Shardiya Navratri 2024: बिहार के इस माता के मंदिर में पूजा करने से भक्तों को मिलती है कष्टों से मुक्ति, होती है हर मनोकामना पूर्ण

Edited By Updated: 09 Oct, 2024 11:20 PM

by worshipping in this mother s temple devotees get relief from their sufferings

बिहार के नवादा जिले में स्थित मां चामुंडा मंदिर में पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ हीं उन्हें कष्टों से मुक्ति भी मिल जाती है। नवादा से लगभग 23 किलोमीटर दूर रोह-कौआकोल मार्ग पर स्थित रूपौ गांव में मां चामुंडा मंदिर में पूजा करने...

नवादाः बिहार के नवादा जिले में स्थित मां चामुंडा मंदिर में पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण होने के साथ हीं उन्हें कष्टों से मुक्ति भी मिल जाती है। नवादा से लगभग 23 किलोमीटर दूर रोह-कौआकोल मार्ग पर स्थित रूपौ गांव में मां चामुंडा मंदिर में पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। नवरात्र में यहां भारी संख्या में भक्त पूजा-पाठ करने के लिए आते है। मां चामुंडा देवी के दरबार में नवरात्र के दौरान उपासना से भक्तों को रूप, जय और यश की प्राप्ति होती है। मां चामुंडा देवी के दर्शन एवं पूजन से भक्तों को जीवन की समस्त बाधाओं और कष्टों से मुक्ति मिलती है। 

मां चामुंडा शक्तिपीठ में सप्तमी को विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। सुबह से ही श्रद्धालु यहां पहुंच कर माता की अराधना में जुट जाते हैं। जिनकी मनोकामना पूर्ण होती है वे लोग अपने परिवार के साथ यहां पूरे दस दिनों तक पूजा-अर्चना करते है। मंदिर परिसर के अंदर मां चामुंडा का प्रतिदिन सुबह-शाम श्रृंगार और आरती की जाती है। मंदिर परिसर में कई अन्य देवी-देवताओं की मूर्ति भी है। 

माकर्ंडेय पुराण में मां चामुंडा देवी की शौर्य गाथा वर्णित है। माकर्ंडेय पुराण के अनुसार, देवलोक में आतंक फैला रखे शुंभ-निशुंभ दैत्य भाइयों ने अपने दैत्य शिष्य चण्ड-मुण्ड को मां दुर्गा से युद्ध करने के लिए भेजा था। मां ने युद्ध कर चण्ड-मुण्ड का संहार कर दिया। इसके बाद से ही मां अम्बा चामुंडा देवी कही जाने लगी। चण्ड-मुण्ड के संहार के बाद उसके मुंडों की माला पहन कर मां चामुंडा देवी ने शुंभ-निशुभ दैत्यों का भी संहार किया। इसके बाद देवी-देवताओं ने राहत की सांस ली थी। देवी के रूप बदलने वाले स्थान का नाम है रूपौ। 

पुरोहितों का तर्क है कि शुंभ-निशुंभ के संहार के लिए मां अम्बा ने जिस स्थान पर अपना रूप बदला था, वर्तमान में वह स्थान रूपौ के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक मंगलवार को यहां माता के दर्शन एवं पूजन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर में शिव-पार्वती, गणेश जी, बजरंगबली, दुर्गा देवी, महाकाल, शनिदेव, विश्वकर्मा भगवान एवं राधा-कृष्ण भी विद्यमान हैं। मंदिर में चढ़ावा प्रसाद के रूप में दूध, नारियल, बताशा, पेड़ा, चुनरी, सिंदूर, लाल एवं सफेद उड़हुल फूल, अगरबत्ती एवं कपूर चढ़ाने की परंपरा है। 

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