नेपाल में नदी के रूप में स्थापित हैं तुलसी, इनके पत्थरों की भी होती है पूजा

Edited By ,Updated: 23 Jun, 2016 11:23 AM

gandaki river

भारत की सीमा से लगा नेपाल मनमोहक देश है। यहां के धार्मिक व सांस्कृतिक रीति-रिवाज भारत से मेल खाते हैं क्योंकि नेपाल प्राचीन भारत का

भारत की सीमा से लगा नेपाल मनमोहक देश है। यहां के धार्मिक व सांस्कृतिक रीति-रिवाज भारत से मेल खाते हैं क्योंकि नेपाल प्राचीन भारत का भाग है।  भले ही आज ये देश के रूप में स्थापित है परंतु वहां की परंपराअों में भारतीय संस्कृति की झलक दिखाई देती है। वहां बहुत सारी ऐसी जगह हैं जिनका उल्लेख हिंदू धार्मिक ग्रंथों में है। जैसे नेपाल में स्थित गंडकी नदी का भी वर्णन है। कहा जाता है कि यहां देवी तुलसी नदी के रुप में हैं।

 

तुलसी बनी गंडकी नदी

शिवपुराण के अनुसार तुलसी दानवों के राजा शंखचूड़ की पत्नी थी। तुलसी के पतिव्रत की वजह से देवता भी उसे हरा नहीं सकते थे। उसकी दुष्टता को देख भगवान विष्णु ने धोखे से तुलसी का पतिव्रत भंग किया था अौर भोलेनाथ ने उसका वध किया था। श्री विष्णु के छल को जान तुलसी ने उन्हें शालीग्राम बनने का श्राप दिया था। भगवान विष्णु ने श्राप को स्वीकार किया अौर तुलसी को कहा कि वह धरती पर गंडकी नदी अौर तुलसी के पौधे के स्वरुप में पूजी जाएंगी। 

 

यहां मिलते हैं शालिग्राम

इस नदी में विशिष्ट प्रकार के पत्थर हैं। जिन पर चक्र, गदा आदि के चिन्ह बने होते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ये पत्थर भगवान विष्णु का स्वरूप होने के कारण इन्हें शालिग्राम शिला कहते हैं। विद्वानों का मानना है कि शिवपुराण में लिखा है कि श्री विष्णु ने स्वयं बताया है कि उनका वास गंडकी नदी में है। वहां जल में मौजूद करोड़ों कीड़े अपने तेज दांतों से काटकर पाषाणों में श्री विष्णु के चक्र का चिह्न बनाएंगे। इसलिए इस शिला को मेरे स्वरुप के रुप में पूजा जाएगा।

 

शालिग्राम और तुलसी विवाह की परंपरा

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार देवी तुलसी ने कई वर्षों तक तपस्या की थी ताकि वह श्री विष्णु को अपने पति के रुप में पा सके। उनके तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उनसे विवाह करने का वर दिया था। जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी में पूर्ण करते हैं। इस दिन शालिग्राम शिला तथा तुलसी के पौधे का विवाह किया जाता है।

 

जानिए कहां स्थित है गंडकी नदी

इस नदी को गंडक नदी और नारायणी के नाम से भी जाना जाता है। यह मध्य नेपाल और उत्तरी भारत में बहती है। यह नदी तिब्बत के पर्वतों से निकलती हैं। सोनपुर और हाजीपुर के मध्य में गंगा नदी में मिलती है। इस नदी का निर्माण काली नदी और त्रिशूली नदियों के मेल से हुआ है। इन नदियों के संगम स्थल से भारतीय सीमा तक इस नदी को नारायणी के नाम से जाना जाता है। ये नदी नेपाल की सबसे बड़ी नदियों में से एक है। महाभारत में भी गंडकी नदी का वर्णन किया गया है।

 

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