मनरेगा खत्म... अब राज्य सरकारें भी होगी जबावदेह, पैसों का भी बदला नियम

Edited By Updated: 16 Dec, 2025 01:57 PM

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केंद्र सरकार मनरेगा को समाप्त कर नई ग्रामीण रोजगार योजना लाने की तैयारी कर रही है। विकसित भारत–रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक 2025 के तहत रोजगार के दिन 100 से बढ़ाकर 125 किए जाएंगे। योजना में राज्यों की बड़ी भूमिका होगी और खेती के...

नेशनल डेस्क : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ग्रामीण रोजगार व्यवस्था में बड़े बदलाव की तैयारी कर रही है। सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को समाप्त कर उसकी जगह एक नई रोजगार गारंटी योजना लागू करने के लिए लोकसभा में नया विधेयक पेश करने की तैयारी में है। प्रस्तावित नई योजना को किसानों के हित में बताया जा रहा है, वहीं विपक्ष ने इस बदलाव को लेकर कड़ी आपत्ति जताई है और विशेष रूप से महात्मा गांधी का नाम हटाने को लेकर सरकार पर निशाना साधा है।

सरकार द्वारा लाए जाने वाले नए कानून का नाम ‘विकसित भारत–रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन (ग्रामीण)’ रखा गया है। अंग्रेज़ी में इसे Viksit Bharat – Guarantee for Rozgar and Ajeevika Mission (Gramin) कहा जाएगा। यह विधेयक VB-G RAM G Bill, 2025 के नाम से जाना जाएगा। राजनीतिक गलियारों में इसे संक्षेप में ‘विकसित भारत–जी राम जी विधेयक, 2025’ कहा जा रहा है। उल्लेखनीय है कि मनरेगा वर्ष 2005 से लागू है और पिछले दो दशकों से ग्रामीण रोजगार की सबसे बड़ी योजना रही है। अब सरकार इस योजना के स्वरूप और नाम में बदलाव कर इसे ‘पूज्य बापू रोजगार गारंटी योजना’ के रूप में आगे बढ़ाने की तैयारी में है।

राज्यों की भूमिका होगी अधिक अहम
नए विधेयक में राज्यों को पहले की तुलना में अधिक अधिकार दिए गए हैं। इसके तहत राज्य सरकारें स्थानीय और क्षेत्रीय आवश्यकताओं के आधार पर यह तय कर सकेंगी कि श्रमिकों को किन प्राथमिक कार्यों में लगाया जाए। योजना को प्रधानमंत्री गति शक्ति कार्यक्रम से जोड़ा जाएगा, जिससे पारदर्शिता सुनिश्चित करने के साथ-साथ विकास कार्यों में दोहराव की संभावना समाप्त हो सकेगी। इसके अंतर्गत विस्तृत विकसित ग्राम पंचायत योजनाएं तैयार की जाएंगी, ताकि गांव भी विकसित भारत @2047 के राष्ट्रीय विजन का सक्रिय हिस्सा बन सकें।

केंद्र और राज्यों की साझा जवाबदेही
नए कानून के तहत केवल केंद्र ही नहीं, बल्कि राज्य सरकारों की जवाबदेही भी तय की गई है। जहां पहले मनरेगा के तहत पूरा वित्तपोषण केंद्र सरकार करती थी, वहीं अब लागत साझा करने का नया मॉडल अपनाया जाएगा। सामान्य राज्यों के लिए केंद्र और राज्य के बीच खर्च का अनुपात 60:40 होगा, जबकि पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिए यह अनुपात 90:10 रखा गया है। इससे राज्यों की वित्तीय भागीदारी बढ़ेगी और कामकाज के साथ-साथ फंड की निगरानी भी बेहतर होने की उम्मीद है।

खेती-किसानी को मिलेगी राहत
केंद्र सरकार का मानना है कि मनरेगा के कारण खेती के मौसम में खेतों में मजदूरों की कमी की शिकायतें लगातार सामने आती रही हैं। नई योजना में इस समस्या के समाधान का प्रावधान किया गया है। रोजगार गारंटी को बढ़ाकर 125 दिन किया जाएगा और मजदूरों को खेती तथा उससे जुड़ी गतिविधियों में, यहां तक कि अपने स्वयं के खेतों पर काम करने की भी अनुमति दी जाएगी।

इसके साथ ही राज्यों को यह अधिकार दिया गया है कि वे बुवाई और कटाई जैसे कृषि कार्यों के दौरान एक वर्ष में अधिकतम 60 दिनों तक सार्वजनिक कार्यों को अस्थायी रूप से रोक सकें। हालांकि यह रोक लगातार 60 दिनों से अधिक नहीं होगी, बल्कि 10–15 दिन के चरणों में लागू की जाएगी, ताकि सार्वजनिक कार्य लंबे समय तक बाधित न हों। सरकार का दावा है कि इससे खेती के मौसम में मजदूरी महंगाई पर भी नियंत्रण बना रहेगा और श्रमिकों को अपने खेतों में काम करने का अवसर मिलेगा।

