...तो क्या राम जन्मभूमि के विवाद का असल दोषी है वास्तु?

Edited By Jyoti,Updated: 05 Dec, 2019 10:44 AM

vastu the real culprit in the ram janmabhoomi dispute

सरयू नदी के किनारे बसी (हिन्दुओं के आराध्य) मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् राम की जन्मस्थली अयोध्यापुरी का उल्लेख भारत के कई प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है।

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सरयू नदी के किनारे बसी (हिन्दुओं के अराध्य) मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम की जन्मस्थली अयोध्या पुरी का उल्लेख भारत के कई प्राचीन ग्रन्थों में मिलता है। जहां एक ओर अयोध्या अनादिकाल से प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी ओर राम जन्मस्थली सदियों से वास्तुदोषों के कारण विवादित है और रहेगी। जब हम अयोध्या नगरी और राम जन्मभूमि दोनों स्थानों की भौगोलिक स्थिति को वास्तु की नज़र से देखेंगे तो इस स्थान का भविष्य आइने की तरह साफ़ हो जाएगा-

सबसे पहले देखते हैं, प्राचीनकाल से अयोध्या को इतनी प्रसिद्धि क्यों मिली हुई है?
अयोध्या की उत्तर दिशा से सरयू नदी बहती हुई पूर्व दिशा की ओर घुमाव लेकर पूरे नगर को घेरती हुई पूर्व दिशा की ओर ही आगे को बढ़ गई है। जिस स्थान पर वर्तमान में रामलला की मूर्ति रखी है (जहां कभी बाबरी मस्जिद होती थी) वह स्थान अयोध्या का सबसे ऊंचा स्थान है और वहां ज़मीन में चारों दिशाओं में ढलान है। यह ढलान उत्तर और पूर्व दिशा की ओर सरयू नदी तक चला गया है। उत्तर एवं पूर्व दिशा में भूमि का ढलान सामान्य है, सामान्यतः ऐसा ढलान नदी के किनारे बसे सभी नगरों में पाया जाता है।
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वास्तुशास्त्र के इसी सिद्धान्त के अनुसार जहां उत्तर दिशा में ढलान हो और साथ में अधिक मात्रा में पानी हो तो वह स्थान निश्चित ही प्रसिद्धि प्राप्त करता है और पूर्व दिशा की ओर का ढलान और पानी धनागमन में सहायक होता है। अयोध्या के उत्तर दिशा के ढलान और उसके आगे सरयू नदी के कारण यह नगरी प्राचीनकाल से ही प्रसिद्ध है।

अयोध्या में किसी भी प्रकार का न तो कोई बड़ा उद्योग है, न ही कोई व्यापारिक मंडी है किन्तु नगर की उत्तर एवं पूर्व दिशा में ढलान और उत्तर से पूर्व दिशा में बहने वाली सरयू नदी के कारण यहां धन की कमी नहीं है। 

अयोध्या में 7972 मंदिर है। असंख्य संत हैं, 562 रजिस्टर्ड पण्डे-पुजारी, 500 से अधिक गाइड के साथ-साथ यहां हनुमान जी की फौज (बंदर) भी बहुत अधिक तादाद में हैं। नगरवासियों के साथ-साथ, संत, पण्डे-पुजारी, गाइड, बंदर इत्यादि सभी का भरण-पोषण आसानी और अच्छे तरीके से हो रहा है। इस नगर में धन की अच्छी आवक है। जैसा कि मुझे गाइड ने बताया। मुझे अक्टूबर 2010 में अध्योधा जाने का मौका मिला था।

अब वास्तु-विश्लेषण करते हैं राम जन्मभूमि परिसर की भौगोलिक स्थिति की और देखते हैं यह स्थान प्रसिद्ध होने के साथ-साथ इतना विवादित क्यों है?
राम जन्मभूमि परिसर में बाबरी मस्जिद के मलबे से बने टीले के ऊपर अस्थायी शेड के अन्दर वर्तमान में रामलला पूर्वमुखी विराजित हैं। यह स्थान अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण पहले से ही सबसे ऊंचा था।  बाबरी मस्जिद टूटने के बाद अब यह ऊंचाई मलबे के कारण और भी बढ़ गई है। अस्थायी शेड़ के सामने उत्तर एवं पूर्व दिशा में भूमि का ढलान सामान्य है, जबकि इस टीले के ठीक पीछे पश्चिम दिशा एवं नैऋत्य कोण में भूमि का कटाव एकदम खड़ा एवं काफी गहरा है। जब दर्शनार्थी रामलला के दर्शन करते हैं तो शेड के पीछे पश्चिम दिशा में ऐसा प्रतीत होता है जैसे वहां खाई हो। साथ ही शेड के पीछे पश्चिम दिशा में दुराही कुंआ भी है।

