'5 घंटे जिंदा रहा दफन हुआ शख्स...' मौत के मुंह से निकलने के बाद बताई सारी बात

Edited By Updated: 20 Nov, 2025 11:15 PM

a buried man remained alive for 5 hours

अमेरिका के एक व्यक्ति की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं। जिस शख्स को परिवार मृत समझ चुका था, जिसे डॉक्टरों ने ब्रेन डेड बताकर लाइफ सपोर्ट हटाने की तैयारी कर ली थी- वही शख्स अचानक जिंदगी की ओर लौट आया। यह अविश्वसनीय घटना 44 वर्षीय मैट पोट्रैट्ज़ की...

नेशनल डेस्क: अमेरिका के एक व्यक्ति की कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं। जिस शख्स को परिवार मृत समझ चुका था, जिसे डॉक्टरों ने ब्रेन डेड बताकर लाइफ सपोर्ट हटाने की तैयारी कर ली थी- वही शख्स अचानक जिंदगी की ओर लौट आया। यह अविश्वसनीय घटना 44 वर्षीय मैट पोट्रैट्ज़ की है, जिनकी मौत जैसी स्थिति ने सभी को निराश कर दिया था, लेकिन चंद सेकंड में किस्मत ने करवट बदली और मौत के मुंह से उन्हें वापस खींच लिया।

पांच घंटे तक बर्फ के नीचे दफन था मैट

मिरर की रिपोर्ट के अनुसार, मैट जब 27 साल के थे, तब इडाहो में हुए एक भीषण हिमस्खलन में कई फुट बर्फ के नीचे दब गए। वह पहाड़ से नीचे गिरे, एक पेड़ से टकराए, हेलमेट फट गया और उनकी सांस की नली पूरी तरह बर्फ से भर गई। मैट को खोजने में उनके साथियों को पांच घंटे लग गए। जब उन्हें निकाला गया, तो शरीर में कोई हलचल नहीं थी। न सांस, न नाड़ी- मैट मृत दिख रहे थे।

डॉक्टरों ने ब्रेन डेड घोषित कर दिया

अस्पताल ले जाते समय ही परिवार को लग चुका था कि उनकी मौत हो चुकी है। जांच में पाया गया कि मैट के मस्तिष्क में कोई गतिविधि नहीं है। उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर लाइफ सपोर्ट पर रखा गया, जिसे हटाने का फैसला हो चुका था। परिवार और दोस्त बेड के पास खड़े रो रहे थे, अंतिम विदाई देने को तैयार थे।

और ठीक उसी समय हुआ चमत्कार

परिवार जब लाइफ सपोर्ट हटाने का मन बना रहा था, मैट के एक दोस्त ने अचानक कहा- "मुझे लगता है मैट हमें महसूस कर रहा है, क्यों न हम उसे पुकारकर देखें?" वह जोर से चिल्लाया- "मैट, अगर तुम मुझे सुन सकते हो, तो आंखें खोलो!" मैट ने आंखें तो नहीं खोलीं, लेकिन उनकी पलकें हिलने लगीं। परिजन सन्न रह गए। डॉक्टरों ने फिर जांच की और पाया कि मैट ने हल्का-सा प्रतिक्रिया दी है। यह वह क्षण था जिसने सबका विश्वास हिला दिया- मैट जिंदा थे।

हादसा, चोटें और लंबी जंग

मैट की गर्दन टूट चुकी थी, फीमर और कई पसलियां टूट गईं, फेफड़ा धंस गया था और दिमाग में गंभीर चोट थी। 88 दिन तक वह अस्पताल में रहे, जिनमें लगभग आधा समय कोमा में थे। कोमा से बाहर आने के बाद वह न बोल पा रहे थे, न अपना नाम लिख पा रहे थे। उन्हें अक्षर, शब्द, गिनती- सब कुछ दोबारा सीखना पड़ा, जैसे एक छोटे बच्चे को सिखाया जाता है।

मानसिक जंग ज्यादा कठिन

मैट बताते हैं कि शारीरिक दर्द बेहद था, लेकिन भावनात्मक दर्द उससे कहीं ज्यादा। “मैं पहले एथलेटिक, मजबूत था। लेकिन हादसे के बाद यह स्वीकार करना कि मैं वही इंसान नहीं रहा- यही सबसे कठिन था।”

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