Srimad Bhagavad Gita: विषाद से ज्ञानोदय तक

Edited By Updated: 29 Mar, 2023 09:44 AM

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श्री कृष्ण कहते हैं (2.70) कि जैसे विभिन्न नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं

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Srimad Bhagavad Gita: श्री कृष्ण कहते हैं (2.70) कि जैसे विभिन्न नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं, उसी प्रकार वही पुरुष परम शान्ति को प्राप्त होता है जो कामनाओं से प्रभावित नहीं होता। वह आगे कहते हैं कि (2.71) जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्याग कर मोह रहित और अहंकार रहित हुआ विचरता है, वही शांति को प्राप्त होता है (2.72)। यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है, जिसके बाद वह कभी मोहित नहीं होता और अन्त काल में भी इस ब्राह्मी स्थिति में स्थिर होकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त हो जाता है।

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श्री कृष्ण इस शाश्वत अवस्था (मोक्ष-परम स्वतंत्रता, आनंद और करुणा) की तुलना करने के लिए समुद्र का उदाहरण देते हैं और नदियां इंद्रियों द्वारा लगातार प्राप्त होने वाली उत्तेजनाएं हैं। सागर की तरह, एक शाश्वत स्थिति प्राप्त करने के बाद मनुष्य स्थिर रहता है, भले ही प्रलोभन और इच्छाएं उनमें प्रवेश करती रहें। दूसरे, जब नदियां समुद्र से मिलती हैं तो वे अपना अस्तित्व खो देती हैं। इसी तरह, जब इच्छाएं उस व्यक्ति, जो शाश्वत अवस्था में है, के अन्दर प्रवेश करती हैं, तो वे अपना अस्तित्व खो देती हैं।
तीसरा, बाहरी दुनिया की उत्तेजनाओं से हमारे अन्दर प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है और दुख तब होता है जब इस प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने की क्षमता हममें न हो। अत: संकेत यह है कि समुद्र की तरह हमें भी ऐसी अनित्य (2.14) उत्तेजनाओं को सहन करना सीखना चाहिए।

हमारी समझ यह है कि प्रत्येक कर्म का एक कर्त्ता और कर्मफल होता है। इससे पहले श्री कृष्ण (2.47) ने हमें कर्म और कर्मफल को अलग करने का मार्ग दिया। अब वह हमें सलाह देते हैं कि ‘मैं’ और अहंकार, कर्त्तापन की भावना को छोड़ दें, ताकि कर्त्ता और कर्म अलग हो जाएं। एक बार शांति की यह शाश्वत स्थिति प्राप्त हो जाने के बाद यहां से वापसी का कोई मतलब नहीं है और कोई भी कर्म इस सक्रिय ब्रह्मांड के अरबों कार्यों में से सिर्फ एक बनकर रह जाता है।

गीता में, सांख्य के माध्यम से विषाद (दुख) के बाद शाश्वत अवस्था आती है क्योंकि यह प्राकृतिक नियम है कि अत्यधिक दुख में मोक्ष लाने की संभावना और क्षमता होती है, जब इसे सक्रिय रूप में उपयोग किया जाता है, जैसे श्री कृष्ण ने अर्जुन के साथ किया था।   

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