वायु प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट से गुहार: देश में लगे 'पब्लिक हैल्थ एमरजैंसी'

Edited By Updated: 07 Nov, 2025 04:36 PM

plea to supreme court on air pollution public health emergency in the country

भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण स्तरों पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई जन हित याचिका में प्रदूषण को देखते हुए पब्लिक हैल्थ एमरजैंसी लगाने की मांग की गई है। "फिट इंडिया मूवमैंट" के वैलनेस चैम्पियन रहे ल्यूक क्रिस्टोफर कुटिन्हो द्वारा...

नेशनल डेस्क: भारत में बढ़ते वायु प्रदूषण स्तरों पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई जन हित याचिका में प्रदूषण को देखते हुए पब्लिक हैल्थ एमरजैंसी लगाने की मांग की गई है। "फिट इंडिया मूवमैंट" के वैलनेस चैम्पियन रहे ल्यूक क्रिस्टोफर कुटिन्हो द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई याचिका में याचिका कर्ता ने संविधान में अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार के तहत वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने और घटाने के लिए सरकारी अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि देश में वायु प्रदूषण के स्तर अब पब्लिक हैल्थ एमरजेंसी का रूप ले चुके हैं, जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में नागरिकों पर गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं। याचिकाकर्ता का यह कहना है कि, भले ही देश में एक सुव्यवस्थित नीतिगत ढांचा मौजूद है, लेकिन भारत के बड़े हिस्सों में वायु गुणवत्ता लगातार खराब बनी हुई है, और कई मामलों में इसमें और भी गिरावट आई है।


शहरों और गांवों में वायु प्रदूषण मानकों से ज्यादा
याचिका में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु जैसे शहरों में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा नोटिफाई किए गए नैशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड 2009 के मानकों के अनुरूप न होने को प्रमुखता से रेखांकित किया गया है।
नैशनल एम्बिएंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड 2009 के मुताबिक्र हवा में पी एम 2.5 की वार्षिक औसतन सीमा 40 और पी एम 10 की अधिकतम औसतन सीमा 60 होनी चाहिए जबकि दिल्ली में वास्तविक वार्षिक औसत स्तर 105 और लखनऊ में 90 दर्ज किया गया है और यह मानकों का उलंघन है। याचिकाकर्ता ने यह भी उल्लेख किया है कि भारत के मानक पहले से ही अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में ढीले हैं, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2021 की वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देश के अनुसार हवा में पी. एम. 2.5 की वार्षिक औसतन सीमा 5 और पी.एम. 10 की अधिकतम औसतन सीमा 15 होनी चाहिए।

दिल्ली, कोलकाता और लखनऊ जैसे शहरों में औसत स्तर न केवल राष्ट्रीय मानकों से कहीं अधिक हैं, बल्कि विष स्वस्थ संगठन द्वारा अनुशंसित सुरक्षित सीमा से 10 से 20 गुना अधिक हैं, जिससे करोड़ों लोग श्वसन, हृदय, और तंत्रिका संबंधी गंभीर बीमारियों के जोखिम में हैं। वायु प्रदूषण को सिस्टम की विफलता बताते हुए याचिकाकर्ता ने कहा कि भारत की 140 करोड़ की अरब आबादी प्रतिदिन विषैला वायु श्वास में लेने को मजबूर है। उन्होंने यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों को वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रमों से बाहर रखा गया है, जो एक मौलिक संरचनात्मक कमजोरी है।


याचिका में रखी गई मांगें
➤ वायु प्रदूषण को पब्लिक हैल्थ एमरजैंसी घोषित किया जाए
➤ एन. सी.ए.पी. के लक्ष्यों को वैधानिक बल दिया जाए
➤ एयर क्वालिटी और पब्लिक हैल्थ पर नैशनल टास्क फोर्स का गठन हो
➤ कृषि अवशेष जलाने पर तुरंत पूर्ण रोक लगे
➤ नाइट्रोजन ऑक्साइड का ज्यादा उत्सृजन करने वाले वाहनों को सड़कों से हटाया जाए
➤ स्क्रैप पॉलिसी को गंभीरता से लागू किया जाए


सरकारी नीतियों और क्रियान्वयन की आलोचना
केंद्र सरकार द्वारा 2019 में शुरू किए गए नैशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एन सी ए पी) का लक्ष्य 2024 तक हवा में प्रदूषण के कणों में 20-30 प्रतिशत की कमी करना था लेकिन बाद में लक्ष्य को बढ़ाकर 12026 तक 40 प्रतिशत कर दिया गया। लेकिन जुलाई 2025 तक के आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि इस प्रोग्राम में नामित 130 शहरों में से केवल 25 शहरों ने ही 2017 के आधार स्तर से पी एम 10 में 40 प्रतिशत की कमी हासिल की है, जबकि अन्य 25 शहरों में प्रदूषण स्तर और बढ़ा है। याचिका में यह भी कहा गया है कि दिल्ली में 22 लाख स्कूली बच्चों के फेफड़ों को पहलेही अपरिवर्तनीय क्षतिहो चुकी है, जिसे सरकारी और चिकित्सा अध्ययनों ने भी पुष्टि की है।

निगरानी तंत्र की कमियां
याचिकाकर्ता का कहना है कि भारत में वायु की गुणवत्ता की वास्तविक स्थिति समझने के लिए कम से कम 4,000 निगरानी केंद्रों की आवश्यकता है जिनमें 2,800 शहरी और 1,200 ग्रामीण क्षेत्रों में होने चाहिए। लेकिन जो निगरानी केंद्र मौजूद हैं, वे अधिकतरशहरी क्षेत्रों तक सीमित हैं, जिससे ग्रामीण इलाकों, औद्योगिक पट्टियों, अनौपचारिक बस्तियों और कमजोर समुदायों को व्यवस्थित निगरानी के दायरे से बाहर रखा गया है। इसका परिणाम यह है कि इन समुदायों के वास्तविक एक्सपोज्जर जोखिम सरकारी नीति में अदृश्य बने रहते हैं, जबकि वे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।

याचिकाकर्त्ता ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय
राजधानी क्षेत्र (एन.सी. आर.) में भारत स्टेज-6 वाहनों से उत्सर्जित नाइट्रोजन ऑक्साइड अनुमेय सीमाओं से कई गुना अधिक थी। तीन पहिया वाहन निर्धारित सीमा से 3.2 गुना, कारण 2 गुना, टैक्सियां 5 गुना और बसें 14 गुना अधिक नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सृजन कर रही हैं इसके बावजूद भी इन उल्लंघनों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। यहां तक कि 2019 में दिल्ली जैसे विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक में वायु अधिनियम के तहत एक भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया गया।

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