Edited By Radhika,Updated: 26 Sep, 2025 12:44 PM

भारतीय वायुसेना के स्वदेशी और highly acclaimed मिग-21 फाइटर जेट को चंडीगढ़ एयरफोर्स स्टेशन से 26 सितम्बर को फेयरवेल दी गई।1963 से भारतीय वायुसेना की सेवा में रहे इस सुपरसोनिक जेट ने 63 वर्षों में देश की सीमाओं की रक्षा का गौरवपूर्ण काम किया।
नेशनल डेस्क: भारतीय वायुसेना के स्वदेशी और highly acclaimed मिग-21 फाइटर जेट को चंडीगढ़ एयरफोर्स स्टेशन से 26 सितम्बर को फेयरवेल दी गई। 1963 से भारतीय वायुसेना की सेवा में रहे इस सुपरसोनिक जेट ने 63 वर्षों में देश की सीमाओं की रक्षा का गौरवपूर्ण काम किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान, सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी, नौसेना प्रमुख एडमिरल दिनेश के त्रिपाठी समेत कई वरिष्ठ अधिकारी और वायुसेना के पूर्व प्रमुख इस ऐतिहासिक विदाई समारोह में उपस्थित थे।
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मिग-21 की गौरवशाली सेवा
मिग-21 की शुरुआत तत्कालीन soviet union के साथ 1961 के करार के बाद भारत में 1963 में हुई। यह भारत का पहला सुपरसोनिक लड़ाकू विमान था जिसने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों, 1999 के कारगिल युद्ध और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक जैसे महत्वपूर्ण युद्ध अभियान में अहम भूमिका निभाई। मिग-21 को ‘फ्लाइंग कॉफिन’ भी कहा जाता था क्योंकि इसके कई क्रैश हुए, लेकिन इसने देश के लिए अपनी सेवाएं पूरे समर्पण और बहादुरी से दी। विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान में इसी विमान से पाकिस्तान के एफ-16 विमान को मार गिराने वाले वीर पायलट के तौर पर लोकप्रिय हैं।
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विदाई समारोह की शानदार झलक
चंडीगढ़ एयरबेस पर आयोजित इस समारोह में वायुसेना की प्रसिद्ध ‘आकाश गंगा’ स्काइडाइविंग टीम ने 8,000 फुट की ऊंचाई से स्काइडाइव कर दर्शकों को मोहित किया। इसके बाद मिग-21 विमानों की शानदार फ्लाईपास्ट हुआ, जिसमें सूर्य किरण एरोबैटिक टीम ने अपनी अद्भुत करतबों से सभी का मन मोह लिया। विदाई के दौरान छह मिग-21 जेट विमानों को वाटर कैनन से सलामी दी गई, जो वायु सेना की इस विरासत को सम्मानित करने की खास परंपरा रही।
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मिग-21 की अंतिम उड़ान ‘पैंथर फॉर्मेशन’ में हुई, जिसमें 23वीं स्क्वाड्रन के 6 विमान शामिल थे। यह वही स्क्वाड्रन है जिसने मिग-21 की पहचान को लंबे समय तक मजबूती से बनाए रखा। अंतिम उड़ान में एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह और स्क्वाड्रन लीडर प्रिया शर्मा शामिल थीं, जो इस स्क्वाड्रन की सातवीं महिला पायलट हैं। उन्होंने इस ऐतिहासिक विमान को आखिरी बार आसमान में लेकर अपनी उच्च उड़ान भरी।
मिग-21 का इतिहास-
मिग-21 ने लगभग 16 लाख उड़ान घंटे पूरे किए हैं और इसे भारतीय वायुसेना की रीढ़ की हड्डी माना जाता था। 1965 के युद्ध में इसकी अहम भूमिका रही, जब इसने दुश्मन के कई विमानों को मार गिराया। 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम में भी मिग-21 ने भारत को हवाई श्रेष्ठता दिलाने में मदद की। 1999 के कारगिल युद्ध में इसे फिर से तैनात किया गया, और 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक में भी इसने अपनी सेवा जारी रखी।
पूर्व वायुसेना अध्यक्ष भी मिग-21 की ताकत और आक्रमकता की सराहना करते हैं। सेवानिवृत्त विंग कमांडर राजीव बत्तीश ने कहा कि इस विमान ने भारतीय वायुसेना की ताकत को कई गुना बढ़ाया। सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने भी कहा कि मिग-21 भारतीय स्काई कीं गार्डियन के रूप में अपनी भूमिका निभाता रहा और इसकी कमी महसूस होगी।