Edited By Shubham Anand,Updated: 23 Jul, 2025 09:54 PM

मानसून सत्र के पहले ही दिन सोमवार (21 जुलाई 2024) को देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफा देने से राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई। उन्होंने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपते हुए स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया।
नेशनल डेस्क : मानसून सत्र के पहले ही दिन सोमवार (21 जुलाई 2024) को देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफा देने से राजनीतिक हलकों में हलचल मच गई। उन्होंने अपना इस्तीफा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपते हुए स्वास्थ्य कारणों का हवाला दिया। राष्ट्रपति ने मंगलवार (22 जुलाई 2025) को उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।
इस्तीफे के बाद शुरू की उपराष्ट्रपति भवन खाली करने की प्रक्रिया
सूत्रों के अनुसार, धनखड़ ने सोमवार रात लगभग 9 बजे राष्ट्रपति भवन पहुंचकर राष्ट्रपति से मुलाकात की और अपना इस्तीफा सौंपा। इसके करीब आधे घंटे बाद उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर इस्तीफा सार्वजनिक कर दिया। उसी दिन से उन्होंने उपराष्ट्रपति भवन को खाली करने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
मिलेगा टाइप-8 कैटेगरी का सरकारी बंगला
धनखड़ पिछले साल अप्रैल में संसद भवन परिसर के पास चर्च रोड स्थित नवनिर्मित उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में शिफ्ट हुए थे। करीब 15 महीने रहने के बाद अब उन्हें यह सरकारी आवास छोड़ना होगा। केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, उन्हें लुटियंस दिल्ली या किसी अन्य प्रमुख स्थान पर टाइप-8 कैटेगरी का बंगला दिया जाएगा। आमतौर पर यह आवास वरिष्ठ केंद्रीय मंत्रियों या राष्ट्रीय दलों के प्रमुखों को आवंटित किया जाता है।
विपक्ष ने उठाए सवाल, कहा – "स्वास्थ्य नहीं, कोई और कारण है"
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने धनखड़ के इस्तीफे पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि स्वास्थ्य कारणों से परे कुछ और गहरे कारण इस निर्णय के पीछे हो सकते हैं। विपक्ष का आरोप है कि कई नेताओं ने उनसे मिलने का समय मांगा, लेकिन उन्हें मिलने का अवसर नहीं मिला। इस्तीफे के बाद से उन्होंने किसी भी राजनीतिक दल के प्रतिनिधियों से मुलाकात नहीं की।
“किसान पुत्र को नहीं दी गई सम्मानजनक विदाई” – विपक्ष
गौरतलब है कि विपक्षी सांसदों ने पहले धनखड़ पर पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की भी कोशिश की थी। लेकिन इस्तीफे के बाद विपक्षी नेता उनकी प्रशंसा कर रहे हैं। उनका कहना है कि एक ‘किसान पुत्र’ को उसके पद से विदाई के समय वह सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वह हकदार थे।