World Environment Day 2025: पितरों का उद्धार चाहते हैं तो ग्लोबल वार्मिंग को ग्लोबल वार्निग में बदलने से रोके

Edited By Updated: 05 Jun, 2025 07:29 AM

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World Environment Day 2025: आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण, संवर्धन एवं प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था निरंतर चली आ रही है। प्रकृति को संतुलित रखना ही पर्यावरण शुद्धि है, जिसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपादान पेड़-पौधे, वन-उपवन व...

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World Environment Day 2025: आदिकाल से ही भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण, संवर्धन एवं प्रदूषण नियंत्रण की व्यवस्था निरंतर चली आ रही है। प्रकृति को संतुलित रखना ही पर्यावरण शुद्धि है, जिसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपादान पेड़-पौधे, वन-उपवन व वृक्ष-वनस्पतियां हैं। यही कारण है कि हमारे पूर्वजों ने वृक्षों को देवतुल्य पूज्य, पुत्र समान स्नेही और तुलसी जैसे बिरवे को देवी मान कर गृहस्थ के हृदय स्थल में स्थान दिया है। 

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परोपकारी पेड़ सम्माननीय तो सभी के लिए हैं, पर भारतीयों ने तो पेड़ों के लिए जान बलिदान कर प्रत्युपकार से इतिहास को गौरवान्वित किया है। वृक्ष ही इस संसार में सच्चे परोपकारी हैं। ये अपने पत्ते, फूल, फल, छाया, छाल, मूल, लकड़ी, गंध, गोंद, राख, कोयला और अंतत: खाद बनकर सज्जन पुरुषों के जैसे सबकी कामना पूर्ण करते हैं। 

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गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं : तुलसी संत सुअम्ब तरु, फूल फरै पर हेत। इतते ये पाहन हनै, उतते वे फल देत॥

सभी जीवधारियों को प्राणवायु की सर्वाधिक जरूरी तौर पर आवश्यकता होती है। पेड़-पौधे उसे जीवनदायक आक्सीजन प्रदान करते हैं। सामान्य तौर पर अस्सी वर्ष की उम्र में एक व्यक्ति उतनी आक्सीजन लेता है, जो सत्तर वृक्ष अपने जीवन काल में देते हैं। प्रश्न स्वाभाविक है कि हम अपने जीवन में कितने वृक्ष लगाते व उनका लालन-पालन करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति ‘दशपुत्रसमो द्रमु:’ का संदेश देने वाली है। भूमिदान और गोदान का जो पुण्य बताया गयाा है, वैसा ही फल वृक्षारोपण से मिलता है।

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आधुनिक भोगवादी सभ्यता ने प्रकृति से अनुचित तथा अत्यधिक मात्रा में छेड़छाड़ अथवा मलिनीकरण से प्रदूषण की समस्या को भयावह बना दिया है। भारत में तो इसका मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या ही है, जिससे दिनोंदिन वन एवं कृषि भूमि का नगरीकरण प्राणवायु की न्यूनतम को न्यौता दे रहा है और इसकी एक झलक ‘करोना काल’ हमें दिखा भी चुका है।

पेड़ पर्यावरण के प्रतिनिधि, जीवधारी के उपकारी, सेवाधर्म के सर्वोत्तम प्रेरक, दैवीय शक्ति से सम्पन्न और सर्वपूज्य हैं। वृक्षों के ऊपर ही वृष्टि और वायुशोधन का महद दायित्व है। 

ये पेड़ ही हैं जो हमें रात-दिन उपदेश देते हैं कि देने का नाम ही जीवन है। प्राकृतिक रूप से एक पौधे का जीवन भी उतना ही मूल्यवान है, जितना एक मनुष्य का। पेड़-पौधे पर्यावरण को प्रदूषण से मुक्त करने में जितने सहायक हैं, उतना मनुष्य नहीं है, वह तो पर्यावरण को प्रदूषित ही करता है।

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भविष्य पुराण में बताया गया है कि जो व्यक्ति छाया, फूल और फल देने वाले वृक्षों का रोपण करता है या मार्ग तथा देवालय में वृक्षों को लगता है, वह अपने पितरों का उद्धार कर देता है और स्वयं भी कल्याण का भागी होता है।

प्रकृति की सुरक्षा और शुद्धि के साथ ही मानव की सुरक्षा एवं समृद्धि का समवाय संबंध है। परंतु आज मनुष्य ने विकास के नाम पर अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति का जो अंधाधुंध दोहन और उच्छेदन किया है, इससे पारिस्थितिक तंत्र गड़बड़ाने लगा है, जिसके दुष्परिणाम हमें और हमारी आने वाली पीढ़ी को भोगने ही होंगे। वैश्विक तापमान बढ़ रहा है और नए-नए रोग सामने आ रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग ग्लोबल वार्निग दे रही है।

अभी भी समय है कि मानव ‘माता भूमि: पुत्रोऽहं पृथिव्या:’ की आचारशीलता को अंगीकार कर प्रायश्चित को तत्पर हो। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में संयम बरतते हुए प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण इस्तेमाल करे। शुभ अवसरों पर पेड़ों के संरक्षण, संवर्धन और शस्य-श्यामला धरा के लिए प्रार्थना करे-करवाए। यही भारतीय दर्शन की मूल भावना है और यही विश्व मानव के लिए सदा-सर्वदा वरेण्य है।

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