दर्शन के बाद मंदिर की सीढ़ियों पर बैठना क्यों शुभ माना जाता है ? जानिए कारण

Edited By Updated: 29 Dec, 2025 03:40 PM

why do we sit outside the temple

Why Do We Sit Outside the Temple : हिंदू धर्म में मंदिर जाना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। आपने अक्सर देखा होगा कि लोग मंदिर में दर्शन करने और परिक्रमा पूरी करने के बाद मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ देर के लिए शांति से बैठते...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Why Do We Sit Outside the Temple : हिंदू धर्म में मंदिर जाना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। आपने अक्सर देखा होगा कि लोग मंदिर में दर्शन करने और परिक्रमा पूरी करने के बाद मंदिर की सीढ़ियों पर कुछ देर के लिए शांति से बैठते हैं। बहुत से लोग इसे केवल थकान मिटाने का जरिया मानते हैं लेकिन वास्तव में इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और पौराणिक कारण छिपा है। आज के समय में यह परंपरा एक औपचारिकता बनकर रह गई है लेकिन शास्त्रों में इसके पीछे एक विशेष श्लोक और उद्देश्य बताया गया है। आइए विस्तार से जानते हैं कि मंदिर दर्शन के बाद सीढ़ियों पर बैठना क्यों अनिवार्य माना गया है।

Why Do We Sit Outside the Temple

प्राचीन परंपरा और शास्त्रोक्त नियम
शास्त्रों के अनुसार, मंदिर के दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाते जब तक आप कुछ पल मंदिर की दहलीज या सीढ़ियों पर बैठकर भगवान का ध्यान न करें। इसके पीछे एक प्रसिद्ध श्लोक है जो उस समय के मानसिक भाव को दर्शाता है:

अनायासेन मरणम्, बिना दैन्येन जीवनम्। देहि मे कृपया शम्भो, त्वयि भक्तिमचंचलाम्॥

इस श्लोक का अर्थ है कि हे प्रभु ! जब मेरी मृत्यु आए तो वह कष्टरहित हो, मेरा जीवन कभी दीनता या लाचारी वाला न हो और आपके चरणों में मेरी भक्ति सदैव अटल बनी रहे। सीढ़ियों पर बैठकर भक्त इसी भाव का चिंतन करता है।

संसार को मंदिर के बाहर छोड़ने का प्रतीक
मंदिर के भीतर हम ईश्वरीय ऊर्जा और शांति का अनुभव करते हैं। जब हम दर्शन करके बाहर आते हैं और सीढ़ियों पर बैठते हैं, तो यह एक ट्रांजिशन पीरियड की तरह होता है। सीढ़ियों पर बैठकर हम यह विचार करते हैं कि जो शांति हमें गर्भगृह में मिली, उसे हम अपने भीतर कैसे समाहित करें। यह समय खुद को दुनियादारी की भागदौड़ के लिए फिर से तैयार करने का होता है ताकि हम मंदिर की सकारात्मकता को साथ लेकर घर लौटें, न कि घर की चिंताओं को मंदिर के भीतर ले जाएं।

आत्म-चिंतन और ध्यान 
भीड़भाड़ वाले मंदिरों में अक्सर हम भगवान की मूर्ति को देखने में इतने व्यस्त होते हैं कि हम अंतर्मन से जुड़ना भूल जाते हैं। सीढ़ियों पर बैठने का मुख्य उद्देश्य दर्शन को अनुभव में बदलना है। आंखें बंद करके बैठने से भक्त उस छवि को अपने हृदय में उतारता है जिसे उसने अभी-अभी गर्भगृह में देखा है। यह क्षण भगवान और भक्त के बीच एक मौन संवाद का होता है।

Why Do We Sit Outside the Temple

अहंकार का त्याग
मंदिर की सीढ़ियां वह स्थान हैं जहां राजा और रंक दोनों एक साथ बैठते हैं। यह स्थान हमें याद दिलाता है कि ईश्वर के दरबार में कोई छोटा या बड़ा नहीं है। सीढ़ियों पर बैठकर हम जमीन से जुड़ते हैं। यह क्रिया हमारे भीतर के अहंकार को समाप्त करती है और हमें यह अहसास कराती है कि हम उस परमेश्वर की सृष्टि का एक छोटा सा हिस्सा मात्र हैं।

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