Kundli Tv- क्या है इस मंदिर के खंडित त्रिशूल का राज़

Edited By Jyoti,Updated: 21 Sep, 2018 12:56 PM

sudh mahadev temple in jammu

हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव को डमरू, त्रिशूल और गले में डला सर्प बेहद प्रिय है। आज हम आपको भगवान शिव के एेसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां शंकल का खंडित त्रिशूल स्थापित है। यह मंदिर जम्मू से 120 कि.मी. दूर पटनीटॉप के पास...

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हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव को डमरू, त्रिशूल और गले में डला सर्प बेहद प्रिय है। आज हम आपको भगवान शिव के एेसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां शंकर का खंडित त्रिशूल स्थापित है। यह मंदिर जम्मू से 120 कि.मी. दूर पटनीटॉप के पास सुध महादेव या शुद्ध महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर यहां के प्रमुख शिव मंदिरो में से एक है। इसकी सबसे बड़ी खास बात यह है कि यहां पर भगवान शंकर के शस्त्र विशाल त्रिशूल के तीन टुकड़े जमीन में गड़े हुए है जो कि पौराणिक कथाओ के अनुसार स्वंय भगवान शिव के हैं।
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर से कुछ दूरी पर माता पार्वती की जन्म भूमि मानतलाई है। लोक मान्यता है कि इसका निर्माण आज से लगभग 2800 वर्ष पूर्व हुआ था जिसका पुनर्निर्माण लगभग एक शताब्दी पूर्व एक स्थानीय निवासी रामदास महाजन और उसके पुत्र द्वारा करवाया गया था। इस मंदिर में एक प्राचीन शिवलिंग, नंदी और शिव परिवार की प्रतिमाएं स्थापित हैं।

सुध महादेव
पुराणों के अनुसार माता पार्वती रोज़ाना मानतलाई से इस मंदिर में पूजा करने आती थी। एक दिन जब पार्वती वहां पूजा कर रही थी तभी सुधान्त राक्षस, जो कि स्वंय भगवान शिव का भक्त था, वहां पूजन करने आया। जब सुधान्त ने माता पार्वती को वहां पूजन करते देखा तो वो पार्वती से बात करने के लिए उनके समीप जाकर खड़े हो गए। 

PunjabKesariजैसे ही मां पार्वती ने पूजन समाप्त होने के बाद अपनी आँखे खोली वो एक राक्षस को अपने सामने खड़ा देखकर घबरा गई। घबराहट में वो ज़ोर-ड़ोर से चिल्लाने लगी। 

उनके चिल्लाने की आवाज़ कैलाश पर समाधि में लीन भगवान शिव तक पहुंची। महादेव ने पार्वती की जान खतरे में जान कर राकक्ष को मारने के लिए अपना त्रिशूल फेंका।  

त्रिशूल आकर सुधांत के सीने में लगा। उधर त्रिशूल फेंकने के बाद शिवजी को ज्ञात हुआ की उनसे तो अनजाने में बड़ी गलती हो गई।  

इसलिए उन्होंने वहां पर आकर सुधांत को पुनः जीवन देने की पेशकश करी पर दानव सुधान्त ने इससे यह कह कर मना कर दिया की वो अपने इष्ट देव के हाथोंं से मरकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता है। 
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भगवान ने उसकी बात मान ली और कहा कि यह जगह आज से तुम्हारे नाम पर सुध महादेव के नाम से जानी जाएगी। साथ ही उन्होंने उस त्रिशूल के तीन टुकड़े करकर वहां गाड़ दिए जो कि आज भी वही है। 

इसके अलावा कुछ किवंदतियों के अनुसार सुधांत को दुराचारी राक्षस भी बताया गया है और कहा जाता है कि वो मंदिर में देवी पार्वती पर बुरी नियत से आया था इसलिए भगवान शिव ने उसका वध कर दिया।

मंदिर परिसर में एक ऐसा स्थान भी है जिसके बारे में कहा जाता है की यहां सुधान्त दानव की अस्थियां रखी हुई है।
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त्रिशूल के तीन टुकड़े
ये तीनों टुकड़े मंदिर परिसर में खुले में गड़े हुए है। इसमें सबसे बड़ा हिस्सा त्रिशूल के ऊपर वाला हिस्सा है। मध्यम आकर वाला बीच का हिस्सा है तथा सबसे नीचे का हिस्सा सबसे छोटा है जो कि पहले थोड़ा सा ज़मीन के ऊपर दिखाई देता था पर मदिर के अंदर टाईल लगाने के बाद वो फर्श के लेवल के बराबर हो गया है।  
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इन त्रिशूलों के ऊपर किसी अनजान लिपि में कुछ लिखा हुआ है जिसे आज तक पढ़ा नहीं जा सका। भक्त लोग इनका रोज़ाना जलाभिषेक भी करते हैं।

मंदिर के बाहर ही पाप नाशनी बाउली (बावड़ी) है जिसमें पहाड़ों से 24 घंटे 12 महीनो पानी आता रहता है। ऐसी मान्यता है की इसमें नहाने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। अधिकतर भक्त इसमें स्नान करने के बाद ही मंदिर में जाते हैं।
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