भारत के इन मंदिरों में भगवान को चढ़ता है मांस, जानिए क्यों कानून भी पड़ जाता है इसके आगे फीका?

Edited By Updated: 14 Jul, 2025 10:23 AM

in these temples of india animal meat is offered to god

सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है और इस दौरान ज़्यादातर हिंदू धर्म को मानने वाले लोग मांस-मदिरा से परहेज़ करते हैं। यह माना जाता है कि इस पवित्र महीने में मांस का सेवन करना गलत और धर्म के विरुद्ध आचरण है। पुराने लोगों का कहना है कि भारतीय...

नेशनल डेस्क। सावन का पवित्र महीना शुरू हो चुका है और इस दौरान ज़्यादातर हिंदू धर्म को मानने वाले लोग मांस-मदिरा से परहेज़ करते हैं। यह माना जाता है कि इस पवित्र महीने में मांस का सेवन करना गलत और धर्म के विरुद्ध आचरण है। पुराने लोगों का कहना है कि भारतीय धर्मशास्त्रों में मांसाहार को वर्जित किया गया है। यही कारण है कि जब भी किसी मंदिर में प्रसाद या चढ़ावे की बात आती है तो सामग्री की पवित्रता और उसके शाकाहारी सात्विक होने की परख की जाती है। हालाँकि भारत जैसे विविधता वाले देश में जहाँ हर 100 किलोमीटर पर भाषा, बोली, पहनावा और खान-पान बदलता है वैसे ही पूजा पद्धतियाँ और मान्यताएँ भी बदल जाती हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि भारत के कुछ मंदिर ऐसे भी हैं जहाँ भगवान को जानवरों का मांस प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है वो भी चिकन, मटन और मछली। इतना ही नहीं भक्त इसे श्रद्धा से प्रसाद के रूप में स्वीकार भी करते हैं।

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प्राचीन बलि प्रथा का आधुनिक रूप और मांसाहारी प्रसाद

प्राचीन काल में नरबलि का प्रचलन था जहाँ ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए नरबलि दी जाती थी लेकिन समय के साथ यह प्रथा बदली और उनकी जगह पशुबलि दी जाने लगी। शास्त्रों में भले ही पशुबलि को लेकर कुछ भी लिखा हो लेकिन देश में आज भी कई मंदिर ऐसे हैं जहाँ जानवरों की बलि दी जाती है और उसके मांस को प्रसाद के रूप में भी बांटा जाता है।

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आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में:

  • कामाख्या देवी मंदिर (असम): 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाने वाला यह मंदिर दुनियाभर में तंत्र विद्या के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। यहाँ माता के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए मांस और मछली अर्पित करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से माता प्रसन्न होती हैं। भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

  • कालीघाट मंदिर (पश्चिम बंगाल): पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में स्थित कालीघाट मंदिर भी ऐसे ही मंदिरों में से एक है जहाँ जानवर का मांस चढ़ाया जाता है। यहाँ भक्त देवी को बकरे की बलि देते हैं बाद में यही बकरे का मांस प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

  • मुनियांदी स्वामी मंदिर (तमिलनाडु): तमिलनाडु के मदुरै में स्थित मुनियांदी स्वामी मंदिर भी अपने मांसाहारी प्रसाद के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान मुनियांदी को प्रसाद के रूप में चिकन और मटन बिरयानी चढ़ाई जाती है। इसके बाद इसी बिरयानी को प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।

  • तरकुलहा देवी मंदिर (उत्तर प्रदेश): उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में स्थित तरकुलहा देवी मंदिर में भी बकरे की बलि दिए जाने की प्रथा है। मनोकामना पूरी होने पर भक्त इस मंदिर में बकरे की बलि देते हैं। इसके बाद मंदिर का रसोइया इसी मांस को मिट्टी के बर्तनों में पकाता है जिसे भक्तों के बीच मटन प्रसाद के रूप में दिया जाता है।

  • दक्षिणेश्वर काली मंदिर (पश्चिम बंगाल): कोलकाता का दक्षिणेश्वर काली मंदिर में भी काली माता को भोग के रूप में मछली अर्पित की जाती है। इसी मछली को भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

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क्यों इन मंदिरों पर नहीं चलता कोई कानून?

आपके मन में यह सवाल उठ सकता है कि इन मंदिरों में ऐसा क्यों होता है और कानून क्यों नहीं चलता? दरअसल भारतीय संविधान के अनुसार हर नागरिक को अपनी आस्था और भक्ति का पालन करने की छूट है। इसके अलावा भोजन में वह क्या करना चाहता है वह भी उसके मौलिक अधिकार हैं। इसलिए कानूनी तौर पर जायज़ जानवरों की बलि को लेकर किसी तरह की कोई रोकटोक नहीं है बशर्ते यह कानून सम्मत तरीके से की जाए।

यह भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता को दर्शाता है जहाँ एक ही देश में अलग-अलग आस्थाओं के लोग अपनी-अपनी मान्यताओं का पालन करते हैं।

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