विचाराधीन कैदियों की पेशी के दौरान सुरक्षा चिंताओं से संबंधित याचिकाओं पर 11 अक्टूबर को सुनवाई

Edited By Updated: 06 Oct, 2022 08:20 PM

hearing on october 11 on petitions related to security concerns

सुप्रीम कोर्ट देशभर की निचली अदालतों में सुरक्षा चिंताओं से संबंधित उस याचिका की सुनवाई 11 अक्टूबर को करेगा, जिसमें कहा गया है कि विचाराधीन कैदियों को सुनवाई की प्रत्येक तारीख पर ‘नियमित रूप से' अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश नहीं दिया जाना चाहिए

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट देशभर की निचली अदालतों में सुरक्षा चिंताओं से संबंधित उस याचिका की सुनवाई 11 अक्टूबर को करेगा, जिसमें कहा गया है कि विचाराधीन कैदियों को सुनवाई की प्रत्येक तारीख पर ‘नियमित रूप से' अदालत के समक्ष पेश करने का निर्देश नहीं दिया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड की गई वाद सूची के अनुसार, याचिका मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

अधिवक्ता ऋषि मल्होत्रा ​​द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि यदि निचली अदालत अपने सामने एक विचाराधीन कैदी की निजी तौर पर पेशी को उपयुक्त समझती है तो उसके लिए जेलों से वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग से पेशी के आदेश दिये जा सकते हैं, खासकर गैंगस्टर मामले में, ताकि सार्वजनिक सुरक्षा और न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा प्रभावित न हो और अभियुक्तों के अधिकार संतुलित रहें। याचिका में निचली अदालतों में कई घटनाओं का उल्लेख किया गया है, जिसमें दिल्ली की एक जिला अदालत में पिछले साल सितंबर की गोलीबारी की घटना भी शामिल है। इस घटना में जेल में बंद एक गैंगस्टर सहित तीन लोग मारे गए थे।

याचिका में कहा गया है, ‘‘इसके अलावा, भारत में सभी निचली अदालतों में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां एक विचाराधीन कैदी को निचली अदालत में पेश करने के क्रम में या तो जनता की सुरक्षा जोखिम में डाल दी गयी या उक्त विचाराधीन कैदी पुलिस की हिरासत से फरार हो गया।'' याचिका में दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के विभिन्न प्रावधानों का जिक्र करते हुए कहा गया है कि ये प्रावधान संबंधित अदालत को सामान्य सुनवाई के दौरान जेल से लाये गए विचाराधीन कैदियों की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट देने की शक्ति प्रदान करते हैं।

याचिका में कहा गया है, ‘‘पूरे भारत में यह हो रहा है कि नियमित रूप से विचाराधीन कैदियों को प्रत्येक तारीख को जेलों से संबंधित निचली अदालतों में पेश किया जाता है, जिससे न केवल सरकारी खजाने पर अनावश्यक बोझ बढ़ता है, बल्कि इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि सार्वजनिक सुरक्षा और संबंधित विचाराधीन कैदी की सुरक्षा भी खतरे में पड़ती है।''

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