Edited By Prachi Sharma,Updated: 27 Jun, 2025 08:49 AM

Srimad Bhagavad Gita: गीता आंतरिक दुनिया में सद्भाव बनाए रखने के बारे में है और कानून बाहरी दुनिया में व्यवस्था बनाए रखने के बारे में है। किसी भी कर्म के दो भाग होते हैं, एक इरादा और दूसरा उसे पूरा करना।
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Srimad Bhagavad Gita: गीता आंतरिक दुनिया में सद्भाव बनाए रखने के बारे में है और कानून बाहरी दुनिया में व्यवस्था बनाए रखने के बारे में है। किसी भी कर्म के दो भाग होते हैं, एक इरादा और दूसरा उसे पूरा करना।
उदाहरण के लिए, एक सर्जन और एक हत्यारा दोनों किसी के पेट में चाकू मारते हैं। सर्जन का इरादा बचाने/इलाज करने का होता है लेकिन हत्यारे का इरादा नुकसान पहुंचाने/मारने का होता है। मौत दोनों ही स्थितियों में हो सकती है, लेकिन इरादे बिल्कुल विपरीत होते हैं।

कानून स्थितिजन्य है, जबकि गीता शाश्वत है। एक देश में सड़क के बाईं ओर गाड़ी चलाना कानून है और दूसरे देश में यह अपराध हो सकता है। वहीं जीवन के कई पहलू हैं।
गीता कहती है, कर्म के बारे में तब तक जागरूक रहें जब वह इरादे के चरण में हो यानी वर्तमान में हो और एक बार जब यह क्रियान्वित हो जाए तो हमारा इस पर कोई नियंत्रण नहीं, क्योंकि यह भविष्य में होता है।

कानून का ध्यान निष्पादन पर है। समकालीन नैतिक साहित्य हमें अच्छे / नेक इरादे रखने के लिए प्रोत्साहित करता है। जब इरादा अच्छा या बुरा, सफलता या असफलता से मिलता है, या तो अहंकार को बढ़ावा मिलता है या आंतरिक निर्माण ‘लावा’ की तरह शुरू होता है जो कमजोर क्षण में फट जाता है। दोनों ही स्थितियां हमें अपने भीतर से दूर ले जाती हैं।
केवल अपने इरादों को पहचान कर ही व्यक्ति उनसे आगे निकल सकता है और आंतरिक आत्मा तक पहुंच सकता है।
