कारगिल दिवस: सिर पर सजने वाला था शादी का सेहरा, तिरंगे में लिपटकर घर पहुंचा शव

Edited By Updated: 24 Jul, 2018 11:49 AM

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26 जुलाई 2018 को कारगिल युद्ध में भारत की विजय के 19 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस कारगिल युद्ध में देश के कई वीर सपूतों ने कुर्बानी दे दी। देश पर मर मिटने वाले इन जवानों के किस्से आज भी लोगों का सीना गर्व से चौड़ा कर देते हैं। कैप्टन अनुज नय्यर...

नई दिल्ली: 26 जुलाई 2018 को कारगिल युद्ध में भारत की विजय के 19 साल पूरे होने जा रहे हैं। इस कारगिल युद्ध में देश के कई वीर सपूतों ने कुर्बानी दे दी। देश पर मर मिटने वाले इन जवानों के किस्से आज भी लोगों का सीना गर्व से चौड़ा कर देते हैं। कैप्टन अनुज नय्यर इनमें से ही एक नाम थे। वह महज 24 साल के थे, जब उन्होंने खुद को देश के लिए कुर्बान कर दिया था। 

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बचपन में बहुत शरारती थे अनुज
अनुज का जन्म 28 अगस्त 1975 को दिल्ली में हुआ था उनके पिता एस.के. नय्यर दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर थे। इस लिहाज उनके घर पर पढ़ाई का अच्छा माहौल था। ऐसे में उन्हें पढ़ाई के दौरान कभी कोई कठिनाई नहीं आई। शुरुआती पढ़ाई के लिए उनका दाखिला धौला कुआं के आर्मी पब्लिक स्कूल में कराया गया था। अनुज के पिता की मानें तो वह बहुत शरारती थे। अक्सर उन्हें इसके लिए डांट भी पड़ती थी। 

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17 जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे अनुज नायर
अनुज नायर 17 जाट रेजीमेंट के अधिकारी थे। जिस वक्त कारगिल की जंग में वो शामिल हुए, उस वक्त उम्र सिर्फ 22 साल थी। उन्हें जिम्मेदारी मिली थी पिंपल टू नाम से मशहूर चोटी प्वाइंट 4875 से दुश्मन को खदेडऩे की। 6 जुलाई 1999 को कैप्टन अनुज नायर की चार्ली कंपनी ने बिना किसी हवाई मदद के इस चोटी को पर विजय हासिल करने के लिए कूच कर दिया। चोटी की ऊंचाई थी करीब 16 हजार फीट प्वाइंट 4875 पर पाकिस्तानी सेना ने कई भारी भरकम बंकर बना रखे थे। पॉइंट 4875 को जीतना अनुज के लिए बेहद जरूरी था। असल में इसकी पोजिशन ऐसी जगह पर थी, जहां से एक झटके में जंग का रुख बदल दिया जा सकता था। हालांकि, यहां तक पहुंचना आसान नहीं था। यह पॉइंट हजारों फीट की ऊंचाई पर था। वहां से फेंका जाने वाला एक पत्थर अनुज और उनके साथियों के लिए जानलेवा हो सकता था।

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अनुज की योजना से घुसपैठियों को पीछे हटना पड़ा
बावजूद इसके कैप्टन नय्यर अपनी टीम के साथ आगे बढ़ गए। इसी बीच नय्यर टीम के कमांडर के जख्मी होने से टीम को दो टुकडिय़ों में बांट दिया गया। एक टीम को लेकर कैप्टन विक्रम बत्रा आगे बढ़े और दूसरी टीम के साथ कैप्टन अनुज दुश्मन पर टूट पड़े। वह तेजी से चोटी की ओर बढऩे लगे। अचानक पाकिस्तानी घुसपैठियों को उनके होने की आहट हो गई। उन्होंने अनुज की टीम पर हमला बोल दिया। अनुज ने जल्दबाजी न दिखाते हुए मौके का इंतजार किया और फिर जवाबी हमला किया। अनुज की योजना काम आई और पाकिस्तानी घुसपैठियों को पीछे हटना पड़ा। इस हमले में अनुज ने पाकिस्तान के नौ घुसपैठियों को मार गिराया था।

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अनुज को महावीर चक्र से नवाजा गया
इसी बीच दुश्मनों का आरपीजी यानी रॉकेट प्रोपेल्ड ग्रेनेड सीधे कैप्टन अनुज नायर को आ लगा और वो शहीद हो गए। कैप्टन अनुज नायर को उनकी इस बहादुरी के लिए महावीर चक्र से नवाजा गया। एक मां के लिए इससे बड़ा ज़ख्म और क्या हो सकता है कि जिस बेटे के सिर पर वो कुछ ही दिनों बाद शादी का सेहरा सजने वाला था, वो अब दुनिया में नहीं रहा। 

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