Edited By Anu Malhotra,Updated: 03 Dec, 2025 03:44 PM

श्रीलंका इस समय ऐसी त्रासदी से गुजर रहा है, जिसकी भयावहता ने पूरे देश को झकझोर दिया है। चक्रवात ‘दित्वाह’ ने कुछ ही दिनों में वह तबाही मचा दी, जिसे भरने में सालों लग जाएंगे। पहाड़ों से लेकर तटीय इलाकों तक, हर जगह पानी, मलबा और तबाही का साया है।...
इंटरनेशनल डेस्क: श्रीलंका इस समय ऐसी त्रासदी से गुजर रहा है, जिसकी भयावहता ने पूरे देश को झकझोर दिया है। चक्रवात ‘दित्वाह’ ने कुछ ही दिनों में वह तबाही मचा दी, जिसे भरने में सालों लग जाएंगे। पहाड़ों से लेकर तटीय इलाकों तक, हर जगह पानी, मलबा और तबाही का साया है। अधिकारियों का कहना है कि चक्रवात में अब तक 465 लोगों की जान चली गई है, जबकि 366 लोग अब भी लापता हैं और उनका कोई सुराग नहीं मिल पाया है और उनके जिंदा मिलने की उम्मीद लगभग खत्म हो चुकी है। लगातार हुई बारिश और भूस्खलनों ने गांव के गांव मिटा दिए और हजारों परिवारों को बेघर कर दिया।
पुनर्निर्माण का बोझ—58 हज़ार करोड़ रुपये का घाव
आपदा प्रबंधन विभाग के अनुसार, घरों, सड़क नेटवर्क, कृषि भूमि और औद्योगिक ढांचे को फिर से खड़ा करने में 6–7 अरब डॉलर की भारी राशि की जरूरत होगी। यानी देश की नाजुक अर्थव्यवस्था पर एक और पहाड़ जैसा बोझ।
बेघर परिवारों को आर्थिक मदद
सरकार ने प्रभावितों के लिए राहत राशि तय की है—
जिनका घर पूरी तरह तबाह हो गया, उन्हें लाखों रुपये तक की सहायता मिलेगी।
घरों की सफाई और बुनियादी जरूरतों के लिए अलग से धनराशि दी जा रही है।
फिर भी, नुकसान इतना ज़्यादा है कि राहत की यह मदद भी कई परिवारों के जख्मों को भरने के लिए नाकाफी लग रही है।
आर्थिक संकट के बाद नई मार
श्रीलंका वैसे भी पिछले तीन वर्षों से कर्ज, महंगाई और आर्थिक ढहाव से जूझ रहा था। ऐसे में यह प्राकृतिक आपदा देश के लिए एक और गहरा धक्का साबित हुई। राष्ट्रपति ने देश में आपातकाल लागू कर दिया है और विश्व समुदाय से त्वरित सहायता की मांग की है। सरकार का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय सहयोग के बिना पुनर्निर्माण की शुरुआत भी मुश्किल होगी।
कर्ज़ में डूबे देश पर चक्रवात का दोहरा प्रहार
पहले से आर्थिक तंगी, ऊपर से प्राकृतिक आपदा—दित्वाह ने श्रीलंका की कमर तोड़ दी है। देश को अब न सिर्फ जीवन बचाने की चुनौती है, बल्कि भविष्य के आर्थिक ढांचे को फिर से खड़ा करने की जंग भी लड़नी है। दुनिया की निगाहें अब इस छोटे से द्वीप राष्ट्र पर हैं, जो उम्मीद कर रहा है कि वैश्विक समुदाय मदद का हाथ बढ़ाएगा।