Rabies Vaccine: क्यों जरूरी है एक ही ब्रांड की रेबीज वैक्सीन? जानिए विशेषज्ञों की सलाह

Edited By Updated: 10 Sep, 2025 09:25 PM

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देश में कुत्तों के हमलों के बढ़ते मामलों के बीच रेबीज का खतरा भी तेजी से बढ़ा है। विशेषज्ञों के अनुसार, रेबीज वैक्सीन का पूरा कोर्स एक ही ब्रांड का होना बेहद जरूरी है, क्योंकि अलग-अलग ब्रांड से वैक्सीनेशन करने पर इम्यूनिटी कमजोर पड़ सकती है। WHO भी...

नेशनल डेस्क : देशभर में कुत्तों के हमलों के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिसके साथ ही रेबीज जैसी घातक बीमारी का खतरा भी बढ़ गया है। रेबीज एक वायरल इंफेक्शन है जो नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है और दिमाग तक पहुंचकर मरीज की जान ले सकता है। एक बार लक्षण दिखने के बाद इसका कोई इलाज नहीं है, इसलिए कुत्ते या किसी अन्य रेबीज-संक्रमित जानवर के काटने के तुरंत बाद वैक्सीन लगवाना अनिवार्य है। लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि वैक्सीन का पूरा कोर्स एक ही ब्रांड का होना चाहिए। आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों जरूरी है और ब्रांड बदलने से क्या जोखिम हो सकते हैं।

रेबीज वैक्सीन: एक ही ब्रांड क्यों?
रेबीज वैक्सीन बाजार में कई ब्रांड्स जैसे रैबीपुर, व्हैक्सीरैब और अब्हायराब के नाम से उपलब्ध है। हालांकि सभी वैक्सीन्स का उद्देश्य रेबीज वायरस से बचाव करना है, लेकिन इनके कम्पोजिशन, मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस और इम्यून रिस्पॉन्स में सूक्ष्म अंतर हो सकता है। गाजियाबाद में पशु पालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ. एस. पी. पांडेय बताते हैं, "जब मरीज एक ही ब्रांड की वैक्सीन का पूरा कोर्स लेता है, तो शरीर में स्थिर और प्रभावी एंटीबॉडी बनती हैं, जो वायरस को फैलने से रोकती हैं। अगर बीच में ब्रांड बदल दिया जाए, तो इम्यून सिस्टम को वायरस से लड़ने में दिक्कत हो सकती है, जिससे वैक्सीन का असर कम हो सकता है।"

डॉ. पांडेय के अनुसार, ब्रांड बदलने से इम्यून रिस्पॉन्स अधूरा रह सकता है, जिसके कारण मरीज को अतिरिक्त डोज लेनी पड़ सकती हैं या पूरे कोर्स को दोबारा शुरू करना पड़ सकता है। इससे समय, धन और मरीज की परेशानी बढ़ती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी सलाह देता है कि रेबीज वैक्सीन का कोर्स एक ही ब्रांड से पूरा करना चाहिए। यदि किसी कारणवश ब्रांड बदलना पड़े, तो यह केवल डॉक्टर की सलाह पर और विशेष परिस्थितियों में ही करना चाहिए।

प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में ब्रांड बदलने का जोखिम
कई बार मरीज पहली डोज प्राइवेट अस्पताल में लगवाते हैं और बाद की डोज सरकारी अस्पताल में, जिससे ब्रांड बदल जाता है। डॉ. पांडेय बताते हैं, "हर ब्रांड की वैक्सीन की तकनीक और संरचना अलग होती है। अगर मरीज बीच में ब्रांड बदलता है, तो शरीर में पर्याप्त और स्थिर इम्यूनिटी विकसित नहीं हो पाती, जिससे रेबीज का खतरा बना रहता है।" विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रांड बदलने से वैक्सीन की प्रभावशीलता कम हो सकती है, और मरीज को दोबारा कोर्स शुरू करने की सलाह दी जा सकती है।

रेबीज का खतरा: आंकड़े और तथ्य
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अनुसार, भारत में हर साल करीब 20,000 लोग रेबीज से मरते हैं, और कुत्तों के काटने के मामले इनमें सबसे ज्यादा योगदान देते हैं। रेबीज वैक्सीन का कोर्स आमतौर पर 4-5 डोज का होता है, जो 0, 3, 7, 14 और 28वें दिन लिया जाता है। समय पर वैक्सीनेशन से 100% सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है, बशर्ते कोर्स पूरा और एक ही ब्रांड का हो।

सावधानियां

स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने रेबीज से बचाव के लिए निम्नलिखित सलाह दी है:

तुरंत कार्रवाई: कुत्ते या किसी अन्य जानवर के काटने पर तुरंत साबुन और पानी से घाव को 15 मिनट तक धोएं और डॉक्टर से संपर्क करें।

पूरा कोर्स: वैक्सीन का पूरा शेड्यूल समय पर पूरा करें, कोई डोज मिस न करें।

एक ही ब्रांड: जिस ब्रांड की वैक्सीन शुरू की है, उसी से कोर्स पूरा करें।

अस्पताल बदलने पर सावधानी: अगर अस्पताल बदलना पड़े, तो डॉक्टर को पहले से ब्रांड की जानकारी दें।

डॉक्टर की सलाह: ब्रांड बदलने का निर्णय स्वयं न लें, केवल विशेषज्ञ की सलाह पर करें।

रिकॉर्ड रखें: वैक्सीन का शेड्यूल और ब्रांड का लिखित रिकॉर्ड संभालकर रखें।

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