वोटर स्याही का क्या है राज? जो पानी और साबुन से मिटाए नहीं मिटती, जानिए सबकुछ

Edited By Updated: 03 Nov, 2025 08:12 PM

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भारत की चुनावी स्याही दुनिया के 35 से अधिक देशों में इस्तेमाल की जा रही है। 1952 में नेशनल फिजिकल लेबोरेटरी ने इसे तैयार किया था। मैसूर पेंट एंड वार्निश कंपनी इसका निर्माण करती है और इसका फार्मूला अब तक गोपनीय है। इसमें सिल्वर नाइट्रेट होता है, जो...

नेशनल डेस्क : बिहार विधानसभा चुनाव के मतदान के बीच एक बार फिर चर्चा में है वो नीली स्याही, जो मतदाता की उंगली पर लगाकर लोकतंत्र की मुहर बनती है। यह स्याही सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनिया के 35 से अधिक देशों में इस्तेमाल हो रही है। इसकी कहानी 1951-52 के पहले आम चुनाव से शुरू होती है, जब वोटिंग में धांधली के कई मामले सामने आए।

धांधली रोकने का अनोखा तरीका
आजादी के बाद पहले चुनाव में कई लोग एक से ज्यादा बार वोट डाल रहे थे। शिकायतें बढ़ीं तो मामला चुनाव आयोग पहुंचा। आयोग ने तय किया कि मतदाता की उंगली पर ऐसा निशान लगे जो आसानी से न मिटे। इसके लिए नेशनल फिजिकल लेबोरेट्री ऑफ इंडिया (NPL) से मदद ली गई। NPL ने पानी और केमिकल से न मिटने वाली स्याही तैयार की। बनाने का ठेका मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड को मिला। कर्नाटक के मैसूर में आज भी यही कंपनी गोपनीय फॉर्मूले से स्याही बनाती है।

उंगली से नाखून पर क्यों बदला नियम?
1971 से पहले स्याही उंगली पर लगती थी, लेकिन कई मतदाताओं ने इसे लगवाने से इनकार किया। वाराणसी की एक युवती ने शादी के दिन उंगली पर निशान को लेकर मना कर दिया। रगड़कर मिटने की आशंका भी थी। आयोग ने 1971 में नियम बदला और नाखून पर लगाने का चलन शुरू किया, ताकि नाखून बढ़ने के साथ निशान खुद गायब हो जाए।

स्याही का वैज्ञानिक राज
1952 में NPL और काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के वैज्ञानिकों ने इसे विकसित किया। मुख्य तत्व है सिल्वर नाइट्रेट। यह शरीर के सोडियम क्लोराइड से प्रतिक्रिया कर नीली स्याही को काली कर देता है। पानी से गाढ़ी हो जाती है, साबुन भी असर नहीं डालता। पूरा फॉर्मूला आज भी गोपनीय है। न NPL ने खोला, न मैसूर कंपनी ने। केवल यही कंपनी इसे बनाने का एकाधिकार रखती है और 35+ देशों को निर्यात करती है।

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