क्या बैंकिंग सेक्टर पर मंडरा रहा खतरा, लोगों ने पैसे जमा कराने किए बंद... सरकार ने दिया बड़ा बयान

Edited By Updated: 13 Sep, 2025 03:36 PM

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पिछले एक साल में देश के बैंकों में ग्राहकों द्वारा पैसे जमा करने की प्रवृत्ति में तेजी से कमी आई है। इसका सीधा असर बैंकों की कमाई और लोन देने की क्षमता पर पड़ रहा है। अब इस गिरते हुए ट्रेंड को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों...

नेशनल डेस्क: पिछले एक साल में देश के बैंकों में ग्राहकों द्वारा पैसे जमा करने की प्रवृत्ति में तेजी से कमी आई है। इसका सीधा असर बैंकों की कमाई और लोन देने की क्षमता पर पड़ रहा है। अब इस गिरते हुए ट्रेंड को देखते हुए वित्त मंत्रालय ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को सतर्क किया है और ‘कासा जमा’ (CASA Deposits) में सुधार लाने के स्पष्ट निर्देश दिए हैं।

क्या है कासा और क्यों है ये इतना अहम?
‘CASA’ यानी चालू खाता (Current Account) और बचत खाता (Savings Account) में ग्राहकों द्वारा जमा की गई राशि। इन खातों पर बैंकों को बहुत कम या शून्य ब्याज देना होता है, जिससे उन्हें सस्ती फंडिंग मिलती है। यही पैसे बैंक फिर लोन के रूप में जारी करते हैं और मुनाफा कमाते हैं। CASA रेश्यो बताता है कि बैंक की कुल जमा राशि में से कितनी रकम चालू और बचत खातों से आ रही है। जितना ज्यादा ये अनुपात होगा, बैंक के लिए उतना ही बेहतर।

बैंकों की हालत क्या कहती है?
SBI (भारतीय स्टेट बैंक) का CASA रेश्यो 2024 की जून तिमाही में 40.70% से घटकर 39.36% पर आ गया।
बैंक ऑफ बड़ौदा का भी रेश्यो 39.33% तक गिर चुका है।

यह आंकड़े इस बात का संकेत हैं कि ग्राहक अब अपने पैसों को बैंक में रखने की बजाय दूसरे विकल्पों जैसे म्यूचुअल फंड, डिजिटल वॉलेट्स या निवेश साधनों में शिफ्ट कर रहे हैं।

सरकार का रुख सख्त: बैंकों को दिए निर्देश
वित्त मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि बैंकों को CASA जमा में सुधार लाने के लिए नई रणनीति अपनानी होगी। साथ ही उन्हें यह भी निर्देश दिए गए हैं कि:
-कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता दी जाए
-MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) सेक्टर को अधिक कर्ज उपलब्ध कराया जाए
-यह दोनों सेक्टर भारत में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले क्षेत्र हैं, और इन्हें सपोर्ट करना आर्थिक विकास की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।

CASA में गिरावट का क्या मतलब है?
CASA में कमी का मतलब है कि बैंकों को अब महंगे साधनों से फंडिंग करनी पड़ रही है, जैसे फिक्स्ड डिपॉजिट्स या मार्केट से उधारी। इससे उनकी ब्याज दरें बढ़ सकती हैं और लोन महंगे हो सकते हैं, जिसका असर सीधे आम उपभोक्ता और छोटे कारोबारियों पर पड़ेगा।

 क्या है इसका आर्थिक असर?
-बैंकों की लोन देने की क्षमता घटेगी
-उनकी मार्जिन और मुनाफा पर असर पड़ेगा
-कर्ज महंगा होने से नए निवेश पर असर होगा
-आम लोगों और MSMEs को सस्ता कर्ज मिलना मुश्किल हो सकता है
 

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