केदारनाथ में आई आपदा में लुप्त हो गए थे ये रहस्यमयी कुंड

Edited By Jyoti,Updated: 08 Jul, 2020 06:55 PM

these mysterious pools were lost in the disaster in kedarnath

हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा को बहुत ही महत्व दिया गया है। कहा जाता है प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन काल में एक बार ये यात्रा तो करनी चाहिए।

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हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा को बहुत ही महत्व दिया गया है। कहा जाता है प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन काल में एक बार ये यात्रा तो करनी चाहिए। मगर 2013 में इनमें से एक धाम में कुछ ऐसा हुआ था जिसने सबको हिलाकर रख दिया था। जी हां, हम बात कर रहे हैं 16-17 जून 2013 में आई आपदा की। इस आपद में आए खतरनाक जल सैलाब ने केवल कितनी जानें ली बल्कि पूरे उत्तराखंड का नक्शा बदल दिया था यानि तबाही मचा दी थी। आज हम आपको इस आपदा में खो गए उन कुंडों के बारे में बताने वाले हैं जो आज भी रहस्य बने हुए हैं, इतना ही नहीं बल्कि आज भी कुछ ऐसे लोग भी होंगे जिन्हें इन कुंडोों के बारे में पता तक नहीं होगा। तो चलिए जानते हैं इस बारे में- 
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केदारनाथ में हुई तबाही में खो गए ये कुंड
2013 में जो भी केदारनाथ में तबाही हु थी, उस मंजर को आज तक कोई नहीं भूल पाया। बताया जाता है 07 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी जब कभी इस तबाही का दृश्य आंखों के सामने आता है तो अंदर तक झिंझोर देता है। खबरों की मानें तो यहां इस आपदा से पहले यहां 5 दिव्य कुंड थे। जिनमें से दो थे अमृत कुंड और उदक कुंड। ऐसा कहा जाता है इस आपदा के दौरान ये दोनों कुंड लुप्त हो गए थे। आइए जानते हैं क्या है इन दोनों कुंडों का महत्व- 

उदक कुंड 
बताया जाता है ये कुंड केदारनाथ मंदिर से लगभग 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। ऐसा कहा जाता है इस कुंड से जल लेकर शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है। बल्कि श्रद्धालु यात्रा समाप्त करने पर इस कुंड का पावन जल गंगाजल के तौर पर अपने साथ ले जाते हैं।  

इस कुंड के जल से जुड़ी मान्यता है कि अगर मृत्यु के समय इसे व्यक्ति के मुंह में डाल दिया जाए तो व्यक्ति की आत्मा को जीवन-मरण के चक्र से हमेशा-हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है।

अमृत कुंड 
अपने रोगों तथा तमाम बीमारियों को दूर करने के लिए लोग इस जल का अपने ऊपर छिड़काव करते हैं। क्योंकि ऐसी मान्यताएं प्रचलित हैं कि इस कुंड का सभी प्रकार के रोग दोषों को दूर करने वाला है। 

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हंस कुंड 
इस कुंड से जुड़ी किंवदंतियों की मानें तो इस जगह ब्रह्मा जी ने हंस का रूप धारण किया था, जिस कारण इसका खासा महत्व है। यहं लोग आकर अपने पितरों का तर्पण तथा अस्थि विसर्जन संपन्न आदि करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यहां तर्पण, अस्थि विसर्जन और मृत व्यक्ति की जन्मकुंडली विसर्जित करने से जीवात्मा को हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है।

रेतस कुंड 
रेतस कुंड की बात करें तो इससे जुड़ी जो कथाएं मिलती हैं, उसके अनुसार कामदेव के भस्म होने पर देवी रति ने विलाप करते हुए अपने आंसू बहाए थे, जिससे इस कुंड की उत्पत्ति हुई। यही कारण है कि इस कुंड की अद्भुत विशेषता है कि। मान्यता है यहां ओम नमः शिवाय बोलने पर पानी का बुलबुला उठने लगता है। 

हवन कुंड
हवन कुंड नामक ये कुंड मंदिर के सामने हुआ करता था। जहां तमाम तरह के धार्मिक आयोजन, हवन आदि संपन्न होते थे। 
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