नेपाल में राजनीतिक संकट का भारत पर क्या पड़ सकता है असर? अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और परियोजनाएं खतरे में

Edited By Updated: 10 Sep, 2025 04:05 PM

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नेपाल में जेन-जी आंदोलन के चलते प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल ने इस्तीफा दे दिया है। देश में जारी राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा से भारत-नेपाल व्यापार, इंफ्रास्ट्रक्चर, पर्यटन और सीमा सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ा है। भारत ने सीमा...

नेशनल डेस्क : नेपाल में चल रहे तनावपूर्ण हालात ने न केवल वहां की सियासत को हिलाकर रख दिया है, बल्कि भारत के साथ व्यापार और सुरक्षा पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 4 सितंबर 2025 को नेपाल सरकार द्वारा 26 सोशल मीडिया ऐप्स पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद 8 सितंबर से शुरू हुए जेन-जी प्रदर्शनों ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। इन प्रदर्शनों की आंच इतनी तेज हुई कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को इस्तीफा देना पड़ा। वर्तमान में नेपाल की सेना ने स्थिति को नियंत्रण में लिया है। इस सियासी उथल-पुथल का भारत के व्यापार, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, पर्यटन और सुरक्षा पर गहरा असर पड़ने की आशंका है।

भारत-नेपाल व्यापार पर संकट के बादल
भारत और नेपाल के बीच गहरे व्यापारिक रिश्ते हैं। भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो उसे पेट्रोलियम उत्पाद, बिजली, दवाएं, वाहन, मशीनरी और खाद्य सामग्री जैसे आवश्यक सामान निर्यात करता है। 2024-25 में भारत ने नेपाल को 7.32 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया, जबकि आयात 1.2 अरब डॉलर रहा। नेपाल में 150 से अधिक भारतीय कंपनियां कार्यरत हैं, जो वहां के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का 35% से अधिक हिस्सा हैं।

हालांकि, नेपाल में हिंसक प्रदर्शनों और अस्थिरता के कारण प्रमुख सीमा चौकियों जैसे रक्सौल-बीरगंज और सुनौली-भैरहवा पर माल की आवाजाही में रुकावटें आ रही हैं। इससे आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हो रही है, जिसका असर भारतीय निर्यातकों और नेपाली उपभोक्ताओं दोनों पर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक अस्थिरता रहने से भारत के व्यापारिक हितों को भारी नुकसान हो सकता है।

इंफ्रास्ट्रक्चर और हाइड्रोपावर परियोजनाओं पर खतरा
नेपाल में चल रहे हाइड्रोपावर और ट्रांसमिशन लाइन परियोजनाओं में भारत की बड़ी हिस्सेदारी है। जनवरी 2024 में भारत और नेपाल के बीच 10,000 मेगावाट हाइड्रोपावर आयात का समझौता हुआ था, जो भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। लेकिन वर्तमान अस्थिरता के कारण इन परियोजनाओं में देरी या रुकावट की आशंका है। भारतीय कंपनियों को वित्तीय नुकसान और परियोजना में देरी का सामना करना पड़ सकता है।

पर्यटन उद्योग पर असर
नेपाल का पर्यटन उद्योग उसकी अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख हिस्सा है, और भारत इसका बड़ा स्रोत है। भारतीय पर्यटक होटल बुकिंग, उड़ानें और ट्रैवल पैकेज के माध्यम से नेपाल की अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं। लेकिन हिंसक प्रदर्शनों के कारण पर्यटकों में डर का माहौल है, जिससे बुकिंग रद्द हो रही हैं। इसका असर भारत की ट्रैवल और एयरलाइन कंपनियों पर भी पड़ सकता है।

भारत-नेपाल सीमा पर सुरक्षा चुनौतियां
भारत और नेपाल के बीच 1,750 किलोमीटर लंबी खुली सीमा है, जो दोनों देशों के बीच सामाजिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करती है। लेकिन अस्थिरता के समय हथियार तस्करी, स्मगलिंग और अवैध गतिविधियों का खतरा बढ़ जाता है। नेपाल में हिंसा के बाद भारत ने अपनी सीमा पर चौकसी बढ़ा दी है, और अधिक जवानों की तैनाती की जा रही है। इससे भारत का सुरक्षा खर्च बढ़ेगा, और सीमावर्ती राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में सुरक्षा जोखिम बढ़ सकते हैं।

भारत की अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव
नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देश भारत के प्रमुख व्यापारिक साझेदार हैं। नेपाल में अस्थिरता से भारत के निर्यातकों को माल की डिलीवरी में देरी और नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। इसके साथ ही, भारत पहले से ही अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% टैरिफ के दबाव का सामना कर रहा है, जिसने व्यापारियों को पहले ही प्रभावित किया है। नेपाल में मौजूदा स्थिति भारत की व्यापारिक चुनौतियों को और बढ़ा सकती है।

पहले भी देख चुके हैं ऐसे हालात
यह पहली बार नहीं है जब भारत के पड़ोसी देश में अस्थिरता ने भारत को प्रभावित किया हो। हाल के वर्षों में बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान में भी सियासी उथल-पुथल ने भारत के हितों को प्रभावित किया है। बांग्लादेश में 2024 के विरोध प्रदर्शनों और सत्ता परिवर्तन के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत में शरण दी गई थी, और वहां से गारमेंट्स और टेक्सटाइल आपूर्ति प्रभावित हुई थी। श्रीलंका में आर्थिक संकट के बाद तेल, इंफ्रास्ट्रक्चर और बैंकिंग सेवाएं ठप हो गई थीं। वहीं, अफगानिस्तान में अराजकता ने भारत में सुरक्षा जोखिम बढ़ाए थे।

आगे की राह
भारत सरकार ने नेपाल के हालात पर "वेट-एंड-वॉच" की नीति अपनाई है। भारतीय विदेश मंत्रालय और निर्यात संवर्धन परिषद स्थिति पर नजर रख रहे हैं ताकि व्यापारिक रुकावटों को कम किया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि नेपाल में स्थिरता लौटने तक भारत को अपनी सीमा सुरक्षा और व्यापारिक रणनीतियों को मजबूत करना होगा। साथ ही, नेपाल में नई सरकार के गठन और उसकी नीतियों पर भारत-नेपाल संबंधों का भविष्य निर्भर करेगा।

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