सव-धर्मिता वृंदावन की सबसे विशेषता रही है ; यही कारण है कि यहां वर्ष में एक भी दिन ऐसा नहीं जाता जब वृंदावन उत्सव ना मनाता हो। वृंदावन के किसी ना किसी मंदिर में , मठ में या आश्रम में प्रतिदिन उत्सव की धूम अवश्य ही बनी रहती है। किंतु इस वृंदावन में एक दिन ऐसा  भी आता है जब उत्सव की उमंग और आनंद का ज्वार अपनी अछोरता में यहाँ के  कण कण को अपनी रसमयता में डुबोकर ; एक रस कर उत्सव नहीं , लोकोत्सव मनाता है । लोकोत्सव के इस महापर्व को प्रवासी और वृंदावन-वासी भक्त गण " श्री बिहार पंचमी " के नाम से पुकारते हैं।

* मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन आयोजित होने वाला यह उत्सव  सारस्वत-कुल-कमल-दिवाकर , आशुधीरात्मज , रसिक अनन्य-नृपति स्वामी श्री हरिदास जी के उपास्य और जन-जन के परमाराध्य ठाकुर श्री बांके बिहारी जी महाराज का प्राकट्य-दिवस है । 
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* विक्रम की सोलहवीं सदी के आरंभ में इसी कुल में गोस्वामी गदाधर जी के यहां गोस्वामी आशुधीर जी का जन्म हुआ। कालांतर में , आशुधीर जी उच्च को छोड़कर ब्रज चले आए और ब्रज के 'कोर' नामक स्थान को अपनी साधना-स्थली बनाया । यहीं पर उनके यहां भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी जिसे राधा अष्टमी भी कहते हैं के दिन संवत् 1535 विक्रमी में स्वामी हरिदास जी का जन्म हुआ । बाद में ब्रज की यह 'कोर' ही स्वामी हरिदास जी की जन्मभूमि होने के कारण  'हरिदासपुर' के नाम से प्रसिद्ध हुई । स्वामी हरिदास जी के दो अनुज गोस्वामी जगन्नाथ जी और गोस्वामी  गोविंद जी थे । समय पाकर स्वामी हरिदास जी का विवाह हरिमती जी से हुआ । किंतु प्रथम-मिलन की रात्रि में उनके लाख के कंकणों से उत्पन्न हुई अग्निशिखा में वे लीन हो गयीं और परिवार में विजया  सती के रूप में पूजी गईं। 

* संवत् 1560  विक्रमी  में स्वामी हरिदास अपने पिता श्री आशुघीर जी  से युगल-मंत्र की दीक्षा लेकर विरक्त  होकर वृंदावन चले आए और यमुना-तट के सधन वन-प्रान्तर में जिस स्थान को अपनी साधना का केंद्र बनाया , आज यह स्थान "निधिवन" के नाम से विख्यात है  । इसी निधिवन में संवत 1562 विक्रमी में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन स्वामी हरिदास की रस-साधना के फलस्वरूप श्री बांके बिहारी जी महाराज के  स्वरूप का प्राकट्य  हुआ। निधिवन की सघन कुंजें स्वामी हरिदास जी महाराज के मधुर गायन से गूँज उठीं। 

"माई री सहज जोरी प्रगट भई , जु रंग की गौर-स्याम घन-दामिनि जैसैं । प्रथमहुँ हुती, अबहुँ , आगैं हूँ रहिहै न टरिहै तैसैं । अंग-अंग की उजराई गहराई चतुराई सुन्दरता ऐसैं। श्री हरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी सम वैस-वैसैं।"  
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* निधिवन स्वामी जी और श्री बाँके बिहारी जी महाराज की जय - जयकार से गूँज उठा । श्री बाँके बिहारी जी महाराज की नित्यायनी - सेवा स्वामी हरिदास जी ने अपने अनुज गोस्वामी जगन्नाथ जी को सौंप दी। गोस्वामी जगन्नाथ जी ने बड़े चाव से श्री बिहारी जी महाराज को लाड़ लड़ाया।  

जिस दिन निधिवन में स्वामी जी की साधना  के फलस्वरूप  श्री बांके बिहारी जी महाराज    प्रकट हुए ; उसी दिन हरिदासपुर में स्वामी हरिदास के छोटे अनुज गोस्वामी गोविंद जी के यहां एक बालक का जन्म हुआ।  यह बालक  केवल पाँच वर्ष की छोटी-सी अवस्था में वृन्दावन आकर स्वामी हरिदास जी का शिष्य हो गया और श्री बीठल विपुल के नाम से प्रसिद्ध हुआ । इन श्री बीठल विपुल जी ने  स्वामी हरिदास जी महाराज की भाव-साधना को अन्ययता  पूर्वक अपनाया। 

* प्राकट्य के उपरांत श्री बिहारी जी महाराज  निधिवन में  एक लता-मंडल में विराजमान होकर गोस्वामी जगन्नाथ जी द्वारा सेवित हुए । 1921 विक्रमी में श्री बाँके बिहारी जी महाराज का वर्तमान मन्दिर  बनकर तैयार हुआ जिसमें मार्गशीर्ष मास के  शुक्ल पक्ष की द्वादशी ,शनिवार के दिन  ( 10 दिसंबर 1864)श्री बाँके बिहारी जी महाराज विराजमान हुए ।       

* वृंदावन में श्री बिहारी जी के प्राकट्य का यह उत्सव संवत् 1562 से ही वृन्दावन वासियों के द्वारा अत्यन्त उत्सव पूर्वक मनाया जाता रहा  है। श्री बिहारी जी महाराज के निधिवन से वर्तमान स्थान पर आकर विराजमान होने के साथ ही श्री बिहार-पंचमी के दिन स्वामी हरिदास जी महाराज की  साधना-स्थली निधिवन से बधाई  आने की परंपरा आरंभ हुई जो आज भी प्रचलित है। 
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सन् 1962 ईस्वी में  श्री बाँके बिहारी जी के प्राकट्य उत्सव की बधाई देने के लिए श्री बिहारी जी के मंदिर तक स्वामी हरिदास जी महाराज की सवारी अत्यन्त धूमधाम के साथ आने लगी ।  इस सवारी में स्वामी हरिदास जी महाराज एक भव्य रथ में  विराजमान होते हैं और उनके साथ एक डोले में उनके अनुज और श्री बाँके बिहारी जी महाराज के सेवाधिकारी गोस्वामी श्री जगन्नाथ जी तथा दूसरे डोले में स्वामी श्री बीठल बिपुल जी विराजमान होकर श्री बाँके बिहारी जी महाराज के मंदिर पधारते हैं। इस सवारी के मंदिर पहुँचने के बाद ही आज श्री बिहारी जी महाराज इन सबके साथ राजभोग ग्रहण करते हैं। यह उत्सव श्री बिहारी जी महाराज के भक्तों के लिए  प्रतिवर्ष अत्यन्त  उत्साह और उमंग का अवसर लेकर आता है ओर धूमधाम से मनाया जाता है।

इस दिन के विशेष आकर्षण 
ठाकुर जी को अर्पित विशेष भोग एवं पोशाक, बाल रूप में ठाकुर जी का पीत ( पीले रंग) वस्त्रो के साथ स्वर्ण आभूषण से श्रृंगार, अनेक तरह के फूलों से मंदिर की सजावट, मेवा युक्त हलवे का भोग एवं 56 भोग हैं।  -राजू गोस्वामी,सेवा अधिकारी, श्री बांके बिहारी मंदिर, श्री धाम वृंदावन

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