वास्तुशास्त्र के अनुसार जहां पश्चिम दिशा में ढलान, गढ्ढे, कुंआ, तालाब या किसी भी रूप में निचाई हो तो ऐसे स्थान पर रहने वालों में दूसरों की तुलना में ज्यादा धार्मिकता रहती है। जिन घरों में पश्चिम दिशा में निचाई एवं पानी होता है उन घरों में रहने वाले ज़रूरत से ज्यादा धार्मिक होते हैं। नैऋत्य कोण का इतना तीखा ढलान अमंगलकारी होकर विनाश का कारण बनता है। संसार में जिन घरों में भी हत्याएं जैसी अनहोनी घटनाएं घटती हैं, उन घरों के नैऋत्य कोण में इस प्रकार के दोष अवश्य होते हैं।
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राम जन्मभूमि परिसर में आने के दो मार्ग पूर्व दिशा से है। एक मार्ग जहां दर्शनार्थी रामलला के दर्शन के लिए रंग महल बेरियर से होते हुए उत्तर ईशान से परिसर के अन्दर घुसते हैं और फिर परिसर की पूर्व दिशा में चलते हुए परिसर के पूर्व आग्नेय से ही अन्दर की ओर मुड़ते हैं। जहां आजकल कतार में लगकर दर्शन करने के लिए बेरिकेट्स लगे हैं। दूसरा मार्ग अयोध्या नगरी के मुख्य मार्ग से परिसर में अन्दर आने का पुराना मार्ग है। जो इस परिसर के पूर्व आग्नेय भाग से टकराता है। आजकल इस मार्ग का उपयोग वी.आई.पी एवं पुलिस के वाहनों के आने-जाने के लिए किया जा रहा है। दर्शनार्थियों के बाहर जाने का रास्ता भी परिसर के पूर्व आग्नेय से ही है। तात्पर्य परिसर में आने-जाने के सभी रास्ते पूर्व आग्नेय से ही है। परिसर में पूर्व आग्नेय में प्रवेशद्वार होने के साथ-साथ परिसर को पुराने मार्ग से पूर्व आग्नेय का मार्ग प्रहार भी हो रहा है और इसी मार्ग के कारण जन्मभूमि परिसर की तार फेंसिंग से परिसर का पूर्व आग्नेय वाला भाग बढ़ भी गया है।

वास्तुशास्त्र के अनुसार तार फैंसिंग भी चार दीवारी की तरह ही प्रभाव देती है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व आग्नेय के दोष ही विवाद और कलह के कारण बनते हैं। दुनिया में जहां भी विवाद होते हैं चाहे छोटे हो या बड़े, वहां पूर्व आग्नेय में दोष अवश्य पाया जाता है। राम जन्मभूमि परिसर के पूर्व आग्नेय में उपरोक्त तीन दोष एक साथ होने के कारण ही विवाद इतना अधिक बढ़ गया है।

इस वास्तु-विश्लेषण से स्पष्ट है, राम जन्मभूमि परिसर की पश्चिम दिशा के वास्तुदोषों के कारण इस स्थान के प्रति लोगों में जुनून की हद तक धार्मिकता है। पूर्व आग्नेय के दोष के कारण, स्थान को लेकर हो रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है और नैऋत्य कोण के दोष के कारण समय-समय पर हत्याएं और अनहोनी हो रही हैं।

चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई का एक सिद्धान्त है, अगर पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो और ढलान के बाद पानी का झरना, कुण्ड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है।Ayodhya Ram janam Bhoomi, ayodhya verdict, ram janmabhoomi ayodhya, Vastu Kuldeep Saluja, Ram Janmabhoomi dispute, Vastu Connection with ayodhya
जबकि रामजन्म भूमि परिसर की भौगोलिक स्थिति फेंगशुई के इस सिद्धान्त के बिल्कुल विपरीत है क्योंकि इसके पीछे की ओर दक्षिण एवं पश्चिम दिशा में गहरी खाई के समान निचाई है। इस वास्तुदोष के कारण इस स्थान पर बने भवन बार-बार ध्वस्त होते रहे हैं।

राम जन्मभूमि परिसर के उपरोक्त वास्तुदोषों के कारण यह विवाद कभी सुलझ नहीं सकता। देश के अमन-चैन चाहने वाले भी विवाद को सुलझाने के लिए चाहे कितने ही सकारात्मक प्रयास क्यों न कर लें। नतीजा कुछ भी नहीं निकलने वाला, यह बिल्कुल तय है।

वास्तु विशेषज्ञ कुलदीप सलूजा
gmail- <thenebula2001@gmail.com>

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