Story of King Yayati: जीवन में तृप्ति और संतुष्टि की तलाश में रहने वाले जरूर पढ़ें यह कथा

Edited By Updated: 19 Jul, 2025 07:24 AM

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Story of King Yayati: राजा ययाती ने अपने जीवन के 100 वर्ष पूर्ण कर लिए थे। इन 100 वर्षों में 100 रानियों के साथ ऐश्वर्य का उपभोग किया था। उनके सौ-सौ राजमहल और सौ ही पुत्र थे। जब 100 साल पूर्ण हो गए तो मृत्यु उन्हें लेने आ पहुंची और यमराज बोले, ‘‘चलो...

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Story of King Yayati: राजा ययाती ने अपने जीवन के 100 वर्ष पूर्ण कर लिए थे। इन 100 वर्षों में 100 रानियों के साथ ऐश्वर्य का उपभोग किया था। उनके सौ-सौ राजमहल और सौ ही पुत्र थे। जब 100 साल पूर्ण हो गए तो मृत्यु उन्हें लेने आ पहुंची और यमराज बोले, ‘‘चलो ययाति, तुम्हारा आयुष्य पूर्ण हो गया।’’

ययाति ने कहा, ‘‘अरे, मृत्यु तुम तो बहुत जल्दी आ गई। अभी तुम जाओ, थोड़े दिन बाद आ जाना। अभी तो जीवन के कई इंद्रधनुष देखने बाकी हैं।’’

मृत्यु किसी के द्वार आ जाए तो खाली हाथ वापस नहीं जाती।

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सो मृत्यु ने कहा, ‘‘राजन् अगर तुम्हारे स्थान पर तुम्हारे परिवार का कोई व्यक्ति मरने को तैयार हो जाए तो तुम्हें 100 वर्ष की आयु और मिल सकती है।’’

राजा ने अपने पुत्रों की ओर देखा। निन्यानवे पुत्रों ने तो मरने से इंकार कर दिया, पर सबसे छोटा पुत्र मरने को तैयार हो गया।

उसने कहा, ‘‘मेरे मरने से अगर मेरे पिता को 100 वर्ष की आयु मिलती है तो  मैं यह कुर्बानी देने को तैयार हूं।’’

मृत्यु छोटे पुत्र को ले जाती है। ययाति सौ वर्ष की आयु पा लेता है। पुन: सौ वर्ष बाद मृत्यु का पदार्पण होता है, पुनः वही नाटक होता है, पुन: सबसे छोटा बेटा अपनी आहुति देता है। इस तरह 10 बार राजा बार-बार बेटे की कीमत पर एक हजार वर्ष जी लेता है, लेकिन उसकी कामनाएं और तृष्णाएं अपूर्ण ही रहती हैं। वह चाहता है कि कुछ और उपभोग कर ले, राजसत्ता भोग ले।

मौत कहती है राजन बहुत जी लिए पर राजा ने कहा तुम अगर मेरे बेटे से खुश हो जाती हो तो मेरे सौ बेटे हैं। निन्यानवे से काम चला लूंगा।

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दसवीं बार फिर सबसे छोटा बेटा तैयार होता है।

मृत्यु उसे ले जाने के लिए आगे बढ़ती है तो वह कहता है, ‘‘मौत! बस एक मिनट के लिए ठहरो, तुम तो जानती हो मैं कौन हूं? मैं वहीं बेटा हूं, जो दस बार इस घर में जन्म लेकर बचपन में ही मरता रहा हूं लेकिन आज मरने से पहले पिता से एक सवाल जरूर करना चाहूंगा।’’

तब उसने पिता से पूछा, ‘‘पिता जी! आपने एक हजार वर्ष का जीवन जिया है, लेकिन क्या अभी तक तृप्त हो पाए हैं?’’

पिता ने कहा, ‘‘बेटा, यह जानने के बाद कि तुम ही वह मेरे पुत्र हो जिसने दस बार अपना जीवन गंवाया, यही कहूंगा कि सच्चाई तो यह है कि एक हजार वर्षों के भोगोपभोग के बाद भी स्वयं को अतृप्त-अधूरा ही समझता हूं।’’

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छोटे बेटे ने कहा, ‘‘मृत्यु, मुझे मेरे प्रश्र का उत्तर मिल गया। अब मैं तुम्हारे साथ आराम से चल सकूंगा। यद्यपि पहले भी नौ बार जा चुका हूं लेकिन तब मेरे मन में थोड़ी दुविधा रहती थी कि मैं तो जीवन जी भी न पाया और जाना पड़ रहा है, लेकिन आज मन में संतोष है कि जो पिता एक हजार साल का जीवन जीकर भी असंतुष्ट और अतृप्त रहा तो मैं 100 साल का जीवन जीकर भी कौन-सा तृप्त हो जाऊंगा?

 अब मैं तुम्हारे साथ बिना शंका-संदेह के प्रेम से चलूंगा।’’

कहते हैं तब मृत्यु ने युवा बेटे को छोड़ दिया और ययाति को लेकर चली गई, क्योंकि जो व्यक्ति तृप्ति का अहसास कर चुका है, मौत उसे छू नहीं पाती।  

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