'ऑपरेशन गुलमर्ग' जैसी साजिश रचने की योजना बना रहा पाक, जानिए 73 साल पहले क्या हुआ था कश्मीर में

Edited By vasudha,Updated: 18 Oct, 2020 01:49 PM

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भारत की आजादी के बाद से ही पाकिस्तान जन्नत के ताज से नवाजे गए कश्मीर पर नजर गढ़ाए बैठा है। कश्मीर हथियाने के उसके मंसूबे को कई बार भारत नाकाम कर चुका है लेकिन इसके बावजूद वह अपने नाकाम हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’ के 73 साल बीतने के...

नेशनल डेस्क: भारत की आजादी के बाद से ही पाकिस्तान जन्नत के ताज से नवाजे गए कश्मीर पर नजर गढ़ाए बैठा है। कश्मीर हथियाने के उसके मंसूबे को कई बार भारत नाकाम कर चुका है लेकिन इसके बावजूद वह अपने नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’ के 73 साल बीतने के बावजूद भी वह कश्मीर पर कब्जे का सपना पाले बैठा है। यूरोपीय थिंक टैंक ने इस बात का खुलासा किया है। 

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यूरोपीय थिंक टैंक के मुताबिक कश्मीर विवाद पाकिस्तान ने ही शुरू किया और इसके लिए पाकिस्तान ने कश्मीरियों को ही ढाल बनाया था।  कश्मीर हथियाने के मंसूबे को लेकर अभियान की कमान संभालने वाले तत्कालीन पाकिस्तान के मेजर जनरल अकबर खान ने खुद उन्होंने  अपनी किताब ‘रेडर्स इन कश्मीर’ में ‘ऑपरेशन गुलमर्ग’ जिक्र किया है। उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर पर हमले के लिए 22 अक्तूबर 1947 की तारीख तय की थी। सभी लड़ाकों से जम्मू-कश्मीर सीमा के नजदीक 18 अक्तूबर को एबटाबाद में इकट्ठा होने को कहा गया। रात में इन लड़ाकों को नागरिकों के लिए इस्तेमाल होने वाली बसों और ट्रकों में भरकर पहुंचाया जा रहा था। 

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अकबर खान ने किताब में बताया कि हमने 26 अक्तूबर, 1947 को पाकिस्तानी सुरक्षाबलों ने बारामूला पर कब्जा किया, जहां 14,000 के मुकाबले सिर्फ 3,000 लोग जिंदा बचे थे। जब पाकिस्तानी सेना श्रीनगर से 35 कि.मी. दूर रह गई तब महाराजा हरि सिंह ने भारत सरकार से कश्मीर के अधिग्रहण के लिए पत्र लिखा। किताब में बताया गया कि पाकिस्तान ने कश्मीर हथियाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया मगर भारतीय सैनिकों ने वक्त रहते पाकिस्तानी सेना के मंसूबों पर पानी फेर दिया। अकबर खान ने लिखा  कि 1947 में सितम्बर की शुरूआत में तत्कालीन मुस्लिम लीग के नेता मियां इफ्तिखारुद्दीन ने उनसे कहा था कि वह कश्मीर को अपने कब्जे में लेने की योजना बनाएं। आखिरकार मैंने योजना बनाई जिसका नाम ‘कश्मीर में सैन्य विद्रोह’ रखा। हमारा मकसद था आंतरिक तौर पर कश्मीरियों को मजबूत करना, जो भारतीय सेना के खिलाफ विद्रोह कर सकें। यह ध्यान में रखा गया कि कश्मीर में भारत की ओर से किसी तरह की कोई सैन्य मदद नहीं मिल सके।

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अकबर खान ने लिखा कि 22 अक्तूबर को पाकिस्तानी सेना ने सीमा पार की और 24 अक्तूबर को मुजफ्फराबाद और डोमेल पर हमला किया, जहां डोगरा सैनिकों को पीछे हटना पड़ा। अगले दिन हम श्रीनगर रोड पर निकले और फिर उड़ी में डोगराओं को पीछे हटाया। 27 अक्तूबर को भारत ने कश्मीर में सेना भेज दी। पाकिस्तान के पी.एम. ने 27 अक्तूबर की शाम हालात के मद्देनजर लाहौर में बैठक बुलाई। इसमें तत्कालीन रक्षा सचिव और बाद में पाकिस्तान के गवर्नर जनरल रहे कर्नल इसकदर मिर्जा, महासचिव चौधरी मोहम्मद अली,  पंजाब के सी.एम. नवाब मामदोत, ब्रिगेडियर स्लायर खान और मैं था। बैठक में मैंने प्रस्ताव दिया कि कश्मीर में घुसपैठ के लिए सेना को इस मकसद के लिए इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। सिर्फ आदिवासियों को वहां भेजा जाए। अकबर खान ने लिखा कि पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर में घुसपैठ के लिए आदिवासियों की मदद ली। 28 अक्तूबर, 1947 को अकबर खान को पाकिस्तान के पी.एम. का सैन्य सलाहकार बना दिया गया।

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