Edited By Harman Kaur,Updated: 11 Jul, 2025 01:33 PM

पिछले एक दशक (10 साल) में दुनिया की जनसंख्या में जो बदलाव आए हैं, वे न सिर्फ आंकड़ों की कहानी कहते हैं, बल्कि आने वाले समय की सामाजिक और राजनीतिक तस्वीर भी खींचते हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की नई रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच मुसलमानों की...
नेशनल डेस्क: पिछले एक दशक (10 साल) में दुनिया की जनसंख्या में जो बदलाव आए हैं, वे न सिर्फ आंकड़ों की कहानी कहते हैं, बल्कि आने वाले समय की सामाजिक और राजनीतिक तस्वीर भी खींचते हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की नई रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच मुसलमानों की आबादी में अब तक की सबसे तेज़ बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
2 अरब तक पहुंची मुस्लिम जनसंख्या
इस दौरान वैश्विक मुस्लिम जनसंख्या 34.7 करोड़ बढ़कर 2 अरब तक पहुंच गई, जबकि ईसाई आबादी में 12.2 करोड़ की वृद्धि हुई और वह 2.3 अरब पर पहुंची। हिंदू जनसंख्या में भी बढ़ोतरी हुई, लेकिन तुलनात्मक रूप से यह काफी धीमी रही – करीब 12.6 करोड़ की वृद्धि के साथ यह 1.2 अरब हो गई।
मुस्लिम जनसंख्या बढ़ी, तो क्यों?
इस वृद्धि के पीछे मुख्य कारण है मुस्लिम समुदाय में अधिक जन्म दर। रिपोर्ट में बताया गया है कि 2015 से 2020 के बीच एक मुस्लिम महिला ने औसतन 2.9 बच्चों को जन्म दिया, जबकि गैर-मुस्लिम महिलाओं के लिए यह आंकड़ा 2.2 रहा। इस अंतर के चलते मुसलमानों की जनसंख्या न केवल तेजी से बढ़ी, बल्कि पहली बार सभी गैर-मुस्लिम समुदायों की संयुक्त वृद्धि से भी आगे निकल गई। इतना ही नहीं, 2020 में जितने नए मुसलमान जुड़े, वह संख्या (347 मिलियन) पूरी वैश्विक बौद्ध आबादी (324 मिलियन) से भी अधिक रही।
कहां हैं सबसे ज़्यादा मुसलमान?
रिपोर्ट के अनुसार, एशिया-प्रशांत क्षेत्र मुस्लिम जनसंख्या का सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है। 2020 में यहां 1.2 अरब मुसलमान रह रहे थे। इसके बाद मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका (414 मिलियन) और उप-सहारा अफ्रीका (369 मिलियन) का नंबर आता है। दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इस्लाम भले ही मध्य पूर्व से शुरू हुआ हो, लेकिन वहां अब केवल 20% मुसलमान रहते हैं। आज मुस्लिम जनसंख्या का बड़ा हिस्सा भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया और बांग्लादेश जैसे देशों में है।
ईसाइयों और हिंदुओं की स्थिति
जहां मुस्लिम आबादी का प्रतिशत 2010 में 23.9% से बढ़कर 2020 में 25.6% हो गया, वहीं ईसाइयों की हिस्सेदारी 30.6% से गिरकर 28.8% हो गई। हिंदू जनसंख्या वैश्विक अनुपात में 14.9% पर स्थिर रही। रिपोर्ट बताती है कि अगर यही रुझान जारी रहा तो अगले कुछ दशकों में मुसलमानों और ईसाइयों की जनसंख्या में अंतर लगभग समाप्त हो सकता है।
जनसंख्या युवा, तो चुनौतियां भी नई
मुस्लिम जनसंख्या का औसत आयु 24 साल है, जबकि गैर-मुस्लिमों का 33 साल। इसका मतलब है कि मुस्लिम समुदाय में युवाओं की संख्या अधिक है। यह आने वाले समय में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी सुविधाओं की मांग में बड़ा इजाफा ला सकती है।
यूरोप और अमेरिका में रफ्तार भले धीमी, लेकिन बढ़त जारी
हालांकि यूरोप और उत्तर अमेरिका में मुस्लिम आबादी अब भी कम है, लेकिन वहां भी 2010 से 2020 के बीच उनकी वृद्धि दर गैर-मुस्लिमों से अधिक रही है। यह रुझान आने वाले वर्षों में इन क्षेत्रों की सामाजिक संरचना में बदलाव ला सकता है।