विकसित ग्राम पंचायत योजना पर जोर
नए कानून के तहत मजदूरों को लगभग 25 प्रतिशत अधिक रोजगार अवसर मिलने का दावा किया गया है। योजना में डिजिटल उपस्थिति, आधार आधारित सत्यापन और इलेक्ट्रॉनिक भुगतान प्रणाली को अनिवार्य किया गया है। यदि तय समय पर रोजगार उपलब्ध नहीं कराया जाता है, तो बेरोजगारी भत्ता देना राज्यों के लिए बाध्यकारी होगा।

फिलहाल देश में लगभग 40 लाख लोग 100 दिन की ग्रामीण रोजगार योजना का लाभ ले रहे हैं। नई योजना के तहत यह सीमा बढ़ाकर 125 दिन कर दी जाएगी। जहां मनरेगा पूरे वर्ष चलती थी, वहीं नई योजना को खेती के प्रमुख मौसम के दौरान अस्थायी रूप से स्थगित रखा जाएगा।

इसके अंतर्गत पहले विकसित ग्राम पंचायत प्लान तैयार किया जाएगा और फिर उसे गति शक्ति योजना से जोड़ा जाएगा, ताकि विकास कार्यों में दोहराव न हो। ग्राम पंचायत की जरूरतों के अनुसार बुनियादी ढांचे—जैसे आंगनबाड़ी भवन, सामुदायिक संरचनाएं आदि—का निर्धारण कर उसी आधार पर काम और धन का आवंटन किया जाएगा।

आपदा के समय भी मिलेगा रोजगार
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि राष्ट्रीय प्राकृतिक आपदाओं के दौरान इस योजना के तहत रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा। वित्त वर्ष के लिए योजना का प्रस्तावित आवंटन 1,51,282 करोड़ रुपये रखा गया है, जो पिछले वर्ष के 86,000 करोड़ रुपये के आवंटन से कहीं अधिक है।

पंचायतों की होगी ग्रेडिंग
ग्राम पंचायतों में किए गए कार्यों के आधार पर उन्हें A, B और C ग्रेड में वर्गीकृत किया जाएगा। जिन पंचायतों में काम कम हुआ है या जहां विकास की अधिक आवश्यकता है, वहां इस योजना के तहत विशेष ध्यान दिया जाएगा। पंचायतों से मिले सुझावों के आधार पर गांवों को श्रेणियों में रखा जाएगा, ताकि राज्य सरकारें यह तय कर सकें कि किन क्षेत्रों में सबसे पहले विकास कार्यों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

ग्रामीण विकास के चार प्राथमिक क्षेत्र
VBG RAM G विधेयक के तहत ग्रामीण विकास के लिए चार प्रमुख क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है। इनमें जल सुरक्षा से जुड़े कार्य, कोर ग्रामीण अवसंरचना, अत्यधिक मौसमीय घटनाओं से निपटने के लिए विशेष परियोजनाएं और आजीविका से संबंधित अवसंरचना शामिल हैं। इन सभी परिसंपत्तियों को विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक में जोड़ा जाएगा, जिससे योजनाओं के बीच बेहतर समन्वय और निगरानी संभव हो सके।

नाम बदलने पर विपक्ष का विरोध
मनरेगा की जगह नया कानून लाने और योजना का नाम बदलने को लेकर विपक्ष ने सरकार पर तीखा हमला बोला है। कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सवाल उठाया कि योजना का नाम बदलने से सरकारी दफ्तरों और स्टेशनरी में बदलाव होगा, जिस पर भारी खर्च आएगा। उन्होंने कहा कि इससे जनता को क्या लाभ होगा, यह समझ से परे है।

प्रियंका गांधी ने महात्मा गांधी का नाम हटाए जाने पर निराशा जताते हुए कहा कि गांधी न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में एक महान नेता के रूप में जाने जाते हैं। उनका नाम हटाने के पीछे सरकार के उद्देश्य पर उन्होंने सवाल खड़े किए। वहीं तृणमूल कांग्रेस के नेता और राज्यसभा सांसद डेरेक ओ’ब्रायन ने इस कदम को महात्मा गांधी का अपमान करार दिया है।

नई योजना को लेकर जहां सरकार इसे ग्रामीण विकास और किसानों के हित में बड़ा सुधार बता रही है, वहीं विपक्ष इसे महात्मा गांधी की विरासत से दूर जाने की कोशिश के रूप में देख रहा है। आने वाले समय में संसद में इस विधेयक पर तीखी बहस होने की संभावना जताई जा रही है।

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