कर्नाटक के थिरमकुदालु नरसीपुरा में होगा ‘कुंभ मेला’

Edited By shukdev,Updated: 06 Jan, 2019 05:30 PM

kumbh mela in thiramkudalu narasipura of karnataka

दक्षिण भारत में कर्नाटक के मैसूर जिले के थिरमकुदालु नरसीपुरा में कावेरी, कपिला तथा पौराणिक स्पाटिका सरोवर (गुप्त गामिनी) के संगम तट पर ‘कुंभ मेला’ का आयोजन 17 से 19 फरवरी तक होगा। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित ‘कुंभ मेला’ में...

मैसूर: दक्षिण भारत में कर्नाटक के मैसूर जिले के थिरमकुदालु नरसीपुरा में कावेरी, कपिला तथा पौराणिक स्पाटिका सरोवर (गुप्त गामिनी) के संगम तट पर ‘कुंभ मेला’ का आयोजन 17 से 19 फरवरी तक होगा। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित ‘कुंभ मेला’ में दुनियाभर के श्रद्धालुओं का जामवड़ा लगा हुआ है।

दक्षिण भारत में ‘कुंभ मेले’ की शुरुआत 30 वर्ष पहले हुई थी और यहां पर इसका आयोजन हर तीन वर्ष में होता है। वैसे तो कुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), नासिक (महाराष्ट्र), हरिद्वार, (उत्तराखंड) तथा उज्जैन (मध्य प्रदेश) में होता है, लेकिन प्रयागराज के त्रिवेणी संगम की तरह कावेरी, कपिला तथा स्पाटिका सरोवर के संगम की पवित्रता और लोकप्रियता को देखते हुए यहां के ऋषियों ने यहां भी कुंभ मेले का आयोजन करने का फैसला किया। इसका मुख्य उद्देश्य दक्षिण भारत के उन लोगों को धार्मिक उत्सव में हिस्सा लेने के लिए अवसर प्रदान करना है, जो उत्तर भारत में जाकर ऐसे समागमों में हिस्सा नहीं ले सकते हैं।

जिला प्रभारी मंत्री जी. टी. देवेगौड़ा ने बताया कि इससे पहले कुंभ के 11 वें संस्करण में सुत्तूर मठ के महंत देशिकेंद्र स्वामी जी, आदिचुनचनगिरी मठ के महंत निर्मलानंदनता स्वामी तथा रामकृष्ण आश्रम के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार दक्षिण भारत में आयोजित होने वाले कुंभ मेले के लिए ढांचागत निर्माण लिए धन और प्रशासनिक सहायता मुहैया कराएगी। उन्होंने बताया कि कुंभ मेले में लगभग 20 लाख लोगों के आने की उम्मीद है। वर्ष 1989 से शुरू हुए इस कुंभ मेले में वर्ष 2013 में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में लगभग पांच लाख की बढ़ोतरी हुई थी और इस बार इसमें और बढ़ोतरी होने की उम्मीद है।

उन्होंने बताया कि थिरमकुदालु नरसीपुरा में आयोजित होने वाले कुंभ मेले की पहल सुत्तूर मठ के शिवरात्रि देशिकेंद्र स्वामी, आदिचुनचनगिरि के दिवंगत बालगंदरनाथ स्वामी की ओर से की गई थी। उनके अनुसार इसका उद्देश मैसूर क्षेत्र उन लोगों को शुभ मुहूर्त में पवित्र नदी में स्थान करने का अवसर प्रदान करना है, जो महाकुंभ में हिस्सा नहीं ले सकते हैं। 

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